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कई दिनों तक सुधीर और वैशाली के बीच सन्नाटा सा पसर गया था. पहले वह आ कर बच्चों के हालचाल उस से पूछता था पर अब आ कर खाना खा कर चुपचाप सो जाता था. वैशाली सोच रही थी कि आज सुधीर से पूछेगी कि वह इतना क्यों बदल गया है? पर उस के कुछ कहने के पहले ही सुधीर उस से पूछ बैठा, ‘‘तुम शिल्पा के घर गई थीं?’’

‘‘क्यों, नहीं जाना चाहिए था?’’ सुधीर का सपाट सा चेहरा देख कर वह चौंक गई थी.

‘‘मुझ से पूछ तो लेतीं, मेरे खयाल में मैं कोई ऐसा काम नहीं कर रहा हूं जिस के लिए तुम इतना परेशान हो,’’ सुधीर उसी स्वर में बोला.

‘‘उस ने मेरी शांति भंग कर दी है. मेरा घर तोड़ने पर तुली है और तुम कह रहे हो कि कुछ हुआ ही नहीं,’’ वैशाली लगभग चीख उठी थी.

‘‘तुम्हारा घर कौन छीन रहा है. मैं उसे नया घर दे रहा हूं,’’ सुधीर ने उसी शांति से जवाब दिया.

वैशाली जैसे आसमान से नीचे आ गिरी, ‘‘यह क्या कह रहे हो? प्लीज सुधीर, मेरी गलती तो बताओ. तुम्हारे इस कदम से बच्चों पर क्या असर पड़ेगा?’’

‘‘क्या कहूं मैं? मैं ने बहुत सोचा पर यह कदम उठाने से खुद को रोक नहीं सका.’’

‘‘क्या वह मुझ से बहुत अच्छी है, सुंदर है, सलीके वाली है? क्या लोग मेरे से ज्यादा उस की तारीफ करते हैं?’’ वैशाली की आंखों में हार की नमी आ गई थी.

वैशाली के बहुत पूछने पर सुधीर धीरे से मुसकराया, ‘‘यही सब तो नहीं है उस में. वह एक आम सी लड़की है. मेरे साथ रहेगी तो लोग मुझे भूल कर भी उसे नहीं देखेंगे. कोई हमारी जोड़ी को बेमेल नहीं कहेगा. मेरी हीन भावना अंदर ही अंदर मुझे नहीं मारेगी.’’

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