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‘‘क्या हाल हैं? क्या लग रहा है? एक होस्टल की वार्डन जैसी मेरी मां से निभा पाओगी?‘‘ रात 11 बजे अजय ने बांहों में लिपटी अपनी नईनवेली पत्नी धारा से जब पूछा, तो वह खिलखिला उठी. यों ही लेटेलेटे अपने फर्जी कालर ऊपर किए और कहा ,‘‘तुम जानते नहीं धारा शर्मा को? कितना भरोसा है मुझे खुद पर. क्यों नहीं निभेगी…? हर तरह के लोगों से निबटना आता है मुझे.‘‘

‘‘देखते हैं, अभी तो तुम्हें घर में आए एक महीना ही हुआ है, आरती भाभी तो रोती ही रहती थीं, बेचारी भाभी. कभी अपने मन का कुछ कर ही नहीं पाई थीं, मुझे दुख होता था, पर क्या करूं, मां हैं मेरी. प्यार भी सब को बहुत करती हैं, बस थोड़ी जिद्दी हैं, जो घर में करती आई हैं, वही होता रहे तभी खुश रहती हैं.‘‘

‘‘क्या उन के लिए अपनी खुशी ही माने रखती है?‘‘

‘‘नहीं, वे यह भी चाहती हैं कि सब खुश रहें, बस अपनी सोच में ज्यादा बदलाव कर नहीं पातीं.‘’

धारा कुछ देर सोचती रही, तो अजय ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? डर लग रहा है? डोंट वरी, मैं तुम्हारे साथ हूं.‘‘

धारा को हंसी आ गई. वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘अब तुम मुझे सचमुच डराने की कोशिश मत करो. जब से हमारी शादी की बात शुरू हुई थी, तब से यही सुन रही हूं कि तुम्हारी मम्मी के साथ रहने में मुझे नानी याद आ जाएगी. मैं तो सच बताऊं, एक्ससाइटेड हूं. देखते हैं, इस प्रोजैक्ट को कैसे हैंडल करना है.‘‘

यह सुन कर अजय को जोरों की हंसी आई, फिर उस ने धारा को किस करते हुए कहा, ‘‘अच्छा…? मेरी मां एक प्रोजैक्ट है तुम्हारा?‘‘

‘‘हां, वैसा ही फील हो रहा है सुनसुन कर. ओह, अच्छा, अब सोने दो. कल सुबह मेरा एक प्रेजेंटेशन है, बौस को इतने हिंट दिए कि अभी शादी हुई है, थोड़ा चैन से जीने दे, पर नहीं, कहता है, इस कोरोना टाइम में तुम्हें हनीमून पर तो जाना नहीं है, काम ही टाइम से कर लो. मैं कौन सा तुम्हें औफिस बुला रहा हूं.‘‘

‘‘तुम इतनी लायक हो. तुम्हारे बिना तुम्हारे बौस को कहां चैन आ सकता है. मां को बता दिया है, कल तुम्हें काम है?‘‘

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‘‘नहीं, इस में क्या बताना, एक हफ्ते से औफिस का काम शुरू कर दिया है, रोजरोज क्या बताना.‘‘

‘‘अब ठीक से बताओ, मैनेज हो रहा है न, कोई दिक्कत तो नहीं है?‘‘

‘‘कोशिश कर रही हूं, गुडनाइट, चलो, सोते हैं अब,‘‘ कहते हुए धारा ने अजय के हाथ पर सिर रखते हुए अपनी आंखें बंद कर लीं.

कांदीवली, मुंबई की इस सोसाइटी की एक बिल्डिंग के इस थ्री बैडरूम में सुधा और विनय अपने बेटे अजय और बहू धारा के साथ रहते थे. कुछ साल पहले तक उन का बड़ा बेटाबहू विजय और आरती भी साथ रहते थे, पर सुधा के साथ रहना आसान बात नहीं थी. जैसे ही विजय को दिल्ली में नई जौब मिली, वह फौरन चला गया था.

अजय और धारा की लवमैरिज थी, दोनों मुंबई में ही एक कौमन फ्रैंड के घर मिले थे और दोस्ती हो गई थी.

सुधा को इस शादी पर कोई आपत्ति नहीं हुई थी, क्योंकि धारा भी ब्राह्मण परिवार से ही थी.

सुधा इस विवाह के लिए कोरोना के खत्म होने का इंतजार करने के मूड में थीं, क्योंकि उन्हें सब रस्मोरिवाज और सारे रिश्तेदारों की भीड़ के साथ यह विवाह करना था, पर अजय और धारा इंतजार नहीं करना चाहते थे. वे जानते थे कि सबकुछ नौर्मल होने में अभी समय लगने वाला है, युवा मन किसी भी तरह सब दूरियां मिटा कर साथ रहना चाहते थे, कोविड 19 के चलते बारबार बाहर मिलने जाना भी सेफ नहीं था, विनय और अजय भी वर्क फ्रौम होम ही कर रहे थे.

विजय और आरती ने भी फोन पर यही कहा, ‘‘मां, हम आ जाएंगे, बस बहुत ही जरूरी रस्म के साथ यह शादी हो जानी चाहिए, किसी को भी बुलाने की जरूरत ही क्या है इस टाइम, और कोई बुरा भी नहीं मानेगा. आप बस धारा की मम्मी से बात कर लो.‘‘

धारा की मम्मी माया अंधेरी इलाके में अकेली ही रहतीं, उस के पिता थे नहीं. माया टीचर थीं. आजकल वे औनलाइन क्लासेस में व्यस्त थीं. वे इस विचार से खुश थीं कि शादी कम से कम शोरशराबे में हो. वे एक आधुनिक सोचविचार वाली महिला थीं, जो किसी भी तरह सामाजिक दबाव को सहन न करतीं और धारा ने भी इसी खुली सोच से जीना सीखा था.

कोरोना वायरस ने दुनिया पलट कर रख दी थी. कितनों के प्रोग्राम, योजनाएं रखी रह गई थीं, ऐसे ही सब की सहमति से एक छोटे से पैमाने पर जरूरी रस्में संपन्न हुईं और धारा अजय के घर आ गई.

थोड़े दिन के लिए अजय और धारा ने छुट्टी ली, पर आजकल वर्क फ्रौम होम के दिन थे, जाना कहीं था ही नहीं, औफिस का काम पहले से ज्यादा हो रहा था, दोनों ने अपनाअपना काम जल्दी ही शुरू कर दिया.

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सुधा एक परंपरावादी सास थी. महानगर में रहते हुए भी सोच सदियों पुरानी. जो घर में अब तक करती आई थीं, उस में उन्हें किसी और का कहा बदलाव जरा भी मंजूर नहीं था. वे यह भी जान गई थीं कि उन की रोकटोक के कारण ही बड़े बेटे और बहू ने यहां से जाने में ही अपनी भलाई समझी. अब उन्हें धारा पसंद तो बहुत आई थी, बहुत सुंदर, हंसमुख सी धारा सारा दिन वैसे तो अपने काम में बिजी रहती, पर जिस तरह औफिस के काम के साथ उन के साथ मिल कर घर के भी काम संभाल लेती, वे हैरान हो कर रह जातीं. पर जैसे ही धारा अपने मन से कुछ भी करने लगती, सुधा कह उठती, ‘‘धारा, हमारे यहां ऐसा नहीं होता.‘‘

विनय काम से काम रखने वाले पुरुष थे. सुधा के कार्यक्षेत्र में उन्होंने कभी दखल नहीं दिया था, पर जिद्दी पत्नी को भी अच्छी तरह जानते थे, देख रहे थे कि धारा कुछ भी अपनी पसंद का करने पर सुधा को नाराज कर देती है. वे ढकेछुपे शब्दों में धारा को सपोर्ट भी करते, पर ज्यादा बात करने की उन की आदत थी ही नहीं.

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