लेखिका- दिव्या विजय
अनन्या ने गरदन घुमा कर देखा. चाकू, पैपर स्प्रे, पर्स सब रखा था. कुछ भी मिसिंग नहीं था. कल रात की सारी घटना उसे याद आ गई.
‘‘कल टैक्सी वाला आप को यहां छोड़ गया था. जब तक आप के टैस्ट नहीं हो गए यहीं रहा,’’ नर्स ड्रिप की स्पीड एडजस्ट करते हुए कह रही थी.
अनन्या सुन कर चौंकी कि उस के घर पर तो उस की पत्नी और बच्ची भूखी थी.
‘‘रात की ड्यूटी पर मैं ही थी. बेचारा बहुत चिंतित था. खुद को जिम्मेदार मान रहा था,’’ नर्स जैसे उस की पैरवी कर रही थी.
अनन्या चुप थी. क्या कहती? वह शायद भला आदमी था. उस ने बिना वजह उस पर शक किया. माना दुनिया में अपराधी होते हैं पर सभी तो उस श्रेणी में नहीं आते. क्या कल वह एक निरपराध व्यक्ति को अपराधी सिद्ध करने पर तुली हुई थी? कहीं ड्राइवर भांप तो नहीं गया था कि वह उस के बारे में क्या सोच रही है. वह अचानक शर्मिंदगी के एहसास में डूब चली.
नर्स फिर आई और उसे 2 गोलियां खिला आराम करने की ताकीद कर चली गई.
पर अब अनन्या को आराम कहां. कल 1 घंटे में उस ने खुद को ही नहीं शायद ड्राइवर
को भी परेशान कर दिया था. बारबार खिड़की बंद करने का उस का अनुरोध अनन्या को याद आया. उस से गलती तो नहीं हो गई? क्या उसे फोन कर शुक्रिया कह देना चाहिए? लास्ट डायल में उस का नंबर होगा. उस ने फोन उठाया तो वह बंद था.
तभी नर्स भीतर आई तो अनन्या सहसा पूछ उठी, ‘‘सिस्टर, मेरे घर का नंबर कहां से लिया था आप ने? मेरे मोबाइल से?’’