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‘‘अरे आप मजाक समझ रही हैं क्या? मैं एकदम सच कह रहा हूं. आप ने क्या फिगर मैंटेन किया है… आप को तो कोई भी 2 बच्चों की मां तो दूर मैरिड भी नहीं समझ सकता. बिलकुल कालेजगोइंग स्टूडैंट लगती हैं.’’

‘‘हो गया पूरा पुराण? चलो, अब घर जाओ अपने,’’ वह रुखाई से बोली. फिर भी छोटू मुसकराते हुए एक गहरी नजर से उसे निहार गया.’’

अपनी तारीफ किसे अच्छी नहीं लगती. रीमा अपने बैडरूम में लगे आदमकद आईने के आगे खड़ी हो गई. बदन में जो चरबी बच्चों के पैदा होने पर चढ़ गई थी वह दिन भर की भागदौड़ में कब पिघल गई पता ही न चला उस की शादी न हुई होती तो वह भी अपनी सहेली सुमन की तरह पीएचडी करने कालेज जा रही होती. क्या गलत कहा छोटू ने, पर वह तो घरगृहस्थी की बेडि़यों में जकड़ी है. कालेज लाइफ की उन्मुक्त जिंदगी उस के हिस्से में नहीं थी. मन मसोस कर रह गई. सुमन ने ही उसे बताया था कि तुझे होली में बड़ा बढि़या टाइटिल मिला था, ‘इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं… तेरी अचानक शादी का तो बेचारे क्लासमेट्स को पता ही न था. कितने दिल तोड़े तू ने कुछ पता भी है? जब दोबारा कालेज जौइन किया था तब उसे ऐसी कितनी बातों से दोचार होना पड़ा था. शशि उसे देख उछल पड़ी थी कि अरे मेरी लाड्डो जीजाजी के साथ कैसी छन रही है? कुछ पढ़ाई भी की तुम ने?

उसे अपने विवेक के साथ बिताए अंतरंग पल याद आ गए और उस का मुखड़ा शर्म से गुलाबी हो गया. मानो उस के बैडरूम में वे सभी अचानक प्रविष्ट हो गई हों.

‘‘अरे इसे देखो… क्या रूप निखर आया है,’’ सुमन ने छेड़ा.

यह सुन अनीता चहक कर बोली, ‘‘मेरी शादी होगी न तब देखना मेरा रूप.’’

सभी उस के बड़बोलेपन पर हंस पड़े.

कभी कोई परीक्षा कक्ष में कोई छेड़ देता, ‘‘क्यों तेरी ससुराल में साससुर सब साथ रहते हैं क्या?’’

वह झुंझला कर बोल पड़ती, ‘‘कुछ नहीं पढ़ा है यार. जो थोड़ाबहुत याद है उसे भी तुम लोगों की बकवास सुन कर भूल जाऊंगी.’’

फिर एक गहरी सांस ली उस ने कि बीती बातें क्या याद करनी, पर मन था कि भटक कर उन्हीं लमहों में जा पहुंचा…

उन्हीं दिनों मायके में उस की चचेरी बहन का विवाह तय हो गया. तब अपनी शादी के 5 वर्षों के बाद पहली बार उस ने ब्यूटीपार्लर का रुख किया था. विवेक के लाख मना करने पर भी बालों को एक नया आकार दिया. इतनी तैयारी तो अपने विवाह के पूर्व भी न की थी. शायद वह अपनी दबी हसरतों को इस मौके पर पूरा कर लेना चाहती थी. हुआ भी वैसा ही. विवाह के दिन जब वह अपने शादी के लहंगे में सजधज कर विवेक के सम्मुख खड़ी हुई तो वह बौखला सा गया, ‘‘इतना सजनेधजने की क्या जरूरत थी… कोई तुम्हारी शादी है क्या?’’

‘‘न हो, मेरी बहन की तो है और वह भी मुझ से बस 1 साल छोटी है… कितने सारे कौमन फ्रैंड हैं हमारे… आज सब मिलेंगे वहां पर… और ये मम्मीपापा, बच्चे सब कहां हैं?’’ उस ने हैरानी से पूछा.

‘‘तुम्हें अपने बनाव शृंगार से फुरसत नहीं थी. वे सभी टैक्सी कर चले गए. कह गए तुम दोनों बाइक से घर को लौक कर आ जाना.’’

‘‘तो चलो फटाफट,’’ उस ने उतावलेपन से कहा.

‘‘पहले बाइक की चाबी तो ले कर आओ… वहीं ऊपर तुम्हारे बैडरूम में है,’’ उस का बैडरूम अब भी उसी के नाम से था मायके के… कितनी यादें जुड़ी हैं इस कमरे से रीमा की. अभी भाई की शादी नहीं हुई है तो पूरे घर में उसे अपना ही राजपाठ दिखाई देता है.

‘‘तुम ले आओ न प्लीज, यह लहंगे में सीढि़या चढ़नेउतरने में दिक्कत होती है,’’ उस ने लहंगे को सोफे पर फैला कर बैठते हुए कहा.

‘‘तो यहीं बैठी रहो… मुझे नहीं पता कि तुम ने बाइक की चाभी कहां रखी है,’’ विवेक भी वहीं सोफे पर बैठते हुए बोला.

रीमा एक झटके से उठी और लहंगे को संभालती बड़बड़ाते हुए सीढि़यां चढ़ने लगी कि अपनी बहन की शादी होती तो साहब सब से पहले पहुंच जाते तोरण बांधने… मेरे मायके की शादी है, तो जितना नाटक करें उतना ही कम है.

चाबी बैड पर ही रखी थी. जैसे ही उठा कर पलटी एक झटके में विवेक ने उसे बांहों में भर बैड पर गिरा दिया. इस से पहले कि वह कुछ बोल पाती उस के होंठ पर विवेक ने अपने प्यार का ताला जड़ दिया.

किसी तरह खुद को अलग कर बोली, ‘‘मेरा सारा मेकअप खराब कर दिया तुम ने… यह सब बंद करो. वहां सब हमारा इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘करने दो इंतजार सब को… पर मुझ से इंतजार नहीं होगा,’’ विवेक उस के कान में फुसफुसाया.

रीमा अपनी बेकाबू धड़कनों को संभालते हुए बोली, ‘‘अभी चलो प्लीज… हम जयमाला होते ही लौट आएंगे.’’

‘‘नहीं पहले प्रौमिस करो… तुम मायके में इतनी रम जाती हो कि फिर कुछ याद नहीं रहता,’’ विवेक अपनी बांहों के घेरे को और तंग करते हुए बोला.

‘‘पक्का प्रौमिस, कह कर रीमा खिलखिलाई, तो विवेक ने एक बार फिर से उस की लिपस्टिक बिगाड़ दी.’’

‘‘चलो हटो… वहां शादी हो रही है और यहां…’’ उस ने विवेक को अपने से दूर करते हुए कहा.

शादी में भी जयमाला के बाद विवेक की घर चलो की जिद ने रीमा का कितना मजाक बनाया था. वह सब को सफाई देतेदेते थक गई थी कि ये आज सुबह ही दिल्ली से आए हैं… सफर में नींद पूरी नहीं हुई है, मगर सभी मुंह दबा कर हंसते रहे. उसे अच्छी तरह समझ आ गया कि विवेक को उस के शृंगार को ले कर इतनी आफत क्यों आई थी. दरअसल, वह चाहता ही नहीं था कि उस के अलावा किसी की नजर उस पर पड़े, लेकिन उस के मुंह से कभी तारीफ के शब्द नहीं निकलते.

कितना सूनापन लगने लगा था. विवेक के दिल्ली जाने के बाद… दिन तो स्कूल, बच्चों रसोई में बीत जाता. मगर रात बहुत लंबी लगतीं. फोन तो रोज ही आता, मगर तब लैंड लाइन फोन होने के कारण कभी मां, कभी पिताजी ही बात कर फोन रख देते. अगर रीमा ने उठाया तब तो ठीक वरना वे उसे बता कर मुक्ति पा जाते कि विवेक का फोन आया था.

उस दिन फोन पर विवेक ने बताया कि वह मंगलवार को 12 से 1 के बीच घर पहुंच जाएगा. अत: तुम स्कूल से आधे दिन की छुट्टी ले कर आ जाना. बच्चे स्कूल बस से बाद में अपनेआप आ जाएंगे.

उस का उतावलापन सुन कर वह बोल पड़ी, ‘‘दिन के बाद रात तो आ ही जाएगी.’’

तब विवेक गुस्से से बोला था, ‘‘रहने दो तुम, अब मैं बाद में छुट्टी लूंगा.’’

‘‘अच्छा, नाराज न हो. मैं हाफ डे ले लूंगी,’’ उस ने कमरे में चारों तरफ नजर दौड़ा कर कहा, ‘‘कमरे में कोई मौजूद नहीं था. उसे झुंझलाहट हो आई कि फोन तो घर के चौराहे पर रखा है और लाट साहब को रोमांस सूझता है.’’

उस दिन उस ने सुबह ही घर में बता दिया था कि लंच टाइम तक ये आ जाएंगे. स्कूल में मासिक परीक्षा चल रही है. अत: स्कूल जाना जरूरी है. स्कूल में प्रिंसिपल से कहा कि घर में फंक्शन है. आज फिर जल्दी जाना है. कंप्यूटर प्रैक्टिकल परीक्षा पहले 4 पीरियडों में ही निबटा दी.

आगे पढ़ें- छुट्टी की मंजूरी मिलते ही तुरंत स्कूल के गेट तक…

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