पहली बार विहाग को दो कदम आगे सोचने वाला मिला था. अमूमन आम भारतीय पुरुषवादी सोच इस ओर घूम जाती है कि लड़की शादी से पहले इतनी तेज है तो शादी के बाद जरूर पति को गुलाम बना कर छोड़ेगी, विपरीत इस के विहाग काफी प्रसन्न था कि यह लड़की जिम्मेदारी उठाने में निसंकोच है. यह मिशन सिर्फ क्वार्टर का ही तो नहीं था, मिशन जीवन को एक सशक्त आधार देने के लिए ठोस संबल के चुनाव का भी था.
यद्यपि विहाग का मुझ पर इस काम को पूरा कर लेने के संबंध में विश्वास कम ही था, लेकिन अभी उस के पास सिवा इस के कोई चारा भी नहीं था कि वह इस मामले में मुझे अपना प्रयास कर लेने दे.
घर जा कर मैं ने अपने कालेज के दोस्त का नंबर ढूंढ़ा, जो रेलवे पुलिस बल में अधिकारी था. अच्छी बात थी कि इसी शहर में उस की पोस्टिंग थी. मैं ने अपनी परेशानी बताई तो वह गुंडों को क्वार्टर से हटवाने में मेरी मदद करने को राजी तो हो गया लेकिन बात यह थी कि इस समय वह स्वयं कुछ व्यस्त और परेशान चल रहा था.
दरअसल उस की दूसरे राज्य में शादी तय हो गई थी, और उसे बारातियों के लिए ट्रेन में कोच बुक करना था, जिस में कुछ कानूनी बातें आड़े आ रही थी. मैं इन दोनों कामों के बीच सेतु बन गई और विहाग की मदद से उस दोस्त का काम और दोस्त की मदद से विहाग का काम करवा दिया. दोनों बेहद खुश हुए और विहाग के दिल में मेरे लिए एक अलग जगह बन गई.