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चिंता सी हो रही थी कि सहेली के घर वह न जाने किस हाल में होगी. दूसरे, इसी बहाने से वह सोनिया से मिल भी लेगी. कौफी हाउस में डोसा खाते समय सोनिया ने दिल को छू लेने वाला विषय छेड़ दिया था, ‘‘‘ममा, आप ने ‘चीनी कम’ फिल्म देखी है? एक युवती अपने पिता की उम्र के प्रौढ़ से पे्रम करती है...’

‘‘हां, इसी विषय पर और कई फिल्में बनी हैं, ‘निशब्द’, ‘दिल चाहता है’ आदि.’’

‘‘ऐसा क्यों होता है, ममा?’’

‘‘उस वक्त प्रौढ़ और वह युवती, दोनों ही यह समझते हैं कि प्यार की कोई सीमारेखा नहीं होती. उन्हें यही लगता है कि प्यार तो कभी भी किसी से भी हो सकता है. युवती यह समझती है कि यह उस की जिंदगी है और इसे अपने तरीके से जीना उस का अधिकार है. उधर प्रौढ़ को भी अपनी युवा प्रेमिका से कोई उम्मीद तो होती नहीं, हालांकि प्रेमिका की उम्र के उस के बच्चे होते हैं, लेकिन प्यार के शुरुआती दिनों में वह इस बात को ज्यादा अहमियत नहीं देता और अपनी युवा प्रेमिका के साथ भरपूर मौज करना चाहता है. लेकिन एक दिन जब परिवारजनों को पता चलने पर उसे परिवार की तीखी निगाहों व आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है तो उस के पास पछताने के अलावा और कोई चारा नहीं रहता. और वह युवती? क्या पूरी उम्र रखैल की भूमिका निभा सकती है? नहीं. कभी न कभी उस का संयम भी जवाब दे जाता है.’’

मैं ने चोर नजरों से निक्की और मिलन की ओर देखा. दोनों के चेहरों पर हवाइयां उड़ रही थीं. मैं भी सोनिया के सामने कोई तमाशा खड़ा नहीं करना चाह रही थी. सोनिया को एअरपोर्ट छोड़ कर हम वापस लौट ही रहे थे कि मिलन के मोबाइल पर एसएमएस आने शुरू हो गए. निश्चित रूप से ये मैसेज निक्की ही भेज रही थी. न जाने किस मिट्टी की बनी थी यह लड़की? सोच कर हंसी भी आ रही थी, आश्चर्य भी हो रहा था. मेरे ही प्यार से सींचा गया यह पौधा, फिर भी इस पौधे ने इतना अलग रूप कैसे ले लिया? घर में कदम रखते ही मैं ने मिलन से सीधेसपाट शब्दों में पूछा, ‘‘अब आगे क्या सोचा है?’’

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