कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
0:00
12:24

लेखिका- शकीला एस. हुसैन

ऐक्सीडैंट की खबर मिलते ही जुबेदा के तो होश उड़ गए. इमरान से शादी को अभी 3 ही साल हुए थे. इमरान की बाइक को किसी ट्रक ने टक्कर मार दी थी. घर के सभी लोगों के साथ जुबेदा भी अस्पताल पहुंची थी. सिर पर गंभीर चोट लगी थी. जिस्म पर भी काफी जख्म थे. औपरेशन जरूरी था. उस के लिए 1 लाख चाहिए थे. जुबेदा ससुर के साथ घर आई. फौरन 1 लाख का चैक ले कर अस्पताल पहुंचीं, पर तब तक उस की दुनिया उजड़ चुकी थी. इमरान अपनी आखिरी सांस ले चुका था. जुबेदा सदमे से बेहोश हो गई. अस्पताल की काररवाई पूरी होने और लाश मिलने में 5-6 घंटे लग गए.

घर पहुंचते ही जनाजा उठाने की तैयारी शुरू हो गई. जुबेदा होश में तो आ गई थी पर जैसे उस का दिलदिमाग सुन्न हो गया था. उस की एक ही बहन थी कहकशां. वह अपने शौहर अरशद के साथ पहुंच गई थी. जैसे ही जनाजा उठा, जुबेदा की फूफी सास सरौते से उस की चूडि़यां तोड़ने लगीं.

कहकशां ने तुरंत उन्हें रोकते हुए कहा, ‘‘चूडि़यां तोड़ने की क्या जरूरत है?’’

‘‘हमारे खानदान में रिवायत है कि जैसे ही शौहर का जनाजा उठता है, बेवा की चूडि़यां तोड़ कर उस के हाथ नंगे कर दिए जाते हैं,’’ फूफी सास बोलीं.

जुबेदा की खराब हालत देख कर कहकशां ने ज्यादा विरोध न करते हुए कहा, ‘‘आप सरौता हटा लीजिए. मैं कांच की चूडि़यां उतार देती हूं.’’

मगर फूफी सास जिद करने लगीं, ‘‘चूडि़यां तोड़ने का रिवाज है.’’ तब कहकशां ने रूखे लहजे में कहा, ‘‘आप का मकसद बेवा के हाथ नंगे करना है, फिर चाहे चूडि़यां उतार कर करें या उन्हें तोड़ कर, कोई फर्क नहीं पड़ता है,’’ और फिर उस ने चूडि़यां उतार दीं और सोने की 2-2 चूडि़यां वापस पहना दीं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...