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वीणा औफिस के काम में व्यस्त थी. इस महीने उस ने 3 फुल डे और 2 हाफ डे लिए थे. ऊपर से अगला महीना मार्च का था. काम का बोझ ज्यादा था सो वह बड़ी शिद्दत से काम में जुटी थी. लंच तक उसे आधे से ज्यादा काम पूरे करने थे. काम करते अभी उसे एकाध घंटा ही हुआ था कि उस का मोबाइल बज उठा. बड़े बेमन से उस ने मोबाइल उठाया. लेकिन नंबर देख कर उसे टैंशन होने लगी, क्योंकि फोन शशि यानी उस के मंगेतर का था, जो किसी न किसी कारण से उसे फोन कर के घर बुलाता था.

कभी उस के काका मिलना चाहते हैं, तो कभी मामाजी अथवा बूआजी. इस तरह के बहाने बना कर वह उसे घर आने के लिए मजबूर करता था. नईनई शादी तय हुई थी, इस कारण वीणा के घर वाले मना नहीं कर पाते थे. वीणा को इच्छा न होते हुए भी वहां जाना पड़ता. इसी कारण जब उस ने मोबाइल पर शशि का नाम देखा तो वह मायूस हो गई. ‘‘हैलो,’’ उस ने फोन उठाते हुए बेमन से कहा. ‘‘हैलो, वीणा मैं बोल रहा हूं. आज मेरी मौसी आई हैं लखनऊ से और वे तुम से मिलना चाहती हैं. आज तुम हाफ डे ले लो. मैं तुम्हें 2 बजे तक लेने आ जाऊंगा. और हां, घर चल कर तुम्हें साड़ी भी पहननी है, क्योंकि आज तुम पहली बार मेरी मौसी से मिल रही हो. ठीक से तैयार हो कर चलना.’’

‘‘सुनो शशि, मैं आज नहीं आ पाऊंगी. बहुत ज्यादा काम है और फिर अब मुझे हाफडे नहीं मिलेगा.’’ ‘‘वीणा मैं तुम्हें यह बता रहा हूं कि तुम्हें मेरे साथ मेरे घर चलना है न कि तुम से पूछ रहा हूं… तुम्हें चलना ही पड़ेगा. अपनी छुट्टी कैसे मैनेज करनी है यह तुम जानो और हां, तुम्हें घर आ कर मां का हाथ भी बंटाना है. मैं तुम्हें ले कर पहुंच जाऊंगा, यह मैं उन से कह कर आया हूं.’’ ‘‘शशि, मुझ से पूछे बगैर तुम ने ये सब कैसे तय कर लिया?’’ ‘‘तुम से क्या पूछना? मुझे तुम से पूछ कर हर काम करना पड़ेगा?’’

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‘‘हां शशि जो मुझ से संबंधित हो… उस बारे में तुम्हें मुझ से पूछना चाहिए… एक तो हर दूसरे दिन मुझे किसी न किसी से मिलवाने अपने घर ले जाते हो और खुद गायब हो जाते हो… यह ठीक है कि तुम्हारे रिश्तेदार मुझ से मिलना चाहते हैं लेकिन शशि मेरा ऐसे बारबार तुम्हारे घर आना क्या अच्छा लगता है?’’ ‘‘और… और क्या? अब क्या शादी से पहले ही मेरे घर वालों से कतराना चाहती हो? या उन से ऊब गई हो?’’  ‘‘नहीं शशि मेरा यह मतलब नहीं… प्लीज गलतफहमी मत रखना… न मैं उन से कतराना चाहती हूं और न ही ऊब चुकी हूं. सच तो यह है कि मैं तुम्हारे साथ ज्यादा वक्त बिताना चाहती हूं. तुम्हें जानना चाहती हूं ताकि एकदूसरे को ज्यादा से ज्यादा समझ सकें, एकदूसरे की पसंदनापसंद जान सकें.’’ ‘‘नहीं, उस की कोई जरूरत नहीं. जो कुछ जाननासमझना है उस के लिए उम्र पड़ी है. अगर मेरे घर वाले तुम्हारे साथ वक्त बिताना चाहते हैं, तो तुम्हें उन की बात माननी पड़ेगी.

मैं तुम्हें लेने आ जाऊंगा. गेट पर मिलना,’’ और शशि ने फोन काट दिया. वीणा और शशि की शादी डेढ़ महीना पहले ही तय हुई थी. शशि वीणा की ही कंपनी की बाजू वाली कंपनी में काम करता था. आतेजाते दोनों एकदूसरे के आमनेसामने हो जाते थे. पहले मुलाकात हुई, फिर दोस्ती. शशि की तरफ से रिश्ता आया था. दोनों एकदूसरे से परिचित थे तो दोनों के घर वालों ने रिश्ते के लिए हां कर दी और फिर सगाई हो गई. उस के बाद हर दूसरेतीसरे दिन शशि वीणा को फोन कर के घर आने के लिए मजबूर करता.

शुरूशुरू में तो उसे अच्छा लगता कि उस के जाने के बाद उस की ससुराल वाले उस के आसपास मंडराते थे, लेकिन बाद में उसे ऊब होने लगी. वह शशि के साथ समय बिताना चाहती थी, जो जरूरी था. वह हर बात को ले कर जबरदस्ती करता. जैसे वीणा क्या पहनेगी या आज कहां जाना है? वह कभी उस के घर आएगा तो नाश्ता भी उसी की पसंद का बनेगा… यहां तक कि टीवी का चैनल भी उस की पसंद का लगाया जाएगा.  एक दिन जब शशि घर आया तो वीणा के घर वाले खाना खा रहे थे. आते ही उस ने  हमेशा की तरह जल्दी मचानी शुरू कर दी. ‘‘आओ बेटा खाना खाओ,’’ मां ने कहा. ‘‘नहीं मांजी, आज नहीं और वैसे भी मुझे यह भिंडी की सब्जी पसंद नहीं,’’ शशि मुंह बनाते हुए बोला. ‘‘अरे, यह तो हमारी बेटी की पसंदीदा सब्जी है,’’ पापा ने हंस कर कहा. ‘‘तो क्या हुआ? आज अगर पसंदीदा है तो खाए, बाद में तो उसे मेरे अनुसार ही खुद को ढालना पड़ेगा.’’ ‘‘क्या मतलब?’’ पापा ने चौंक कर पूछा. ‘‘पापा, मेरी बीवी मेरे अनुसार ही तो अपनी पसंदनापसंद तय करेगी न?

आखिर पति हूं मैं उस का… उसे मेरा कहना मानना ही पड़ेगा,’’ शशि रौब से बोला. ‘‘नहीं शशि… मैं क्यों हर बात तुम्हारी मरजी से करूंगी?’’ वीणा ने बात को हंसी में लेते हुए कहा, ‘‘आखिर मेरी जिंदगी मेरी मरजी से चलेगी न कि तुम्हारी मरजी से.’’ ‘‘वीणा, एक बात पल्ले बांध लो. हमारे समाज ने मर्दों को सारे अधिकार दे रखे हैं न कि औरतों को. अत: घर में पति की ही चलेगी न कि पत्नी की… और मैं तो…’’ ‘‘अरेअरे, रुको बेटा गुस्सा मत हो,’’ मां बीच में बोल पड़ीं… ‘‘तुम बाहर बैठो मैं उसे तैयार कर के भेजती हूं,’’ कह मां वीणा को अंदर ले गईं. बोलीं, ‘‘देखो बेटा, शशि थोड़ा हठी स्वभाव का लगता है… नईनई शादी तय हुई है. इस कारण हम पर खासकर तुम पर रौब झाड़ रहा… बाद में सब ठीक हो जाएगा और फिर शादी नाम ही उस रिश्ते का है जिस में समझौते से ही रिश्ते पनपते हैं. तुम चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा. अब जाओ खुशीखुशी घूम आओ,’’ मां ने उसे समझा कर तैयार होने भेज दिया.  मां ने वीणा को तो समझा दिया, किंतु खुद उन की आंखों में फिक्र के साए उमड़ पड़े.  दिन बीतते गए. शादी की तारीख दीवाली के बाद की निकली थी.

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इसी बीच दोनों  मिलते रहे. उन मुलाकातों में बातें कम और शशि की सूचनाएं अधिक होती थीं. वीणा एक पोस्टग्रैजुएट लड़की थी. जिंदगी के प्रति उस की अपनी कुछ सोच थी, कुछ सपने थे, लेकिन उस का पार्टनर तो कुछ समझने को तैयार ही नहीं था.

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