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दिशा अपने को प्रसन्न रखने का भरपूर प्रयास कर रही थी. स्वयं को सांत्वना देती रहती थी कि कभी न कभी समय और विक्रांत का मन बदल ही जायेगा. लेकिन सुधरना तो दूर विक्रांत की निर्लज्जता दिनों-दिन बढ़ रही थी. हद तो तब हुई जब वह कौल गर्ल्स को घर पर बुलाने लगा. दिशा के बैड-रूम में उसके पति की किसी और के साथ हंसने-खिलखिलाने की आवाज़ बाहर तक आती. जब एक दिन निराश हो दिशा ने इसका विरोध किया तो विक्रांत उसे संकीर्ण विचारधारा की पिछड़ी हुई औरत कहकर मज़ाक उड़ाते हुए बोला, “तुम जैसी कंज़र्वेटिव औरत के लिए मेरे दिल में कभी जगह नहीं हो सकती. चुपचाप घर के कोने में पड़ी रहा करो. पैसा जब चाहे मांग लेना, कभी मना नहीं करूंगा. बस उन पैसों के बदले सोसायटी में मेरी प्यारी सी संस्कारी धर्मपत्नी बनी रहना और मैं बना रहूंगा तुम्हारा शरीफ़ सा सिविलाइज़्ड हज़बैंड!”

गुस्से से थर-थर कांपती दिशा ने यह सुन घर छोड़ने में एक मिनट की भी देरी नहीं की. विक्रांत के क्षमा मांगने पर दिशा के माता-पिता ने उसे एक मौका और देने को कहा, लेकिन वह नहीं मानी. दिशा की कोई मांग नहीं थी इसलिए तलाक़ जल्दी हो गया. इक्नौमिक्स में एमए करने के बाद एक प्राइवेट बैंक में उसकी नौकरी लग गयी. पिछले तीन वर्षों से माता-पिता के साथ रह रही थी वह.

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अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई और दिशा को आभास हुआ कि वह गैस्ट हाउस में लेटे हुए न जाने कितने वर्ष पीछे चली गयी थी. ‘लगता है डायरेक्टर सर होंगे, मीटिंग को लेकर कुछ ज़रुरी बात करनी होगी.’ सोचते हुए दिशा ने दरवाज़ा खोला तो सामने अम्बर को देख आश्चर्यमिश्रित हर्ष से उसका मुंह खुला रह गया.

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