रानीऔर किशोरजी के इकलौते बेटे की शादी थी. पूरे घर में रौनक ही रौनक थी. कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी थी. दुलहनिया भी इसी शहर के एक नामी घर से लाए थे. जैसे इन का अपना सुनार का व्यवसाय था जो पूरे शहर में प्रसिद्ध था वैसे ही दुलहन के घरवालों का भी गोटेकारी का बड़ा काम था और उन की दुकानें शहर में कई जगहों पर थीं. उन का पूरा परिवार एक संयुक्त परिवार के रूप में एक ही कोठी में रहता था. चाचाताऊ में इतना एका था कि विलास के रिश्ते के लिए हां करने से पहले भी मोहना ने अपने ताऊजी को बताया था. तभी तो रानी को मेहना भा गई थी. उन का मानना था कि एकल परिवार की लड़कियां सासससुर से निभा नहीं सकतीं. संयुक्त परिवार की लड़की आएगी तो हिलमिल कर रहेगी.
डोली तो अलसुबह ही आंगन में उतर चुकी थी, दूल्हादुलहन को अलग कमरों में बिठा कर थोड़ी देर सुस्ताने का मौका भी दिया गया था. गीतों से वातावरण गुंजायमान था. फिर खेल होने थे सो सब औरतें उसी तैयारी में व्यस्त थीं. खूब हंसीखुशी के बीच खेल हुए. मोहना और विलास ने बहुत संयम से भाग लिया. न कोई छीनाझपटी और न कोई खींचतानी. मोहना खुश थी कि उस की पसंद सही निकल रही है वरना उस के बड़े भैया की शादी में भाभी के हाथों में उन के अपने नाखून गड़ कर लहूलुहान हो गए थे पर उन्होंने भैया को बंद मुट्ठी नहीं खोलने दी थी. ऐसे खेलों का क्या फायदा जो शादी के माहौल में नएनवेले जोड़े के मन में प्रतियोगियों जैसी भावना भर दें.