तेरहवीं तक प्रतिदिन पौ फटने से पहले ससुराल के रिश्तेनाते वाले कावेरी पर पानी डालते. उन का हर दिन अलगअलग फूलों से शृंगार करते किंतु पहनने को 2 साडि़यां ही देते. किसी चीज को छूना उन के लिए मना था. 12वें दिन मुंहअंधेरे ही उठ कर गले का मंगलसूत्र दूध में डलवा दिया गया और मुंह छिपा कर घर के एक कोने में बिठा दिया गया.
तेरहवीं के बाद मंगलसूत्र तिरुपति की हुंडी में डालने के लिए परिवार एकसाथ जाना चाहता था पर दूरदर्शी बड़े भाई ने समझदारी से काम किया. वे अपनी छोटी बहन के दिल का हाल जानते थे. वे कावेरी को और टूटते नहीं देखना चाहते थे. इसलिए उन्होंने ऐसी तारीख निश्चित की जिस से काम भी हो जाए और आने वाले नए साल की सुखदाई सुबह भी हो जाए.
कावेरी पिछले 35 साल के जीवन में जाने कैसेकैसे कंटीले रास्तों को पार कर चुकी थीं. उन्होंने कमरे में झांका तो सारा परिवार गहरी नींद में सो रहा था. खिड़की खोल कर बाहर देखा तो सड़क पर उन के जीवन की भांति सन्नाटा छाया था. हां, भाभियों के चेहरे संतुष्ट प्रतीत हो रहे थे.
हवा तेज चल रही थी. खिड़की के पट जोरजोर से हिलने लगे. उन्हें अंदर तक किसी अज्ञात भय ने घेर लिया. उन्होंने झट उठ कर खिड़की बंद कर दी. मन में उठ रहा शोर बढ़ता जा रहा था. सांयसांय की आवाज मानो मरे पति की हो जो मुंह चिढ़ा कर कह रही हो, ‘क्यों, घर छोड़ कर भाग गई थी न. आज मेरी विधवा बनी है.’ और इस के साथ ही अतीत के वे दिन कावेरी की आंखों के सामने साकार होने लगे.
अमलू भाभी की जिद के चलते ही मातापिता ने इस रिश्ते के लिए हां की थी क्योंकि कुमरेशन भाभी का चचेरा भाई था और कावेरी की सुंदरता पर मुग्ध था. उस ने अमलू भाभी को उपहार में साडि़यां, गहने दे कर पटा लिया था.
कुमरेशन पुलिस विभाग में कर्मचारी था. आसपड़ोस वालों ने तारीफ करते हुए कहा था, ‘कावेरी ने क्या तकदीर पाई है. लड़का अच्छी सरकारी नौकरी के साथसाथ हृष्टपुष्ट व रूपवान भी है.’ भाभी की मां ने कहा था, ‘उपहारों से घर भर जाएगा और कुमरेशन तो एक काबिल पुलिस वाला है.’
शादी के बाद कावेरी की घरगृहस्थी खूब जमी. सास ज्यादा न बोलतीं. मशीन की तरह घर का सारा काम करती रहतीं. कावेरी भी उन का पूरा हाथ बटाती. सुंदरम 2 साल का था और मुन्नूस्वामी 2 माह का था. एक दिन सास ने कहा, ‘आज कुछ मेहमान आने वाले हैं. अच्छी तरह से तैयार हो जाना’ और उन की आज्ञानुसार वह तैयार हो गई थी. घर में जो मेहमान के नाम पर आए वे सारे के सारे ऐयाश थे. देर रात तक खातेपीते रहे. उस दिन से यह हर रोज का नियम बन गया. आएदिन शराब की बोतलें, सोडा, मछली आदि लाई जाती और मां बनाया करतीं. जब वे आते उस समय कुमरेशन ड्यूटी पर होते. कावेरी जब भी इस बारे में पति से कुछ कहना चाहती तो वे बिना सुने उठ कर चल पड़ते.
एक दिन सास ने जब कहा, ‘कावेरी, उस के साथ पिक्चर जा कर देख आ,’ तो वह भौचक्की हो सास की तरफ देखती रह गई.
‘मुझे पिक्चर देखना पसंद नहीं है, मां. मेरा बच्चा बहुत छोटा है,’ यह कह कावेरी सास की बात टाल गई.
2 दिन बाद कुमरेशन ड्यूटी से घर आए तो मां की बातें सुन कर झुंझला उठे. ‘तुम ने इसे समझाया नहीं कि इसे पिक्चर जाना चाहिए था, क्या वे इसे खा जाते?’
पति के मुंह से यह सुन कर कावेरी को काठ मार गया. उस रात इसी बात को ले कर पतिपत्नी दोनों में खूब बहस छिड़ी. बात मारपीट पर उतर आई थी. कावेरी समझ नहीं पा रही थी कि पुलिस विभाग में काम करने वाला उस का पति उसे गलत काम करने को क्यों कह रहा है. पत्नी को दासी समझने वाला कुमरेशन आदेशात्मक स्वर में बात करता रहा, ‘2 बच्चों की मां बन चुकी हो परंतु जीवन में पति का फायदा कैसे करना है, यह पता नहीं,’ बालों को पकड़ कर कहा था, ‘ऐ सुन, जो मां कहती हैं वैसा कर. मुझे यह अच्छी नौकरी ही नहीं अपने परिवार को भी बचा कर रखना है.’
‘तो ईमानदारी से काम कीजिए…’
‘क्या…मुझे पाठ पढ़ाती है… पुलिस वाले को…’
कावेरी पति की ओर देखती रह गई.
‘ऐसे क्या देख रही है…’ कहतेकहते उस का सिर दीवार पर दे मारा था. बहुत चोट लगी थी. सिर से खून बहने लगा था.
उस दिन से दोनों के बीच तनाव बढ़ने लगा और दूरियां भी. हर रोज जलसे मनाए जाते. दोपहर तक मछली, चिकन, अंडे, सोडा शराब की बोतलें आ जातीं. देवर इन्हें ला कर कमरे में रख देता. धीरेधीरे कावेरी की सहनशक्ति का हृस होने लगा. मेहमानों की सेवा में लगी कावेरी जब भी बच्चा रोता तो वह उन्हें छोड़ कर बच्चे को उठा लेती, दूध पिलाती. एक दिन कमरे से बाहर आने में देर होती देख पति खूब झल्लाए और मुन्नूस्वामी और सुंदरम को उठा कर घर के बाहर पटक दिया.
कावेरी तब पहली बार बिफरी थी, ‘आप बच्चों को इस तरह क्यों पटक रहे हैं. घड़ी देखी है. पौने 12 बज रहे हैं. मैं अब कमरे से बाहर नहीं आऊंगी.’ और दोनों बच्चों को ले वह अंदर आ गई थी. कमरा बंद कर लिया. उस दिन जीवन में जो तूफान आया तो उस ने जीवन की धारा ही बदल दी. बंद कमरे में कावेरी यही सोचती रही कि मायके जा कर क्या कहेगी? ऐयाश लोग कब किस को क्या कह दें, पता थोड़े ही चलता है. दहेज मैं कम नहीं लाई… फिर…ऐसी हरकतें क्यों…
कावेरी घृणा, क्रोध से भर उठी. पतिपत्नी का पवित्र रिश्ता… उसे घुटन होने लगी. अगर घर में पैसे चाहिए तो वह कमा कर लाएगी, ट्यूशनों से कमाएगी किंतु अपने चरित्र में दाग नहीं लगने देगी.
मुन्नूस्वामी के 2 साल पूरे होते ही उस ने नौकरी ढूंढ़नी शुरू कर दी. नौकरी पब्लिक लाइब्रेरी में मिल गई थी. वह भी पूरे 1,500 रुपए की. इसे सुन कर सास सब से ज्यादा खुश हुई थीं. पहली बार उन के चेहरे पर सच्ची मुसकान थी. तब यह नौकरी और तनख्वाह बहुत बड़ी मानी जाती थी. अब छोटीछोटी बात भी घर में उठने लगी. एक दिन कावेरी पुस्तकालय से बाहर निकली तो लाइब्रेरी के एक कर्मचारी को उस ने समझाया कि चाबी कहां जमा करनी है. पति ने यह देखा तो वे आगबबूला हो उठे.
‘कावेरी, किसी पराए मर्द के साथ बातें करते तुझे शर्म नहीं आती?’ उस ने तब पति को बहुत समझाया कि वह कर्मचारी है और लाइबे्ररियन होने के नाते उसे समझाना होता है. उस दिन कुमरेशन ने उसे खूब पीटा और खिन्न हो कर वह दोनों बच्चों को ले कर मायके आ गई. पिता को जब पता चला तो उन्होंने अपना सिर पीट लिया. दोनों भाइयों ने उसे ससुराल नहीं जाने दिया. यद्यपि कावेरी ने भाइयों को समझाया था कि जा कर पता तो लगाओ कि सचाई क्या है. किंतु किसी ने कुछ न सुना. रिश्ता तोड़ दिया गया.
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