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लेखक- राजेश कुमार सिन्हा

घर पहुंच कर मैं बारबार उस क्षण के बारे में हीं सोच रहा था कि मैं कैसे यह सब बोल गया, जबकि मैं इस के लिए तैयार हो कर नहीं गया था. इस में कोई दोराय नहीं कि कोमल मुझे पसंद नहीं थी, पर इतनी जल्दी मैं उसे प्रपोज कर दूंगा, यह मैं ने सोचा भी नहीं था,आखिर मेरे में इतनी हिम्मत आई कहां से, यह मैं खुद समझ नहीं पा रहा था. इसी उधेड़बुन में कब मेरी आंख लग गई, मैं खुद समझ नहीं पाया.

अचानक मोबाइल के लगातार बजने वाले रिंगटोन से मेरी नींद खुल गई. सब से पहले मैं ने घड़ी की तरफ देखा, 12 बज रहे थे. अभी कौन फोन कर रहा है, देखा तो कोमल का फोन था, मैं ने तुरंत फोन लिया, "सो गए थे आप, माफ कीजिएगा कि मैं ने जगा दिया आप को."

"अरे नहीं, बस आंख लग गई थी. आप ठीक से घर तो पहुंच गई थीं?"

-हां, कोई परेशानी नहीं हुई. वहां से तो पास में ही है मेरा घर, अनुज मैं ने घर पहुंच कर बहुत सोचा और मेरे दिल और दिमाग दोनों ने यही कहा कि आप जैसा शख्स अगर लाइफ पार्टनर हो तो जिंदगी सुकून के साथ गुजारी जा सकती है, मैं ने आप के बारे में अपने पेरेंट्स को बता दिया है और वे आप से मिलना चाहते हैं. कल आ सकते हैं तो आ जाइए. एड्रेस व्हाट्सएप कर देती हूं."

"मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि क्या कभी ऐसा होता है कि इनसान जो चाहे वह उसे इतनी जल्दी मिल जाए," मैं ने धड़कते हुए दिल को किसी तरह थामा और कहा, "थैंक्स कोमल, मेरे पास शब्द नहीं हैं, मैं क्या कहूं आप को बस यही सोच रहा हूं कि कैसे कल की सुबह तक इंतजार कर पाऊंगा. आता हूं कल 11 बजे तक..."

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