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आईने में निहारती, तैयार होती श्रेया से किरण ने पूछा, ‘‘कहां जा रही हो इस समय?’’ श्रेया बड़बड़ाई, ‘‘ओह मौम, आप को बताया तो था कि आज मनजीत की बर्थडे पार्टी है, उसी में जा रही हूं.’’

‘‘मेरी समझ में यह नहीं आता कि तुम लोगों की बर्थडे पार्टी इतनी देर से क्यों शुरू होती है? थोड़ी पहले नहीं हो सकती क्या?’’

मांबेटी की तकरार सुन कर किशोर को लगा कि अगर उन्होंने मध्यस्थता नहीं की, तो बात बिगड़ सकती है. ड्राइंगरूम से उन्होंने कहा, ‘‘किरण, यह तुम लोगों की किटी पार्टी नहीं है, जो दोपहर में होती है. यह तो जवानों की पार्टी है… श्रेया बेबी, तुम जाओ, मम्मी को मैं समझाता हूं.’’

‘‘थैंक्स ए लौट… पापा… बाय सीयू.’’

‘‘बाय ऐंड टेक केयर स्वीटहार्ट… थोड़ीथोड़ी देर में फोन करती रहना.’’

श्रेया ने सैनिकों की तरह सैल्यूट मारते हुए कहा, ‘‘येस सर,’’ और चली गई.

उस के जाते ही किरण की बकबक शुरू हुई, ‘‘श्रेया को आप ने बिलकुल आजाद कर दिया है. मेरी तो यह सुनती ही नहीं है.’’

‘‘किरण, सोचो, यह हमारी संतान है.’’

‘‘वह भी एकलौती… और लाडली भी,’’ पति की बात बीच में काटते हुए किरण बोली.’’

‘‘तुम गुस्से में कुछ भी कहो, लेकिन हमें अपनी संतान पर भरोसा होना चाहिए. श्रेया 21 साल की हो गई है. बच्चों की यह उम्र बड़ी नाजुक होती है. इस उम्र में ज्यादा रोकटोक ठीक नहीं है. कहीं विद्रोह कर के गलत रास्ते पर चली गई तो…’’

‘‘लेकिन यह भी तो सोचो, रात 9 बजे वह पार्टी में जा रही है, वहां न जाने कैसेकैसे लोग आए होंगे.’’

किशोर ने दोनों हाथ हवा में फैलाते हुए कहा, ‘‘किरण, अब श्रेया की चिंता छोड़ कर मेरी चिंता करो. कुछ खानेपीने को मिलेगा कि किचकिच से ही पेट भरना होगा.’’

‘‘जब देखो तब मजाक, बात कितनी भी गंभीर हो, हंस कर उड़ा देते हो.’’ बड़बड़ाते हुए किरण किचन में चली गई.

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श्रेया की तरह ही किशोर भी मांबाप की एकलौती संतान थे. अमेरिका के एक विशाल स्टोर को कौटन की शर्ट्स सप्लाई करने का बढि़या बिजनैस था उन का. नोएडा के इंडस्ट्रियल एरिया में बहुत बड़ी फैक्टरी भी थी, जहां शर्ट्स तैयार होती थीं. नोएडा के ही सैक्टर 15ए जैसे पौश एरिया में उन की विशाल कोठी थी. राज्य के ही नहीं, केंद्र के भी तमाम राजनेताओं और अधिकारियों से उन के अच्छे संबंध थे.

इन्हीं संबंधों की वजह से वे एनजीओ भी चलाते थे. एनजीओ का कामकाज श्रेया संभालती थी. शायद श्रेया के लिए ही उन्होंने एनजीओ का काम शुरू किया था. इस से भी उन्हें मोटी कमाई होती थी, लेकिन पुराने विचारों वाली किरण को श्रेया से हमेशा शिकायत रहती थी. उसे ले कर जब भी पतिपत्नी में बहस होती, किरण बनावटी गुस्सा कर के एक ही बात कहती, ‘‘मेरी तो इस घर में कोई गिनती ही नहीं है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. इस घर में पहला नंबर तुम्हारा ही है.’’

‘‘ये सब बेकार की बातें हैं,’’ किरण उसी तरह कहती, ‘‘छोड़ो इन बातों को. मैं इतनी भी बेवकूफ नहीं, जितना तुम समझते हो.’’

श्रेया की सहेली थी, मनजीत कौर. दोनों ने एमबीए साथसाथ किया था. एमबीए करने के बाद जहां श्रेया अपने एनजीओ का कामकाज देखने लगी थी, वहीं मनजीत एक मल्टीनैशनल कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हो गई थी, लेकिन दोनों के संबंध आज भी वैसे ही थे. वे सप्ताह में कम से कम 2-3 बार तो मिल ही लेती थीं, लेकिन रविवार की शाम का खाना निश्चित रूप से दोनों किसी रैस्टोरैंट में साथसाथ खाती थीं.

मनजीत को पार्टियों का बहुत शौक था इसलिए वह अकसर पार्टियों में जाती रहती थी. इस के बाद श्रेया से मिलने पर पार्टियों की चर्चा भी करती थी. कभीकभार श्रेया भी मौका मिलने पर मनजीत के साथ डिस्कोथिक, होटल या रैस्टोरैंट में होने वाली पार्टियों में चली जाती थी. एक दिन मनजीत ने कहा, ‘‘यार श्रेया, इस संडे को एक अलग तरह की पार्टी है. तू कभी इस तरह की पार्टी में गई नहीं है इसलिए मैं चाहती हूं कि तू भी उस पार्टी में मेरे साथ चल.’’

‘‘अलग तरह की पार्टी. उस पार्टी में क्या होता है?’’ श्रेया ने हैरानी से पूछा.

‘‘चल कर खुद ही देख लेना. लौटने में थोड़ी देर हो सकती है, इसलिए घर में कोई बहाना बना देना. बहाना क्या बनाना, बता देना कि मेरी बर्थडे पार्टी है.’’

उसी पार्टी में शामिल होने के लिए मनजीत जब श्रेया को एक फार्महाउस में ले कर पहुंची, तो उसे बहुत हैरानी हुई. श्रेया ने पूछा, ‘‘तू मुझे यहां क्यों ले आई?’’

‘‘यहीं तो वह पार्टी है. इस तरह की पार्टियां ऐसी ही जगहों पर होती हैं, क्योंकि ये एकदम व्यक्तिगत होती हैं. इन पार्टियों में वही लोग आते हैं, जो आमंत्रित होते हैं. अनजान लोगों को अंदर बिलकुल नहीं जाने दिया जाता,’’ मनजीत ने समझाया.

दोनों फार्महाउस की विशाल इमारत के सामने पहुंचीं, तो वहां खड़ा एक युवक आगे बढ़ा और मनजीत से हाथ मिलाते हुए बोला, ‘‘तो यही हैं आप की फ्रैंड श्रेयाजी,’’ इस के बाद वह श्रेया को गहरी नजरों से देखते हुए बोला, ‘‘मैं अमन हूं, आप पहली बार मेरी इस पार्टी में आई हैं, इसलिए आप का विशेष रूप से स्वागत है.’’

कानफोड़ू डीजे म्यूजिक, म्यूजिक की ताल पर थिरकते युवकयुवतियां. पूरा हौल सिगरेट के धुएं से भरा था. मनपसंद दोस्त… सबकुछ तो था यहां. फिर भी श्रेया का मन नहीं लग रहा था. इसलिए उस के मुंह से निकल गया, ‘‘व्हाट ए बोरिंग पार्टी… यहां के जिक में कोई दम नहीं है. यहां तो सब जैसे नशे में हैं.’’

श्रेया की बात का कोई और जवाब देता, उस से पहले वही स्मार्ट युवक, जो गेट पर मिला था, उस के सामने आ कर बोला, ‘‘हाय श्रेया, शायद आप यहां खुश नहीं हैं. आप को न मेरी यह पार्टी अच्छी लग रही है और न ही यह म्यूजिक.’’

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‘‘जी, आप की इस पार्टी में मैं बोर हो रही हूं. म्यूजिक में भी कोई दम नहीं है. क्राउड भी बहुत है. फिर यहां मैं देख रही हूं कि लोग डांस करने के बजाय छेड़छाड़ ज्यादा कर रहे हैं. मुझे यह सब पसंद नहीं है.’’

‘‘दरअसल, मेरा डीजे आज छुट्टी पर है इसलिए इस डीजे को लगाना पड़ा. आप पहली बार इस पार्टी में आई हैं, इसलिए आप को यहां का माहौल रास नहीं आ रहा है. बेसमैंट में मेरा पर्सनल कमरा है. वहां अच्छा म्यूजिक कलैक्शन भी है और एकांत भी. आप वहां चल सकती हैं. वहां हर चीज की व्यवस्था है. खानेपीने की, म्यूजिक की और आराम करने की भी.’’

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