लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर

सवेरे जब मैं उठी तो राघव सो रहा था. मैं ने उसे उठाना चाहा पर रुक गई. एक ही तो बाथरूम था, उसे उठा दूंगी तो  फिर वह मु झे भीतर नहीं जाने देगा और खुद अंदर घुस गया तो निकलने में घंटों लगा देगा. पता नहीं उसे नहानेधोने व फ्रैश होने में इतनी देर क्यों लगती है.

कल सवेरे फैक्ट्री जाने से पहले राघव ने अपने छोटे भाई माधव की शादी में एक हफ्ता पहले पहुंचने की प्लानिंग की थी और मेरे लिए शादी के बाद अपनी ससुराल जाने का पहला मौका था. शादी होते ही राघव मु झे अपने साथ ही यहां ले आया था. तब से एक साल बीत चुका था और हम कानपुर नहीं जा पाए थे. जबकि, मायके तो राघव को ले कर मैं शादी के बाद इन सालों में कई बार हो आई थी. राघव मु झे वहां 1-2 दिन रहने के लिए छोड़ भी देता था.

मु झे मायके जल्दीजल्दी मिला लाने के पीछे उस की एक लालसा थी, अपनी एकमात्र और मु झ से 2 साल बड़ी अविवाहित साली से चुहलबाजी करने का अवसर मिलना.

मेरी बड़ी बहन शोभा की शक्लसूरत बहुतकुछ मु झ से मिलती थी. पर बचपन से ही एक पैर दूसरे पैर के मुकाबले 2 इंच छोटा होने के कारण स्पैशल जूते या चप्पल पहनने के बाद ही यह ऐब छिप पाता था. लेकिन चाल में हलकी लंगड़ाहट नहीं छिप पाती थी.

शोभा पढ़ने में बहुत तेज थी. बीए व बीएड करने के बाद उस की केंद्रीय विद्यालय में टीचिंग जौब लग गई थी. लेकिन शादी करने के बहुत प्रयत्न करने के बाद मेरे मातापिता निराश हो कर बैठ गए थे.

फिर जब मैं ने साइकोलौजी से एमए कर लिया तो जो रिश्ता आता उन लोगों का पिताजी से यही जवाब होता, ‘देखिए, आप की बड़ी बेटी यों तो छोटी से सुंदर बहुत है पर उस के पैर के दोष के कारण हम अपने लड़के से उस की शादी करने में असमर्थ हैं. हां, अगर आप चाहें तो हम आप की छोटी बेटी को बहू बनाने को तैयार हैं.

इस का असर यह हुआ कि शोभा ने अपने दिल से शादी का खयाल निकाल दिया और मातापिताजी से स्पष्ट कह दिया, ‘आप लोग मेरी शादी के लिए परेशान न हों और प्रशोभा की शादी कर दीजिए.’

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फिर पिताजी भी चाहते थे कि सेवानिवृत्ति से पहले कम से कम एक लड़की की शादी तो कर ही दें.

रिश्ते बहुत से आए पर अब शोभा ने लड़के वालों के सामने आने से ही मना करना शुरू कर दिया और जब राघव का रिश्ता आया तो उस ने मु झे अपने कमरे में बुलाया और कहा, ‘प्रशोभा, मेरे कारण तू अपनी उम्र के सुंदर वर्ष क्यों खराब किए जा रही है. देख, यह लड़का नैनी कैमिकल फैक्ट्री में कैमिकल इंजीनीयर है और सुंदर भी है. तु झे मेरी कसम जो मेरे कारण तू ने इस रिश्ते से इनकार किया.’

और मेरी शादी राघव से हो गई. राघव दिल का बहुत अच्छा था. जब उसे मैं ने शोभा के बारे में बताया तो वह उस के प्रति आदर व सम्मान के भावों से भर गया और पहली बार में ही शोभा से ऐसी दोस्ती कर ली कि दोनों  खूब बतियाते.

मैं शोभा को हंसतेखिलखिलाते देख कर इसलिए खुश हो जाती कि कम से कम राघव से मिल कर उस के चेहरे पर ऐसी प्रसन्नता तो दिखती जिस का उस के जीवन में अकाल पड़ चुका था.

राघव के साथ वह अपने को बहुत ही सहज पाती थी, इसलिए अपने मोबाइल कैमरे से जब मैं उन दोनों की फोटो खींच कर उसे दिखाती तो वह बहुत खुश हो जाती.

ससुराल के मुकाबले मायका इलाहाबाद से करीब भी था. सिराथू, इलाहाबाद से 63 किलोमीटर दूर, कानपुर रूट पर था.

राघव के साथ बाइक पर पीछे बैठ कर हम 2 घंटे में सिराथू पहुंच जाते थे. जबकि, कानपुर के पास भोगनीपुर तहसील में ससुराल था जहां पहुंचने के लिए कानपुर तक ट्रेन से जाना उचित रहता था.

हमें सवेरे 7 बजे इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से ट्रेन पकड़नी थी, क्योंकि राघव की एक हफ्ते की छुट्टी स्वीकृत हो गई थी.

इसलिए सवेरे मैं जब उठ गई तो चाय की चिंता छोड़ कर अपने कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गई. यह नैनी में स्थापित कैमिकल फैक्ट्री से मिला हुआ 2 छोटे कमरे, एक ड्राइंगरूम, किचन और एक बाथरूम वाला आवंटित फ्लैट था.

बाथरूम के साथ ही अटैच्ड टौयलेट था. मैं ने घड़ी देखी, 5.30 बज रहे थे. फटाफट फ्रैश हो कर नहाईधोई और तैयार हो कर राघव को जगाया. बस, बाल काढ़ने रह गए थे. मु झे पता था कि जब तक वह बाथरूम से निकलेगा, मेरे बाल भी कढ़ जाएंगे और चायनाश्ता भी तैयार हो जाएगा.

अटैची और बैग तो मैं ने कल रात ही तैयार कर लिए थे.

सोते हुए राघव को मैं ने तेजी से हिला कर जगाया, ‘सोते रहोगे क्या? उठो, ट्रेन पकड़नी है, समय हो रहा है.’

वह कुनमुना कर उठ बैठा. उसे उठता देख कर मैं ने पलट कर वापस ड्रैसिंग टेबल की तरफ बाल संवारने हेतु कदम बढ़ाया ही था कि उस ने मेरा हाथ पकड़ कर मु झे बिस्तर पर खींच लिया और दबोच कर 4-5 चुंबन ले डाले.

‘अरे, यह भी कोई समय है यह सब करने का. जल्दी से उठो और तैयार हो जाओ वरना ट्रेन छूट जाएगी,’ मैं उठ कर साड़ी ठीक करते हुए बोली.

‘मन तो नहीं कर रहा है उठने का पर तुम कहती हो तो उठना ही पड़ेगा,’ कहते हुए वह पलंग से उतरा, जम्हाई लेते हुए दोनों हाथ ऊपर कर के एक अंगड़ाई ली और समय देखता हुआ बाथरूम में घुस गया.

रोज के मुकाबले आज राघव बाथरूम से थोड़ा जल्दी निकल आया और तुरंत कपड़े पहन कर तैयार हुआ.

नाश्ता कर के हम ने घर लौक किया और औटो कर के सामान समेत समय से थोड़ा पहले स्टेशन पहुंच कर ट्रेन में बैठ गए.

शाम को समय से 45 मिनट लेट ट्रेन कानपुर पहुंची. वहां उतर कर हम टैम्पो कर के भोगनीपुर पहुंचे.

मेरे जेठ ऊधव और देवर माधव दोनों हमें देखते ही प्रसन्न होते हुए घर से बाहर निकल आए. जेठ पर नजर पड़ते ही मैं ने दुपट्टा सिर पर डाला और उन के पैर छूने को  झुकी तो पीछे हटते हुए उन्होंने हाथ बढ़ा कर मु झे रोकते हुए कहा, प्रशोभा, ‘‘तुम तो मु झे नमस्ते या फिर हैलोहाय ही किया करो. ये पैरवैर छूना मु झे ओल्ड फैशन लगता है. अब यह इंटरनैट, मोबाइल, व्हाट्सऐप, फेसबुक और यूट्यूब का जमाना है.’’

‘‘राघव पैर छुए और मैं हैलोहाय करूं, यह शोभा नहीं देता भाईसाहब,’’ कहते हुए मैं फिर उन के पैर छूने के लिए बढ़ी तो उन्होंने तेजी से कहा, ‘‘मु झे अपने पैर नहीं छुआने हैं.’’

‘‘तो फिर राघव से क्यों छुआए?’’

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‘‘उस की बात अलग है. अच्छा, अब घर के अंदर चलो,’’ कहते हुए वे माधव को हमारा सामान ऊपर उन के कमरे के बगल वाले कमरे में रखवाने का निर्देश देते हुए घर के अंदर चले गए.

राघव से 5 साल बड़े जेठ ऊधव ने पिता के आड़े आ जाने के कारण अपनी प्रेमिका से शादी न हो पाने की खुन्नस में आजीवन कुंआरा रहने का प्रण ले लिया था.

देवर माधव कंप्यूटर साइंस से बीई करने के बाद कानपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण में डाटा औपरेटर था.

माधव की शादी कन्नौज के इत्र व्यापारी की लड़की दिव्या से तय हो गई थी और लड़की वाले कानपुर आ कर ही शादी कर रहे थे.

माधव ने हमारा सामान ऊपर वाले कमरे में पहुंचवा दिया. यह ससुर को विरासत में मिला 5 कमरों और एक ड्राइंगरूम तथा बीच में आंगन व बरामदे वाला बड़ा सा पैतृक मकान था.

मैं ने बाहरी बैठक के कोने में पड़े एक बड़े से मोटे गद्दे और सुंदर से कालीन बिछे दीवान पर बैठे अपने ससुर के पास राघव के साथ जा कर उन के पांव छुए और फिर सास से मिलने अंदर कमरे में पहुंची तो वे अपनी बड़ी बेटी के साथ नई बहू का संदूक तैयार करने में जुटी हुई थीं.

मैं ने ननद के भी पैर छुए और फिर सास के पास जैसे ही बैठी, उन्होंने मेरा हालचाल पूछने के बाद कहा, ‘‘बड़ा अच्छा हुआ तू आ गई. मैं और किरण नई बहू की अटैची तैयार करने में जुटे थे, तेरे आ जाने से मेरा काम अब आसान हो जाएगा.’’

मां की बात खत्म होते ही ननद किरण, ‘‘मां, मैं अभी आई’’ कह कर कमरे से बाहर चली गई. उन के जाते ही मैं मां के साथ अटैची सजाने में जुट गई.

सास ने बताना शुरू किया, ‘‘प्रशोभा, मैं ने सोने के आभूषण जितने तु झे चढ़ाए थे उतने ही माधव की बहू दिव्या को भी चढ़ा रही हूं. उस की मेकअप किट भी तु झे ही सजानी है…’’

सास ये सब बातें कर ही रही थीं कि जेठ उसी कमरे में आ कर मां से बोले, ‘‘क्या मां, प्रशोभा को आते ही आप ने काम पर लगा दिया. उस ने चाय नहीं पी, हाथमुंह तक नहीं धोया…’’

मैं ने उन की बात काटते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, मैं इलाहाबाद से नहाधो कर चली थी.’’

इस पर वे बोले, ‘‘हांहां प्रशोभा, जानता हूं नहा कर ही चली होगी लेकिन सफर कर के आ रही हो, इसलिए पहले कुछ खापी लो, फिर काम में जुटना. हमेशा याद रखो, पहले पेटपूजा फिर काम दूजा.’’

इतना कह कर वे बहुत धीरे से बड़बड़ाए, ‘यह किरण तो शादी के बाद इतनी कामचोर हो गई है कि थोड़ी देर और मां के पास नहीं बैठ सकती थी. जैसे ही देखा, प्रशोभा आ गई है, बस, मां के पास से भाग ली.’

आगे पढ़ें- सास के कहने पर मैं वहां से उठ कर….

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