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लेखिका- डा. रंजना जायसवाल

“कितना बोलती हो तुम…और उस से भी ज्यादा बोलती हैं तुम्हारी आंखें.”

“सच में? अच्छा और क्याक्या बोलती हैं मेरी आंखें?”

“सुचित्रा, पता नहीं क्यों मुझे हमेशा से ऐसा लगता है जैसे इन अल्हड़ और शरारती आंखों के पीछे एक शांत और परिपक्व लड़की छिपी है. मगर तुम ने कहीं उसे दूर छिपा दिया है, उस मासूम बच्चे की तरह जो इम्तिहान के डर से अपनी किताबें छिपा देता है.”

सुचित्रा खिलखिला कर हंस पड़ी,”जनाब, इतना सोचते हैं मेरे बारे में, मुझे तो पता ही नहीं था. वैसे एक बात कहूं अविनाश… तुम्हारी आंखें भी बहुत कुछ बोलती हैं.”

“मेरी आंखें? अच्छा मेरी आंखें क्या बोलती हैं, मुझे भी तो पता चले…”

“तुम्हारी आंखें तुम्हारे दिल का हाल बयां करती हैं… तुम्हारे सुनहरे सपनों को जीती हैं और… बहुत कुछ कहना चाहती हैं जिसे कहने से तुम डरते हो… डरते हो कि तुम कहीं उसे खो न दो.

“अविनाश एक बात कहूं… रिहा कर के तो देखो उस डर को, शायद तुम्हारा वह डर बेमानी और बेमतलब हो…

“दिल की गिरहों को खोल कर तो देखो हो सकता है कोई तुम्हारे जवाब की प्रतिक्षा कर रहा हो.”

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“सुचित्रा, सच में… क्या सच में इतना कुछ बोलती हैं मेरी आंखें? ऐसा कुछ नहीं… तुम्हें गलतफहमी हो गई है… मेरा दिल तो कांच की तरह साफ है.कुछ भी नहीं छिपा किसी से…और छिपाना भी नहीं है मुझे किसी से. तुम भी न जाने क्याक्या सोचती हो.”

सुचित्रा अचानक से गंभीर हो गई,”काश, तुम्हारी कही बातें सच होतीं. काश, तुम्हारी बातों पर मुझे यकीन आ जाता. अविनाश, कांच के उस पार भी एक दुनिया होती है जिसे हरकोई नहीं देख पाता. जो दिखाई तो देती है पर वह नहीं दिखाती… जो उसे दिखाना चाहिए.

“एक बात बताओ अविनाश, तुम क्या बनना चाहते हो?”

“सुचित्रा मैं बहुत बड़ा गायक बनना चाहता हूं. देशविदेश में मेरा नाम हो.मैं जहां भी जाऊं लोगों की भीड़ उमङ पङें.”

“बाप रे…अविनाश, तुम्हारे कितने बङे सपने हैं…”

“ज्यादा नहीं बस…जितने इस गुलमोहर के पेड़ पर लगे फूल…बस.”

अविनाश और सुचित्रा ठहाके मार कर हंस पङे.

“मान लो तुम्हारे सपने पूरे नहीं हुए तब?”

अविनाश की आंखों में दर्द उभर आया. सुचित्रा ने उस के हाथों को धीरे से अपने हाथ में लिया और उसे सहलाते हुए कहा,”चिंता ना करो… तुम्हारी सारी इच्छाएं पूरी होंगी.

“अविनाश, तुम्हें पता है एक बहुत बड़ा चैनल एक म्यूजिकल कार्यक्रम कराने वाला है. शहर में बड़ा हल्ला है…क्यों ना हम भी उस कार्यक्रम में भाग लें…”

“अरे हम जैसे लोगों को कौन पूछता है…तुम भी न…”

सुचित्रा ने अपनी बड़ीबड़ी आंखों को गोलगोल घुमाते हुए कहा,”ऐसा क्यों कहते हो… कोशिश करने में क्या हरज है. देखो मैं तो फौर्म भी ले आई हूं. अब कोई बहाना नहीं चलेगा. चलो फौर्म भरो और तैयारी शुरू करो…”

सुचित्रा की जिद के आगे अविनाश की एक न चली. उस सुरसंगीत के कार्यक्रम ने अविनाश की जिंदगी बदल दी. एक के बाद एक राउंड होते गए और अपने सुरीले गानों से अविनाश और सुचित्रा ने अपना लोहा मनवा दिया.

आखिर वह दिन भी आ गया जब सुर संगीत कार्यक्रम का फाइनल राउंड था. अविनाश के गाने ने जजों और दर्शकों का दिल जीत लिया.

चारों तरफ एक अजीब सी खामोशी और तनाव छाया हुआ था. वोटिंग लाइन शुरू हो चुकी थी… और फिर परिणाम भी घोषित कर दिए गए… अविनाश के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, उस ने प्रतियोगिता जीत ली थी… पर अफसोस सुचित्रा को डिसक्वालीफाई कर दिया गया. गला खराब होने की वजह से सुचित्रा गाना नहीं गा पाई थी. अविनाश ने सुचित्रा के बारे में उस की सहेलियों से पता लगाने की कोशिश की पर किसी को भी कुछ भी पता नहीं था.

अविनाश ने प्रतियोगिता जीतने के बाद बड़ेबड़े शहरों में कई कार्यक्रम किए. कुछ ही दिनों बाद वह वापस उसी शहर में आया पर कोई भी सुचित्रा के बारे में कुछ भी नहीं बता पाया. दोस्तों ने बताया कि इम्तिहान देने के बाद वह अपने पापा के साथ दिल्ली चली गई. किसी के पास उस का नया पता और फोन नंबर नहीं था. संपर्क के सारे रास्ते बंद हो गए थे.

अविनाश ने बहुत हाथपांव मारे पर निराशा और हताशा के सिवा उस के हाथों में कुछ भी नहीं लगा.

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समय बीतता गया और अविनाश सफलता की सीढ़ियां चढ़ता चला गया. हर तरफ कैमरों की चकाचौंध, रंगबिरंगी लाइट्स और एक ही आवाज,”अविनाश… अविनाश…” कोई औटोग्राफ लेने कोई फोटो खिंचवाने को बेताब, तो कोई सिर्फ उसे एक बार छू लेना चाहता था.शोहरत है ही ऐसी चीज.

लड़के और लड़कियां खुशी से चीख रहे थे. अविनाश का अपना शहर पलकें बिछाए उस का इंतजार कर रहा था. एक बार फिर से उसे वे दिन याद आ रहे थे…

सुरसंगीत प्रतियोगिता के आखिरी दिन उस की सुचित्रा से आखिरी मुलाकात हुई थी. आज भी याद है उसे वह रात. हिरनी सी चंचल उस की आंखों में आज अजीब सा ठहराव उस ने महसूस किया था.

“अविनाश, शुभकामनाएं…” और उस ने एक सुर्ख गुलमोहर उस की ओर बढ़ा दिया.

“अविनाश यह प्रतियोगिता तुम्हारे लिए बहुत माने रखती है न?”

“हां सुचित्रा… मैं ने इस के लिए बहुत मेहनत की है. अगर आज मैं हार गया तो मैं कभी भी गाना नहीं गाऊंगा.”

सुचित्रा का चेहरा उतर गया.

“ऐसा ना कहो अविनाश… सब अच्छा होगा.”

“शुभकामनाएं सुचित्रा…”

अविनाश को आज भी उस की वह मुसकान याद है. अविनाश को आज तक अफसोस था कि सुचित्रा के चेहरे की 1-1 लकीर समझ लेने वाला अविनाश से उस दिन इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई?

स्टूडैंट्स अविनाश की एक झलक पाने के लिए बेचैन हो रहे हैं. प्रिंसिपल साहब के बारबार आग्रह करने पर अविनाश उन्हें मना नहीं कर पाया. अविनाश खुद भी आश्चर्य में था. यह तो उस के प्रोटोकाल के विरुद्ध था पर पता नहीं इस शहर में एक ऐसी कशिश थी कि वह उन को मना नहीं कर सका.

अविनाश ने जैकेट पहनी और बाल संवार कर स्टेज की तरफ चल पड़ा. अविनाश की शानदार ऐंट्री से छात्र खुशी से चीखने लगे.

अविनाश ने हिट गानों की झड़ी लगा दी. भीड़ खुशी से झूम रही थी. थोड़ी देर बाद अविनाश फिर उसी कमरे में लौट आया… प्रिंसिपल साहब कृतज्ञ भाव से उसे देख रहे थे. तभी एक लड़की ने कमरे ने प्रवेश किया.अविनाश को लगा चेहरा बहुत जानापहचाना है… उस ने दिमाग पर बहुत जोर दिया… कहां देखा है…कहां देखा है…अरे यह तो वेदिका है. साड़ी में कितनी अलग दिख रही थी…चेहरे पर चश्मा, शरीर भी पहले से कुछ अधिक भर गया था.

“सर, बहुतबहुत धन्यवाद, आजकल के बच्चों को तो आप जानते हैं. कितनी जल्दी बेकाबू हो जाते हैं. आप को थोड़ी असुविधा हुई. इस के लिए हम…”

“अरे ऐसा क्यों कह रही हैं आप. हम भी अपने समय में ऐसे ही थे, बुरा न मानें तो मैं आप से एक बात पूछ सकता हूं?”

“जी बिलकुल…”

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“आप…आप वेदिका शर्मा हैं? 2010 बैच…”

“जी मैं वही वेदिका हूं… जिस की आप बात कर रहे हैं. मैं आप के साथ ही पढ़ती थी. आप थोड़ा आराम कर लीजिए… कार्यक्रम देर तक चलेगा.आप थक गए होंगे.”

आगे पढ़ें- अविनाश के मन में बारबार सवाल उठ रहे थे….

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