लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर
अभी तक आप ने पढ़ा प्रशोभा अपने पति राघव के साथ देवर माधव की शादी के लिए ससुराल पहुंचती है. ससुराल में शादी की तैयारियां चल रही होती हैं. प्रशोभा ने गौर किया कि उस के जेठ ऊधव उस का कुछ खास ही खयाल रख रहे हैं और उस के नजदीक रहना पसंद करते हैं.
प्रशोभा को अपनी ननद किरण से पता चलता है कि जेठ ऊधव कंचन नाम की लड़की से प्रेम करते थे लेकिन पिता के मना करने पर उन्होंने कभी भी शादी न करने का प्रण ले लिया था.
एकदो ऐसी घटनाएं हुईं कि प्रशोभा को लगा कि जेठ ऊधव उस के प्रति आकर्षित हैं. क्या प्रशोभा अपने जेठ ऊधव की मनोस्थिति समझ रही थी? पढि़ए आगे...
मैं उन की आंखों में उभरते उन्माद को लगातार परख रही थी. फिर जब दूरी एक मीटर के आसपास की रह गई तो मेरी आंखों की स्थिरता व चेहरे की दृढ़ता देख कर वे वहीं रुक कर बोले, ‘‘तुम्हें मुझ से डरने की जरूरत नहीं है. तुम मेरे कमरे में बेहिचक चली आया करो. देखो, मैं ने अपने कमरे को आधुनिक रूप से बनवा लिया है. यहां अटैच्ड लैट्रीनबाथरूम में मैं ने गीजर, शौवर और सारी लैटेस्ट फिटिंग्स के साथ कमरे में एसी भी लगवा रखा है.’’
तभी नीचे से राघव की आवाज आई, ‘‘अरे प्रशोभा, कहां रह गईं, एक साड़ी लाने में इतनी देर?’’
राघव की आवाज सुन कर मैं ने तुरंत जवाब दिया, ‘‘बस, 2 मिनट में आ रही हूं.’’
फिर धीरे से जेठजी से बोली, ‘‘भाईसाहब, अभी साड़ी आप अपने पास ही रखिए. मुझे जिस दिन पहननी होगी, आप से मांग लूंगी,’’ इतना कह कर मैं तुरंत वहां से हट गई और पास के उस कमरे में तेजी से घुस गई जहां मेरा सामान रखा हुआ था.