कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

लेखक- शिव अवतार पाल   

अगले दिन सैकंड सैटरडे था और उस के अगले दिन संडे. इन 2 दिनों की दूरी मेरे लिए आकाश और पाताल के बराबर थी. कुछ सोचता हुआ मैं उसी तेजी से उस औफिस में दाखिल हुआ, जहां से रेवा निकली थी. रिशेप्सन पर एक खूबसूरत सी लड़की बैठी थी. तेज चलती सांसों को नियंत्रित कर मैं ने उस से पूछा क्या रेवा यहीं काम करती हैं  उस ने ‘हां’ कहा तो मैं ने रेवा का पता पूछा. उस ने अजीब सी निगाहों से मुझे घूर कर देखा.

‘‘मैडम प्लीज,’’ मैं ने उस से विनती की, ‘‘वह मेरी पत्नी है. किन्हीं कारणों से हमारे बीच मिसअंडरस्टैंडिंग हो गई थी, जिस से वह रूठ कर अलग रहने लगी. मैं उस से मिल कर मामले को शांत करना चाहता हूं. हमारी एक छोटी सी बेटी भी है. मैं नहीं चाहता कि हमारे आपस के झगड़े में उस मासूम का बचपन झुलस जाए. आप उस का ऐड्रैस दे दें तो बड़ी मेहरबानी होगी. बिलीव मी, आई एम औनेस्ट,’’ मेरा गला भर आया था.

वह कुछ पलों तक मेरी बातों में छिपी सचाई को तोलती रही. शायद उसे मेरी नेकनीयती पर यकीन हो गया था. उस ने कागज पर रेवा का पता लिख कर मुझे थमा दिया.

ये भी पढ़ें- Valentine’s Special: लाइफ कोच- क्या दोबारा मिल पाए नकुल और किरण

मैं हवा में उड़ता वापस आया. सारी रात मुझे नींद नहीं आई. मन में एक ही बात खटक रही थी कि रेवा का सामना कैसे करूंगा मैं  कैसे नजरें मिला सकूंगा उस से  पता नहीं वह मुझे माफ करेगी भी या नहीं  उस के स्वभाव से मैं भलीभांति परिचित था. एक बार जो मन में ठान लेती थी, उसे पूरा कर के ही दम लेती थी. अगर ऐसा हुआ तो…  मन के किसी कोने से उठी व्यग्रता मेरे समूचे अस्तित्व को रौंदने लगी. ऐसा हरगिज नहीं हो सकता. मन में घुमड़ते संशय के बादलों को मैं ने पूरी शिद्दत से छितराने की कोशिश की. वह पत्नी है मेरी. उस ने दिल की गहराइयों से प्यार किया है मुझे. वक्ती तौर पर तो वह मुझ से दूर हो सकती है, हमेशा के लिए नहीं. मेरा मन कुछ हलका हो गया था. उस की सलोनी सूरत मेरी आंखों में तैरने लगी थी.

सुबह उस का पता ढूंढ़ने में कोई खास परेशानी नहीं हुई. मीडियम क्लास की कालोनी में 2 कमरों का साफसुथरा सा फ्लैट था. आसपास गहरी खामोशी का जाल फैला था. बाहर रखे गमलों में उगे गुलाब के फूलों से रेवा की गंध का एहसास हो रहा था मुझे. रोमांच से मेरे रोएं खड़े हो गए थे. आगे बढ़ कर मैं ने कालबैल का बटन दबाया. भीतर गूंजती संगीत की मधुर स्वर लहरियों ने मेरे कानों में रस घोल दिया. कुछ ही पलों में गैलरी में पदचाप उभरी. रेवा के कदमों की आहट मैं भलीभांति पहचानता था. मेरा दिल उछल कर हलक में फंसने लगा था.

‘‘तुम…’’ मुझे सामने खड़ा देख कर वह बुरी तरह चौंक गई थी.

‘‘मैं ने तुम्हें कहांकहां नहीं ढूंढ़ा रेवा. हर ऐसी जगह जहां तुम मिल सकती थीं, मैं भटकता रहा. तुम ने मुझे सोचनेसमझने का अवसर ही नहीं दिया. अचानक ही छोड़ कर चली आईं.’’

‘‘अचानक कहां, बहुत छटपटाने के बाद तोड़ पाई थी तुम्हारा तिलिस्म. कुछ दिन और रुकती तो जीना मुश्किल हो जाता. तुम तो चाहते ही थे कि मर जाऊं मैं. अपनी ओर से तुम ने कोई कोरकसर बाकी भी तो नहीं छोड़ी थी.’’

‘‘मैं बहुत शर्मिंदा हूं रेवा.’’ मेरे हाथ स्वत: ही जुड़ गए थे, ‘‘तुम्हारे साथ जो बदसुलूकी की है, मैं ने उस की काफी सजा भुगत चुका हूं, जो हुआ उसे भूल कर प्लीज क्षमा कर दो मुझे.’’

‘‘लगता है मुझे परेशान कर के अभी तुम्हारा दिल नहीं भरा, इसलिए अब एक नया बहाना ले कर आए हो,’’ उस की आवाज में कड़वाहट घुल गई थी, ‘‘मैं आजिज आ चुकी हूं तुम्हारे इस बहुरुपिएपन से. बहुत रुलाया है मुझे तुम्हारी इन चिकनीचुपड़ी बातों ने. अब और नहीं, चले जाओ यहां से. मुझे कोई वास्ता नहीं रखना है तुम्हारे जैसे घटिया इंसान से.’’

मैं हतप्रभ सा उस की ओर देखता रहा.

‘‘तुम्हारी नसनस से अच्छी तरह वाकिफ हूं मैं. अपने स्वार्थ के लिए तुम किसी भी हद तक गिर सकते हो. तुम्हारा दिया एकएक जख्म मेरे सीने में आज भी हरा है.’’

‘‘मुझे प्रायश्चित्त का एक मौका तो दो रेवा. मैं…’’

‘‘मैं कुछ नहीं सुनना चाहती,’’ मेरी बात काट कर वह बिफर पड़ी, ‘‘तुम्हारी हर एक याद को अपने जीवन से खुरच कर फेंक चुकी हूं मैं.’’

‘‘अंदर आने को नहीं कहोगी ’’ बातचीत का रुख बदलने की गरज से मैं बोला.

‘‘यह अधिकार तुम बहुत पहले खो चुके हो.’’

मैं कांप कर रहा गया.

‘‘ऐसे हालात तुम ने खुद ही पैदा किए हैं आकाश. अपने प्यार को बचाने की हर संभव कोशिश की थी मैं ने. अपना वजूद तक दांव पर लगा दिया पर तुम ने कभी समझने की कोशिश ही नहीं की. जब तक सहन हुआ सहा मैं ने. और कितना सहती और झुकती मैं. झुकतेझुकते टूटने लगी थी. मैं ने अपना हाथ भी बढ़ाया था तुम्हारी ओर इस उम्मीद से कि तुम टूटने से बचा लोगे, पर तुम तो जैसे मुझे तोड़ने पर ही आमादा थे.’’

ये भी पढ़ें- Valentine’s Special: मन का बोझ- क्या हुआ आखिर अवनि और अंबर के बीच

मैं मौन खड़ा रहा.

‘‘अफसोस है कि मैं तुम्हें पहचान क्यों न सकी. पहचानती भी कैसे, तुम ने शराफत का आवरण जो ओढ़ रखा था. इसी आवरण की चकाचौंध में तुम्हारे जैसा जीवनसाथी पा कर खुद पर इतराने लगी थी. पर कितनी गलत थी मैं. इस का एहसास शादी के कुछ दिन बाद ही होने लगा था. मैं जैसेजैसे तुम्हें जानती गई, तुम्हारे चेहरे पर चढ़ा मुखौटा हटता गया. जिस दिन मुखौटा पूरी तरह हटा मैं हतप्रभ रह गई थी तुम्हारा असली रूप देख कर,’’ वह अतीत में झांकती हुई बोली.

‘‘शुरुआत में तो सब कुछ ठीक रहा. फिर तुम अकसर कईकई दिनों तक गायब रहने लगे. बिजनैस टूर की मजबूरी बता कर तुम ने कितनी सहजता से समझा दिया था मुझे. मैं भी इसी भ्रम में जीती रहती, अगर एक दिन अचानक तुम्हें, तुम्हारी सेक्रेटरी श्रुति की कमर में बांहें डाले न देख लिया होता. रीना के आग्रह पर मैं  सेमिनार में भाग लेने जिस होटल में गई थी, संयोग से वहीं तुम्हारे बिजनैस टूर का रहस्य उजागर हो गया था. तुम्हारी बांहों में किसी और को देख कर मैं जैसे आसमान से गिरी थी, पर तुम्हारे चेहरे पर क्षोभ का कोई भाव नहीं था. मैं कुछ कहती, इस से पहले ही तुम ने वहां मेरी उपस्थिति पर हजारों प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए थे. मैं चाहती तो तुम्हारे हर बेहूदा तर्क का करारा जवाब दे सकती थी, पर तुम्हारी रुसवाई में मुझे मेरी ही हार नजर आती थी. मेरी खामोशी को कमजोरी समझ कर तुम और भी मनमानी करने लगे थे. मैं रोतीतड़पती तुम्हारे इंतजार में बिस्तर पर करवटें बदलती और तुम जाम छलकाते हुए दूसरों की बांहों में बंधे होते.’’

‘‘वह गुजरा हुआ कल था, जिसे मैं कब का भुला चुका हूं,’’ मुश्किल से बोल पाया मैं.

आगे पढ़ें- श्रुति के साथ खा कर आए थे. मैं पलट कर…

ये भी पढ़ें- …और दीप जल उठे: अरुणा ने आखिर क्यों कस ली थी कमर

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...