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कहां तो स्वयं उन्होंने मेरी पढ़ाई छुड़ा दी थी और आज मुझे अपनी गृहस्थी उजाड़ने का कारण समझते हुए मुझे घर से दूर पढ़ने के लिए कह रहे हैं. ये कैसे पिता हैं जिन्हें अपनी औलाद पर भरोसा नहीं? ये कैसे पति हैं जिन्हें अपनी पत्नी पर भरोसा नहीं? मुझे नफरत सी होने लगी उन से. विमाता को जब पता चला कि उन के पति मुझे बाहर पढ़ने भेजना चाहते हैं तो उन्होंने विरोध करते हुए कहा, ‘एक ही तो व्यक्ति है जिस से हंसबोल कर समय कट जाता है, आप से मेरी उतनी खुशी भी नहीं देखी जाती. अगर आप को अपने ऊपर विश्वास ही नहीं था तो क्यों मुझ से शादी की? मैं सब समझ रही हूं कि आप के मन में क्या चल रहा है.’ ‘मेरे मन में कुछ चले न चले, समाज के लोगों के मन में चल रहा है.’ ‘आप को लोगों की बात पर भरोसा है, अपनी पत्नी, अपने बेटे पर भरोसा नहीं है?’

‘मैं लोकलाज के डर से कह रहा हूं,’ बात में नरमी लाते हुए पिता ने कहा. ‘तो फिर वे कहीं नहीं जाएंगे.’ ‘बालक है, उस का भी भविष्य है. हम अपनी सुखसुविधा के लिए उस के भविष्य से खिलवाड़ नहीं कर सकते.’ विमाता ने चुप रहना उचित समझा. अपने पति के मन को वे ताड़ गई थी. बारबार रोकने की बात कहने से उन के चरित्र पर उंगली भी उठ सकती थी. फिर बेटे के भविष्य के बारे में सोचना भी जरूरी था. वे चुप रहीं. और पिता ने मुझ से कहा, ‘तुम इस घर के बड़े लड़के हो. तुम्हारा कर्तव्य बनता है घर की जिम्मेदारियां संभालना. उस के लिए तुम्हें पढ़लिख कर अच्छी नौकरी करना जरूरी है. तुम ऐसा करो, छतरपुर कालेज में ऐडमिशन ले लो. वहीं किराए का कमरा या होस्टल में रहने का इंतजाम कर लो. जो खर्चा आएगा मैं भेज दिया करूंगा.’

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