कावेरी लंचबाक्स पैक कर उसे अपने बैग में रखने के लिए बढ़ी ही थीं कि उन का बेटा दौड़ता हुआ आया और दरवाजे से ही चिल्ला कर बोला, ‘‘अम्मां, गांव में पिताजी का इंतकाल हो गया.’’
कावेरी ने सुना पर बात को अनसुना कर वे अपना काम करती रहीं. यद्यपि पति के मरने की खबर से एक क्षण को मन में कुछ जरूर हुआ था, किंतु उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई.
‘‘आप सुन रही हैं न?’’ यह कह कर सुंदरम ने मां का कंधा पकड़ उन्हें झकझोरा तो कावेरी उसे एकटक निहारती रहीं, मानो पूछ रही हों कि तू क्यों झकझोरझकझोर कर यह कह रहा है.
छोटा बेटा भी तब तक वहां आ गया था और क्रोध से मां को घूरने लगा, मानो वे उस की अपराधिनी हों, ‘‘पिता कल रात को गुजर गए हैं और आप यह सुन कर भी दफ्तर जाने की तैयारी में हैं?’’
कावेरी चुपचाप फाइलें उठा कर बैग में सहेजने लगीं. उन का दिल सुन्न था. न उस में स्पंदन, न संवेदन की कोई लहर थी. उन का हृदय मरुस्थल सा बन चुका था.
छोटे बेटे ने अपनी पत्नी की ओर देख कर कहा, ‘‘रोओ…चिल्लाओ…छाती पीटो… माथा पटको…अपने अनाथ होने की दुहाई दो…’’ इस पर भी अम्मां की कोई प्रतिक्रिया न देख कर छोटे बेटे मुन्नूस्वामी ने पूछा, ‘‘अम्मां, तुम दफ्तर जा रही हो…’’
कावेरी अपना पर्स और बैग उठा कर घर से निकल गईं.
बसों की भीड़भाड़ में भी कावेरी का मन शांत रहा. दफ्तर में भी उन्होंने किसी से कुछ नहीं बताया और रोज की तरह अपना काम करती रहीं.
कावेरी के दफ्तर चले जाने से उन की दोनों भाभियां मन ही मन काफी नाराज थीं. बड़ी भाभी अमलू तड़प उठी और उस ने देवरानी वल्ली को खूब भड़काया. एक बजतेबजते दफ्तर में अमलू भाभी ने फोन कर बता दिया कि कावेरी के पति की रात को मौत हो गई है.
‘तुम्हारे पति का कल रात देहांत हो गया और तुम दफ्तर आ गईं?’’ मैनेजर ने कहा.
कावेरी के इस व्यवहार से दफ्तर के लोगों को समझ में आ गया कि कहीं कुछ गड़बड़ है. दफ्तर में दबी जबान से चर्चा होने लगी. कावेरी को दफ्तर का वातावरण अजनबी सा लगने लगा तो वे घर आ गईं. घर में आसपड़ोस के लोग जमा थे. उन की भाभियां और बहुएं उन के बुरे व्यवहार को ले कर चर्चा कर रही थीं. घर का दृश्य देख कावेरी को समझते देर न लगी कि अमलू भाभी किस बात को ले कर इतना फसाद खड़ा कर रही हैं.
कावेरी को देखते ही बेटा सुंदरम पास आ कर बोला, ‘‘अम्मां, हम सब जा रहे हैं. तुम चलोगी?’’
‘‘तुम सब का मरने वाले के साथ कौन सा रिश्ता है जो मेरा जीवन यातनाओं से भरते जा रहे हो…आज तक तुम ने अपने बाप की शक्ल देखी…आज 35 साल के बाद सब चेत रहे हैं… जिस से मेरा नाता तुम सब ने मिल कर तुड़वा दिया था. आज मेरे सूखे जख्म क्यों छील कर हरे कर रहे हो?’’
‘‘नहीं, कावेरी,’’ बड़े भाई ने समझाते हुए कहा, ‘‘जो हुआ सो हुआ…तुम्हारी ससुराल से यह खबर आई है, अगर खबर न आई होती तो बात दूसरी थी.’’
‘‘आखिर है तो वह तुम्हारे दोनों बेटों का पिता…’’ छोटे भाई ने जोड़ा.
दोनों बहुएं यह नहीं चाहती थीं कि बाहर का कोई बात बनाए. इसलिए कहा, ‘‘देखो, अम्मां, अब पिताजी जीवित नहीं हैं. मरते समय उन्होंने अपने भाई से अपनी पत्नी और बच्चों से मिलने की बात कही भी होगी तो हमें क्या पता? मां, अगर आप जाएंगी तो उन की आत्मा को शांति मिलेगी कि मेरी पत्नी ने मुझे माफ कर दिया, मेरा अंतिम संस्कार भी किया. आप की आने वाली पीढ़ी यानी पोतेपोतियों के सुखमय जीवन के लिए आप का चलना जरूरी है.’’
‘‘आप सब जाइए और दुनियादारी निभाइए,’’ कावेरी ने कहा, ‘‘मैं न दुनियादारी निभाऊंगी और न आप की बातों में आऊंगी.’’
यह सुनने के बाद बड़ी भाभी अमलू ने सिर धुनना शुरू किया और जोरजोर से कावेरी को ताने देने लगीं. दूसरी भाभी भी बड़ी के मुताबिक छाती पीटने लगीं. घर में चीखनेचिल्लाने की आवाजें गूंजने लगीं.
दोनों भाइयों के जोर देने पर अनमनी सी कावेरी उठीं और बोलीं, ‘‘आप को मेरा जीवन नरक में ढकेल कर खुशी होती है तो चलो,’’ इतना कह चप्पल पहन वे घर से बाहर आ गईं.
35 साल पहले जिस घर को छोड़ कर कावेरी गई थीं उस घर में पति कुमरेशन की लाश जमीन पर पड़ी थी. शराब पीपी कर उन का शरीर बड़ा भद्दा और स्याह पड़ चुका था. दूर से देखने पर किसी कोढ़ी की लाश लगती थी. उस पर मक्खियां भिनभिना रही थीं. कावेरी ने एक नजर लाश पर डाली और मन घृणा से भर गया था. इतना ऊंचा पद और पैसा होते हुए भी कुत्ते की मौत…इस पियक्कड़ को क्या पता कि सारा पैसा छोटा भाई खा गया था. कावेरी का मन भर आया. वे बाहर आ गईं.
‘‘क्रियाकर्म, दाहसंस्कार, रीतिनीति नहीं निभाओगी, भाभी?’’ कावेरी के देवर ने पूछा.
‘‘आज तक तुम ने किया है, आगे भी तुम ही करो,’’ इतना कह कर कावेरी खामोश हो गईं.
उन के मन में पति के मरने का तनिक भी अफसोस न था. रिश्तेदारों ने उन को बिठा कर सिर पर पानी डाला, पहनने को साधारण सी साड़ी दी और विधवा को लगाने वाली भभूत लगाई.
दाहसंस्कार करते समय पोतीपोते मृतक कुमरेशन के इर्दगिर्द खड़े कर दिए गए. दाहसंस्कार कर शाम 7 बजे सब घर आ गए थे. बड़े बेटे सुंदरम ने बताया कि दाहसंस्कार का सारा इंतजाम उन्हें (अम्मां को) ही करना है. कावेरी क्षुब्ध हो उठीं.
‘‘मुझे कुछ नहीं करना है. मैं इस आदमी को नहीं जानती. जब मेरे दफ्तर के पीछे रहते हुए भी यह कभी मुझ से मिलने नहीं आया, न कभी पता लगाया कि बच्चे कैसे हैं, कितने बड़े हो गए हैं? क्या कर रहे हैं? आज मेरे दोनों बच्चे काबिल और बेहतर जीवन जी रहे हैं तो अपने बाप के कारण नहीं बल्कि मेरे कारण क्योंकि मैं खुद रातदिन मेहनत करती रही, किसी ने मुझे मदद की…’’
‘‘पर अम्मां,’’ मुन्नूस्वामी ने टोका.
‘‘तू चुप कर,’’ कावेरी चीखीं, ‘‘तू क्या उस की तरफदारी कर रहा है? तू ने तो अपने पिता की शक्ल तक नहीं देखी. आज ही देखी है न…फिर कौन सा पिता और कौन सा चाचा…
‘मर गया तो क्रियाकर्म हमें करना है और जिंदा था तो सब उस का था…’ कावेरी ने भाभियों के तेवर देखे तो समझ गईं कि ये बदला लेना चाहती हैं, अत: एकाएक चिल्लाईं, ‘‘तुम मुझे विधवा देखना चाहती हो न, ठीक है आज से तुम सब अपने मन की करो. मैं कुछ नहीं बोलूंगी.’’
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