दीपक ने खाना खाया और फिर से थैंक्स कहा. अवनि ने दीपक की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो वह थोड़ी देर सोचता रहा. अवनि ने कहा, ‘‘कोई जल्दी नहीं है. आराम से सोच लो.’’ दीपक ने कहा, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. मेरे दोस्तों में कोई लड़की नहीं है, इसलिए मैं जरा घबरा रहा था.’’ फिर दीपक ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘डन’’ और अवनि से हाथ मिलाते हुए विदा ली.
अगले दिन सुबह कालेज समय से डेढ़ घंटे पहले ही दीपक, अवनि के घर आ गया. अवनि ने जल्दी आने का कारण पूछा तो वह बोला, ‘‘तुम रोज बस से जाती हो, तो मुझे लगा कि कहीं निकल न जाओ, इसलिए.’’
‘‘नहीं मैं 1 घंटा पहले ही निकलती हूं. बस से कालेज पहुंचने में 45 मिनट लगते हैं.’’ अवनि ने मुसकराते हुए उत्तर दिया. दोनों ने चाय पी और मोटरसाइकल से कालेज के लिए रवाना हुए. यह सिलसिला यों ही चलता रहा. दीपक उसे कालेज के लिए लेने आया. अब वह उसे कालेज में फ्री समय में मिलने भी लगा. देखते ही देखते 3 वर्ष हो गए. अवनि और सुधा का बीकौम पूरा हो गया और दीपक ने एमकौम फाइनल कर लिया और वह सीए करने के साथसाथ एक प्राइवेट कंपनी में जौब भी करने लगा. नौकरी अच्छी थी और सैलेरी भी, पर काम का बोझ ज्यादा था.
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अवनि ने कई बार उस से कहा, ‘‘कोई दूसरी जौब देख लो, यहां काम ज्यादा है तो.’’ दीपक हर बार मुसकराते हुए कहता, ‘‘काम तो दूसरी जगह भी रहेगा, काम तो काम है. समय पर तो पूरा करना ही पड़ेगा. सैलरी भी ठीक है. गैराज के जैसे रोज काला तो नहीं होना पड़ता, धूलधुएं में तो नहीं रहना पड़ता.’’ उस का यह उत्तर सुन कर अवनि चुप हो जाती और फिर उस ने भी कहना छोड़ दिया.
अवनि और दीपक की दोस्ती गहराती जा रही थी. दोनों एकदूसरे से मन की बात कहते और लड़तेझगड़ते भी. घूमनेफिरने के साथसाथ पढ़ाई भी जारी थी और दीपक की जौब भी.
एक दिन अचानक सड़क दुर्घटना में अवनि के पिता की मृत्यु हो गई. अवनि पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. उस की और छोटी बहन की पूरी जिम्मेदारी उस के कंधों पर आ गई. वह तो जैसे इस बोझ से टूट ही गई थी. रिश्तेदार और आसपड़ोस के लोग तो आए और सांत्वना दे कर, हाथ जोड़ कर चले गए, पर दीपक ने उसे संभाला. उस ने अवनि को ढांढ़स बंधाया और उसे इस मुसीबत के समय हौसला रखने व अपनी, मां और छोटी बहन के प्रति जिम्मेदारी से घबरा कर भागने की नहीं, बल्कि इस मुसीबत से लड़ने की शक्ति दी. दीपक ने कहा, ‘‘देखो, अगर इस दुखद घड़ी को दूर करना है तो इस से डरने की नहीं, लड़ने की जरूरत है. मां और छोटी बहन का अब तुम ही तो सहारा हो. अगर तुम इस तरह हिम्मत हार जाओगी तो इन को कौन संभालेगा और फिर मैं भी तो हूं तुम्हारे साथ. इस परिस्थिति में तुम को ही हिम्मत दिखानी है और अपने पिता की अपूर्ण जिम्मेदारियों को उठा कर घर को संभालना है. दृढ़शक्ति से उठो और आगे बढ़ती चलो और सब को बता दो कि तुम साधारण लड़की नहीं, तुम में अब भी वही हिम्मत, जोश और साहस है जो पिता की मृत्यु से पहले था.’’
अवनि पर दीपक की बातों का असर हुआ. उस ने मां और छोटी बहन की तरफ देखा और कहा, ‘‘दीपक, तुम ने ठीक ही कहा. मैं हिम्मत नहीं हारूंगी. इस विपरीत परिस्थिति के बोझ से अपने कंधे टूटने नहीं दूंगी, बल्कि पूरी ताकत से यह बोझ उठाऊंगी. मैं अब जौब कर के घर को चलाऊंगी और बहन को अच्छे से पढ़ा कर उस की शादी करवाऊंगी. दीपक ने मुसकराते हुए उस के कंधे को थपथपाया और वहां से चला गया. अगले 2 दिनों तक वह अवनि के यहां नहीं आया. 2 दिन बाद दीपक आया. उस ने बताया कि वह 2 दिन अपने औफिस से समय निकाल कर दोपहरशाम को अवनि के लिए जौब ढूंढ़ रहा था. इस में उसे सफलता भी मिली. उस ने बताया, ‘‘एक कंपनी में क्लर्क की पोस्ट खाली है, कल तुम यहां अपना रिज्यूमे ले कर चली जाना, तुम्हारा इंटरव्यू होगा. हो सकता है यह जौब तुम्हें ही मिल जाए. वहां का मैनेजर हमारे औफिस में आता रहता है, उस ने बताया कि उन्होंने इस पोस्ट के लिए अभी तक विज्ञापन नहीं दिया है. तुम कल सुबह 10 बजे चली जाना.’’
अगले दिन अवनि ठीक समय पर इंटरव्यू के लिए पहुंच गई. उस ने सोचा, ‘अगर नौकरी नहीं मिली तो…’ थोड़ी देर बाद वह इंटरव्यू के लिए अंदर गई और आधे घंटे बाद बाहर निकली तो घबराई हुई थी. परिणाम के लिए उसे शाम को बुलाया गया तो उस ने घर वापस जाने के बजाय वहीं रुकना बेहतर समझा. शाम को उसे बताया गया कि वह सिलैक्ट हो गई और कल से ही औफिस जौइन कर सकती है. उस की आंखों से आंसू आ गए, ये खुशी के आंसू थे. अवनि घर पहुंची. उस ने अपने पिता की फोटो को हाथ जोड़े और मां को गले लगाते हुए कहा, ‘‘मुझे नौकरी मिल गई. अब हमें कोई परेशानी नहीं होगी. मैं खूब मेहनत करूंगी और छोटी को पढ़ाऊंगी भी.’’
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थोड़ी देर बाद दीपक आया. उस ने देखा अवनि बहुत खुश है तो वह समझ गया कि उसे नौकरी मिल गई. अवनि ने कहा, ‘‘थैंक्स दीपक, तुम्हारे कारण ही मुझे नौकरी मिल सकी.’’ ‘‘नहीं यह तुम्हारी योग्यता और समझदारी के आधार पर मिली है, अब खूब मेहनत करो और आगे बढ़ो,’’ दीपक ने कहा.
अवनि की सालभर की नौकरी होने पर उसे बढ़े हुए इन्क्रीमैंट की जानकारी देते हुए उस के मैनेजर ने कहा, ‘‘मेरा ट्रांसफर हो गया है, कल से तुम नए मैनेजर के साथ ऐसी ही लगन व मेहनत से काम करना.’’
अगले दिन नए मैनेजर बाकी स्टाफ से पहले औफिस आ गए और फाइल देखने लगे. बाद में उन्होंने स्टेनो से एक लैटर टाइप करवाया और उस पर साइन करने के बाद आगे की कार्यवाही के लिए अवनि के पास भेज दिया. अवनि ने लैटर डिस्पैच करते हुए जब लैटर पढ़ा तो वह चौंक गई. लैटर में लिखी रकम के टोटल में फर्क आ रहा था जिस से कंपनी को 50 हजार रुपए का नुकसान हो सकता था. वह फौरन उठी और मैनेजर के रूम में गई. नेमप्लेट पर लिखा था-नीरज राठौर. वह दरवाजा नौक कर बोली, ‘‘मैं अंदर आ सकती हूं?’’
अंदर से आवाज आई, ‘‘कृपया आइए.’’ गेट खोल कर वह अंदर गई तो देखा मैनेजर की कुरसी पर एक नौजवान बैठा हुआ है और कुछ फाइलें उस के सामने फैली हुई हैं. उस ने वह लैटर उन की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘सर, मैं मिस अवनि चौधरी, यहां की क्लर्क. आप ने अभी जो लैटर टाइप करवाया है उस में रकम के टोटल में 50 हजार रुपए का फर्क है. आप कहें तो मैं इस की फाइल चैक कर लूं. मैनेजर ने देखा तो उसे अवनि की बात सही लगी. उस ने फाइल देते हुए कहा, ‘‘तुम सही कहती हो, फर्क है, तुम ने गलती पकड़ी है, इस से कंपनी को 50 हजार रुपए का नुकसान हो सकता था. मुझे खुशी है कि तुम जैसी मेहनती और ईमानदार लड़की इस कंपनी में काम करती है.’’ अवनि ने थैंक्यू कहा और फाइल ले कर बाहर निकल आई.
कई दिनों तक नीरज ने अवनि और उस के काम पर नजर रखी. उसे अवनि की सादगी, व्यवहार और काम करने का तरीका काफी पसंद आया (शायद अवनि भी). अब वह औफिस के हर मामले में उस की सलाह लेने लगा. एकदो बार तो उस ने पर्सनल मामले में भी उस से पूछ लिया. नीरज और अवनि को साथसाथ काम करते हुए कई महीने हो गए. नीरज अवनि को चाहने भी लगा था, शायद अवनि भी नीरज को. लेकिन दोनों एकदूसरे से मन की बात कह नहीं पा रहे थे. दीपक को अवनि की बातों से इस का अंदाजा हो गया था. दीपक ने अवनि की मां को नीरज के बारे में बताया. मां ने कहा, ‘‘तुम अवनि को अच्छी तरह जानते हो. उस की पसंदनापसंद भी समझते हो. तुम ही बात करना उस से. लेकिन पहले नीरज के बारे में जानकारी हासिल कर लो कि कैसा लड़का है, उस का परिवार, व्यवहार आदि.’’ दीपक ने मां को आश्वासन दिया कि वे चिंता न करें, वह सब देख लेगा.
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