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लेखक- प्रशांत जोशी

सुधा ने बाराबंकी के एक सरकारी स्कूल से इंटर की परीक्षा पास कर ली थी. उसी दिन उस का रिजल्ट आया था. उस के 78% मार्क्स आए थे और वह अपनी क्लास में सब से ज्यादा नंबर पाने वाली लड़की थी. वैसे भी यूपी बोर्ड में इतने नंबर लाना अपनेआप में किसी सम्मान से कम नहीं था. उस के नंबर सुन कर महल्ले भर में उस की तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे, लेकिन सुधा के मन में अपनी इस कामयाबी को ले कर जरा भी खुशी नहीं थी. होती भी कैसे, घर वालों ने रिजल्ट आने से पहले ही अपना फैसला उसे सुना दिया था कि उसे आगे की पढ़ाई बंद करनी होगी.

उस ने बाराबंकी के ब्लौक अस्पताल में पिता को मिले 2 कमरों के उस सरकारी मकान में पहली बार घर वालों के फैसले के खिलाफ बगावती तेवर अपनाए थे. उस ने कैसे अपने पिता और बड़े भैया से पहली बार ऊंचे स्वर में बात करते हुए कह दिया था कि वह अपनी आगे की पढ़ाई हर हाल में जारी रखेगी.

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सब उस के आगे पढ़ने के फैसले के खिलाफ थे. वे किसी तरह शायद उस की आगे प्राइवेट पढ़ाई करने के लिए राजी भी हो जाते, लेकिन उस ने दिल्ली जा कर पढ़ाई करने की बात कह कर घर में धमाका कर दिया. अकेली लड़की को दूसरे शहर भेजने की हिम्मत और उस के लिए पैसों का इंतजाम करने की हैसियत दोनों ही उन में नहीं थी. उस ने घर वालों से कह दिया कि उसे उन से किसी तरह के रुपयों की जरूरत नहीं, वह दिल्ली में अपना खर्च खुद निकाल लेगी.

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