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मीरा के जाते ही सुजाता सोच में पड़ गई कि सही तो कह रही है मीरा, वह उसे प्यार करती है और उस की सच्ची हमदर्द है… अब सच्चे रिश्तों के नाम पर 2-4 नामों की ही मौजूदगी उस की जिंदगी में दर्ज है. दरअसल, कुणाल के जाने के बाद उस से जुड़े सभी रिश्तों की असलियत उस के सामने बेपरदा हो चुकी थी. कुणाल के सामने कभी उस की जीहुजूरी करने वाले रिश्तेदार उस के जाने के बाद अपने फायदे के लिए साजिश रचने वाले पुतले बन चुके थे. यहां तक कि उस की संपत्ति हथियाने के लिए दोनों मांबेटी की जान के दुश्मन तक बन गए थे.

यह तो गनीमत थी कि दामाद के रूप में उसे समर जैसा बहुत ही होनहार व लायक लड़का मिल गया था, जो उसे अपनी मां के समान ही स्नेह और आदर देता था. पलक को उसे जीवनसंगिनी के रूप में सौंप कर वह भी निश्चिंत हो गईर् थी. हां, पलक के ससुराल जाने के बाद उस की जिंदगी में एक खालीपन सा जरूर आ गया था. एक मीरा ही थी, जो उसे समझती थी. वैसे तो अपनी सोशल लाइफ में वह बहुतों से जुड़ी थी, पर सब के चेहरों पर लगे मुखौटों को भी वह अच्छी तरह पहचानती थी.

हां, सोमनाथजी की आंखों में सुजाता ने ईमानदारी की झलक अवश्य देखी थी, परंतु वह उन्हें अभी जानती ही कितना थी. उन से मिले कुल 1 हफ्ता ही तो हुआ था. लेकिन न जाने फिर भी क्यों उन की बातों पर विश्वास करने को जी चाहता था. उन का साथ, उन की बातें सुजाता को दिली सुकून देती थीं. उन से अपने दिल की बातें कह कर उस का मन हलका हो जाता था.

‘‘अगले हफ्ते हम सभी गोवा जाने का प्लान कर रहे हैं. तुम साथ आना चाहेगी.’’ एक सुबह मीरा ने सुजाता से पूछा.

‘‘पर मैं वहां अकेली क्या करूंगी? तुम सभी तो अपनेअपने पतियों के साथ रोमांटिक डेट पर बिजी हो जाओगे?’’ सुजाता ने पीछा छुड़ाने की गरज से कहा.

‘‘तो तुम भी अपने दोस्त सोमनाथजी के साथ एक डेट पर क्यों नहीं चल देतीं? उन्हें भी साथ ले लो,’’ मीरा ने उसे छेड़ते हुए कहा.

‘‘अरे वाह, यह तो मैं ने सोचा ही नहीं,’’ घूमने की शौकीन सुजाता ने झट से हां कह दी.

जब तक कुणाल था, सुजाता साल में 2 बार कहीं बाहर घूमने जरूर जाती थी, पर कुणाल के जाने के बाद यह सिलसिला बंद हो चुका था. लेकिन चूंकि चलती का नाम जिंदगी है अत: घर के अकेलेपन से दूर कुछ दिनों के लिए ही सही वह सोमनाथजी के साथ गोवा जाना चाहती थी. घर के सभी काम निबटाने के बाद उस ने सोमनाथजी के मोबाइल पर कौल की.

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‘‘अरे नहींनहीं, मैं वहां जा कर क्या करूंगा? वैसे भी मैं आप के किसी दोस्त को नहीं जानता और फिर फ्रूटी की भी समस्या है, उसे कौन रखेगा?’’ सुजाता के पूछते ही सोमनाथजी ने साफ मना कर दिया.

‘‘उफ, न जाने कितने बहाने हैं आप के पास… यकीन मानिए मेरे दोस्तों से मिल कर आप बिलकुल भी बोर नहीं होंगे और रही फू्रटी की बात तो उसे हम डौगहाउस में छोड़ देंगे,’’ सुजाता ने कहा.

उसी दिन शाम को सुजाता लोगों से पता पूछतेपूछते सोमनाथजी के घर जा पहुंची.

‘‘अरे, आप? यहां?’’ दरवाजे पर खड़ी सुजाता को देख कर सोमनाथ आश्चर्य से भर गए.

‘‘अंदर आने को नहीं कहेंगे?’’ सुजाता के बोलने के अंदाज पर सोमनाथजी को हंसी आ गई.

‘‘आइएआइए, स्वागत है,’’ दरवाजे से एक तरफ हटते हुए सोमनाथजी ने कहा.

‘‘अरे वाह, आप का घर तो बहुत प्यारा है,’’ पूरे कमरे में निगाहें दौड़ाती हुई सुजाता हौल में रखे दीवान पर जा विराजी.

‘‘घर तो घर वालों से होता है. यह तो सिर्फ एक मकान है,’’ सोमनाथजी के भीतर की कराह ने जैसे सुजाता के दिल पर दस्तक की.

‘‘सच में आप का घर बहुत व्यवस्थित है. लगता ही नहीं कि आप यहां अकेले रहते हैं,’’ सुजाता ने बात बदलने के लिए कहा.

‘‘इस का क्रैडिट तो मेरी कामवाली को जाता है. दरअसल, वही आ कर सारी साफसफाई कर देती है. दोपहर का खाना भी बना जाती है. हां, फ्रूटी की देखभाल मुझे ही करनी पड़ती है,’’ सोमनाथजी को तुरंत अपनी गलती का भान हुआ कि उन्हें सुजाता के सामने इस तरह से अपनी दीनता जाहिर नहीं करनी चाहिए.

‘‘अरे हां, मैं फ्रूटी के बारे में पूछने ही वाली थी. कहां है वह?’’ सुजाता ने पूछा ही था कि फ्रूटी बाहर से आती दिखाई दी. सुजाता को वहां बैठे देख दौड़ कर खुशी से उस के इर्दगिर्द चक्कर काटने लगी. उस के पीछे लगभग 30 साल के एक सुदर्शन युवक ने भी हौल में प्रवेश किया.

‘‘ओ हाय… मेरी प्यारी फ्रूटी,’’ कह कर सुजाता ने उसे पुचकारा.

‘‘ये हैं मेरी मित्र सुजाता और सुजाताजी यह है मेरा बेटा अखिलेश,’’ आगंतुक से सुजाता का परिचय करवाते हुए सोमनाथजी ने कहा.

‘‘हैलो आंटी,’’ कहते हुए अखिलेश ने सुजाता के पैर छुए.

‘‘खुश रहो बेटा, बैठो,’’ सुजाता ने स्नेह से उस के सिर पर हाथ फेरा.

‘‘पापा, आज तो फ्रूटी बहुत जल्दी थक गई,’’ अखिलेश ने फ्रूटी को प्यार करते हुए कहा.

‘‘हां, वह भी अब बूढ़ी हो चली है. पता नहीं कब तक साथ निभाएगी,’’ कहते हुए सोमनाथजी की आंखें छलछला उठीं, ‘‘अब तो हम दोनों के जीवन की सांझ हो चली है,’’ न चाहते हुए भी सोमनाथजी का स्वर प्रवाह में बह चला था.

‘‘उफ, मैं तो आज आप के हाथों की गरमगरम चाय पीने आई थी, लेकिन आप ने तो पानी तक न पूछा और लगे फिलौसफी झाड़ने,’’ सुजाता ने शिकायती लहजे में कहा.

‘‘माफ कीजिएगा, बस अभी हाजिर हुआ,’’ कहते हुए सोमनाथजी ने किचन की ओर रुख किया.

सोमनाथजी के चाय बनाने तक सुजाता उन के बेटे से बातें करती रही. अखिलेश ने उसे मम्मी और पापा के रिश्तों की हकीकत से रूबरू करवाया. उस ने बताया, ‘‘एक रईस बाप की इकलौती बिगड़ैल संतान से शादी कर पापा ने न जाने कितनी तकलीफें झेलीं. मम्मी का ईगो हमेशा पापा के पौरुष को चुनौती देता रहा, पर पापा ने मेरी खातिर हमेशा झुकना स्वीकार किया और फिर मेरी शादी होते ही उन्होंने अपनी अलग राह चुन ली. मम्मी का स्वभाव आज भी वैसा है, पर पापा के समझाने पर ही मैं ने उन के साथ रहना स्वीकार किया. वे नहीं चाहते हैं कि इस उम्र में मम्मी अकेलेपन का दंश झेलें.

‘‘लेकिन मुझे पापा की बहुत फिक्र होती है. वे तो अपनी बात भी किसी के सामने नहीं कह पाते. आज उन्होंने मुझे बुला कर पहली बार

आप के बारे में बताया और यह भी कहा कि

आप उन्हें अपने साथ गोवा ले जाना चाहती हैं. आंटी, आप हमारी ओर से बिलकुल निश्चिंत रहे, मैं बस अपने पापा को खुश देखना चाहता हूं. आप उन्हें न सिर्फ अपने साथ ले जाएं, बल्कि जिंदगी से दोबारा उन का परिचय भी करवाएं. हमें कोई आपत्ति नहीं है,’’ अखिलेश ने भावुक होते हुए कहा.

‘‘तुम चिंता मत करो. ऐसा ही होगा.’’

आज सुजाता को सोमनाथजी की सूनी आंखों का दर्द समझ आ रहा था. एक ऐसा व्यक्ति जो जिंदगी भर प्यार दे कर अपने लिए नफरत खरीदता रहा. कैसी होगी वह पत्नी जो इतने अच्छे इंसान को नीचा दिखाती रही. सोमनाथ की पीड़ा से साक्षात्कार होते ही उस ने मन ही मन कुछ ठान लिया.

‘‘कल सुबह 11 बजे हम बाजार चलेंगे, आप के लिए कुछ कपड़े लेने,’’ चाय की चुसकियां लेते हुए सुजाता ने कहा.

‘‘लेकिन मेरे पास बहुत कपड़े हैं,’’ सोमनाथजी ने कहना चाहा.

‘‘कपड़े नहीं सिर्फ कुरतेपाजामे हैं, जब देखो उन्हें ही पहने दिखाई देते हैं. गोवा जाने से पहले आप का मेकओवर भी करना होगा,’’ कहते हुए सुजाता ने अखिलेश की ओर देखा.

‘‘जी आंटी, सही कह रही हैं आप, पापा आप फ्रूटी की चिंता भी मत कीजिए, उसे मैं संभाल लूंगा,’’ कहते हुए अखिलेश ने एक विजयी मुसकान सुजाता पर डाली.

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दूसरे दिन नियत समय पर मार्केट जाने के लिए दोनों गोपुर चौराहे से सिटी बस में सवार हुए, सारा दिन खूब घूमघूम कर सुजाता ने सोमनाथजी के लिए ढेर सारे कपड़ों की शौपिंग की. सुजाता को जींस खरीदते देख तो सोमनाथ वाकई हक्केबक्के रह गए, पर सुजाता की जिद के आगे उन की एक न चली. सोमनाथजी ने सुजाता को भी अपनी ओर से एक प्यारा सा पर्स दिलाया.

शौपिंग खत्म होतेहोते उन्हें जोर की भूख लगने लगी. पास ही के एक रेस्तरां में दोनों ने खाने का और्डर दे दिया. लौटते समय शाम का धुंधलका होने लगा था. इस वक्त बसों में अमूमन बहुत भीड़ हो जाती है, क्योंकि यह वक्त औफिस से लौटने वालों का होता है. सोमनाथजी के टैक्सी के लिए कहने पर भी सुजाता ने साफ मना कर दिया और सामने लगी बस में चढ़ गई. बस के अंदर लेडीज सीटें भी भरी थीं. अत: वे दोनों बीच में ही खड़े हो गए.

‘‘आंटीजी आप यहां बैठ जाइए,’’ कहते हुए एक लड़के ने सुजाता को अपनी सीट औफर कर दी.

‘‘थैंक यू बेटा,’’ कह कर सुजाता सीट पर बैठ तो गई पर भारी भीड़ में आदमियों के बीच बैठी बहुत ही असहज फील कर रही थी. लेकिन सोमनाथजी ने उस की सीट के पास खड़े हो कर अपने हाथों से उस के आसपास मानो एक सुरक्षाकवच बना दिया. उन बांहों के साए में सुजाता अब अपनेआप को बहुत सुरक्षित महसूस कर रही थी.

लगभग 8 बजे दोनों घर लौटे. सुजाता को उस के घर छोड़ कर सोमनाथजी पैदल ही अपने घर चल पड़े. वर्षों बाद आज उन का मन उल्लास से भरा था. उन के चेहरे की चमक देखते ही बनती थी.

सुजाता गोवा जाने की तैयारी में व्यस्त थी. इसी बीच पलक का फोन आया, ‘‘हाय मौम, क्या हो रहा है?’’

‘‘बेटा गोवा जाने की तैयारी कर रही हूं. तुम बताओ तुम कैसी हो? समर कैसा है?’’

‘‘हम दोनों ही ठीक हैं. आप बताओ किस के साथ जाने की प्लानिंग है आप की?’’ पलक ने बेसब्री से पूछा.

‘‘तुम्हारी मीरा आंटी और हमारा पूरा ग्रुप,’’ सुजाता ने जानबूझ कर सोमनाथजी का नाम नहीं लिया. वह सामने बैठ कर ही पलक को इस बारे में सब कुछ बताना चाहती थी. काफी देर तक बेटी से बातें करने के बाद सुजाता फिर से तैयारी में व्यस्त हो गई.

आगे पढ़ें-सुबह के 7 बजे के करीब सोमनाथजी ने…

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