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लेखिका- डा. रंजना जायसवाल

अविनाश के मन में बारबार सवाल उठ रहे थे. इतने सालों बाद... वेदिका मेरी आंखों के सामने खड़ी थी. क्या मैं उस से सुचित्रा के बारे में पता करूं? हो सकता है उसे पता हो कि सुचित्रा कहां है, कैसी है...और किस हाल में...पर शब्द होंठों तक आतेआते रह गए. अविनाश आंख बंद कर शांति से कुरसी पर बैठ गया.

तभी एक जानीपहचानी सी खुशबू ने उसे फिर से बेचैन कर दिया. ऐसा परफ्यूम तो सुचित्रा लगाती थी. मगर उस ने आंखें नहीं खोलीं. परछाइयों के पीछे भागतेभागते वह थक गया था...

"अविनाशजी, इन से मिलिए आज के कार्यक्रम की कर्ताधर्ता मिस सुचित्रा. यह हमारे संगीत विभाग में शिक्षिका हैं."

अविनाश को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. यह उस का भ्रम तो नहीं, जिस को इतने वर्षों तक न जाने कहांकहां ढूंढ़ा... वह यहां ऐसे मिलेगी? कितना कुछ कहना था शायद और कितना कुछ सुनना भी था उस को...पर इतने लोगों के बीच...

सुचित्रा... कुछ भी तो नहीं बदला. वैसी ही खूबसूरत... उस की हिरनी सी चंचल आंखें, कमर तक काले लंबे बाल, जिस की लटें आज भी उस के चेहरे से अठखेलियां कर रही थीं.

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अविनाश का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. सुचित्रा ने वेदिका का हाथ कस कर पकड़ रखा था. शायद उस की भी हालत अविनाश जैसी ही थी.

"मिस सुचित्रा, इतना अच्छा इंतजाम किया है आप ने, एकदम मेरी पसंद का. आप ने काफी रिसर्च की है मेरी पसंदनापसंद पर..."

अविनाश ने कनखियों से सुचित्रा की ओर देखा. दोनों की आंखे टकरा गईं. सुचित्रा का चेहरा शर्म से लाल हो गया. दोनों की एकजैसी स्थिति थी.ऐसा लग रहा था मानों उन की चोरी पकड़ी गई हो.

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