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लेखिका- नमिता दुबे

कुछ बातों को ले कर उस की अपने हैड से अनबन होने लगी है. उसे कभीकभी लगता है कि उस के एचओडी उस के औरत होने के कारण उस पर ऐसी कई जिम्मेदारियां लाद देते हैं, जो उन के अनुसार औरतों को शोभा देती हैं. मसलन, कालेज की ऐनुअल फेस्ट आयोजित करना. ऐसा नहीं है कि उसे इस से कोई परेशानी है पर जब विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय साहित्यक सम्मेलन व्यवस्थित करने का उस ने अनुरोध किया था तब उसे संकेतात्मक ढंग से सम झा दिया गया था कि देश के साहित्यकारों को एकत्रित करने का भार उस से वहन नहीं होगा.

मन बहलाने के लिए विभा को फोन लगाया तो मनोदशा और बिगड़ गई. मुहतरमा अपनी ननद के साथ किसी पार्टी में जाने की तैयारी में व्यस्त थीं, ‘‘अरे दीदी, इतनी सुंदर साड़ी भेंट दी है जीजी ने मु झे दीवाली पर, मैं क्या बताऊं.’’

उस का खून जल उठा. एक विभा है जो दिनरात मौजमस्ती में लगी रहती है और एक वह है जो यहां घर से इतनी दूर सड़ रही है. उस की बचपन से ही अपने में मग्न रहने की आदत के कारण उस की किसी से इतनी मित्रता नहीं हुई थी कि उसे दीवाली के लिए निमंत्रण मिलते. वैसे भी यहां लोग दीवालीहोली कम ही मनाते हैं. मां ने बुलाया था घर, पर क्या करती छुट्टी ही नहीं थी इतनी.

रहरह कर उस का ध्यान विभा पर चला जाता कि वह यहां नितांत अकेली है और विभा ने उस का रिप्लेसमैंट भी खोज लिया. घर बसाना यही उस का सपना था.

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