रात में सोते समय वह फिर समीर के बारे में सोचने लगी. कितना प्यारा परिवार है समीर का. उस के बेटेबहू कितना मान देते हैं उसे? कितना प्यारा पोता है उस का? मेरा पोता भी तो लगभग इतना ही बड़ा हो गया होगा. पर उस ने तो सिर्फ तसवीरों में ही अपनी बहू और पोते को देखा है. कितनी बार कहा सार्थक से कि इंडिया आ जाओ, पर वह तो सब भुला बैठा है. काश, अपनी मां की तसल्ली के लिए ही एक बार आ जाता तो वह अपने पोते और बहू को जी भर कर देख लेती और उन पर अपनी ममता लुटाती. लेकिन उस का बेटा तो बहुत निष्ठुर हो चुका है. एक गहरी आह निकली उस के दिल से.
समीर की खुशहाली देख कर शायद उसे अपनी बदहाली और साफ दिखाई देने लगी थी. परंतु अब वह समीर से ज्यादा मिलना नहीं चाहती थी क्योंकि रोजरोज बेटी से झूठ बोल कर इस तरह किसी व्यक्ति से मिलना उसे सही नहीं लग रहा था, भले ही वह उस का दोस्त ही क्यों न हो. बेटी से मिलवाए भी तो क्या कह कर, आखिर बेटीदामाद उस के बारे में क्या सोचेंगे. वैसे भी उसे पता था कि स्वार्थ व लालच में अंधे हो चुके उस के बच्चों को उस से जुड़े किसी भी संबंध में खोट ही नजर आएगी. पर समीर को मना कैसे करे, समझ नहीं आ रहा था, क्योंकि उस का दिल तो बच्चों जैसा साफ था. मानसी अजीब सी उधेड़बुन में फंस चुकी थी.
सुबह उठ कर वह फिर रोजमर्रा के काम में लग गई. 10-11 बजे मोबाइल बजा, देखा तो समीर का कौल था. अच्छा हुआ साइलैंट पर था, नहीं तो बेटी के सवाल शुरू हो जाते. उस ने समीर का फोन नहीं उठाया. इस कशमकश में पूरा दिन व्यतीत हो गया. शाम को बेटीदामाद को चायनाश्ता दे कर खुद भी चाय पीने बैठी ही थी कि दरवाजे पर हुई दस्तक से उस का मन घबरा उठा, आखिर वही हुआ जिस का डर था. समीर को दरवाजे पर खड़े देख उस का हलक सूख गया, ‘‘अरे, आओ, समीर,’’ उस ने बड़ी कठिनता से मुंह से शब्द निकाले. समीर ने खुद ही अपना परिचय दे दिया. उस के बाद मुसकराते हुए उसे अपने पास बैठाया. और बड़ी ही सहजता से उस ने मानसी के संग अपने विवाह की इच्छा व्यक्त कर दी. यह बात सुनते ही मानसी चौंक पड़ी. कुछ बोल पाती, उस से पहले ही समीर ने कहा, ‘‘वह जो भी फैसला ले, सोचसमझ कर ले. मानसी का कोई भी फैसला उसे मान्य होगा.’’ कुछ देर चली बातचीत के दौरान उस की बेटी और दामाद का व्यवहार समीर के प्रति बेहद रूखा रहा.
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