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लेखक- वेद प्रकाश गुंजन

लेकिन रोशन समझने को तैयार कहां था, ‘सचाई यह नहीं है लाली. सच तो यह है कि पंडितजी की तरह तू भी नहीं चाहती कि गंदी बस्ती का कोई आदमी आ कर तुझ से मिले. तू बदल गई है लाली, तू अब लालिमा शास्त्री जो बन गई है,’ रोशन ने कटाक्ष किया.

‘सच तो यह है रोशन कि तू मेरी सफलता से जलने लगा है. तू पहले भी मुझ से जलता था जब मैं टे्रन में तुझ से ज्यादा पैसे लाती थी. सच तो यह है, तू नहीं चाहता कि मैं तुझ से आगे रहूं. मैं नहीं जा रही गांव, तुझे जाना है तो जा,’ लाली के होंठों से लड़खड़ाती आवाज निकली.

रोशन आगे कुछ नहीं बोल पाया. बस, उस की आंखें भर आईं. जिस की सफलता के लिए उस ने अपने शरीर को जला दिया आज उसी ने अपनी सफलता से जलने का आरोप उस पर लगाया था. ‘खुश रहना, मैं जा रहा हूं,’ यह कह कर रोशन कमरे से बाहर निकल आया.

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रोशन गांव तो चला गया पर गांव में पुलिस 1 साल से उस की तलाश कर रही थी. आश्रम वालों ने उस के खिलाफ नाबालिग लड़की को भगाने की रिपोर्ट लिखा दी थी. गांव पहुंचते ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया और कोर्ट ने उसे 1 साल की सजा सुनाई.

इधर 1 साल में लालिमा शास्त्री ने लोकप्रियता की नई ऊंचाइयों को छुआ. उस के चाहने वालों की संख्या रोज बढ़ती जा रही थी और साथ ही बढ़ रहा था अकेलापन. रोशन के लौट आने की कामना वह रोज करती थी.

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