लेखिका- सुधा थपलियाल
एयरोप्लेन से बाहर आते ही बेंगलुरु की ठंडी हवा ने जैसे ही प्राची के शरीर का स्पर्श किया, एक सिहरन सी उस के बदन में दौड़ गई. पीहू को ठंडी हवाओं से बचाने के लिए उसे अपने पास खींच लिया.
“मम्मी, मौसी आएंगी न, हमें पिकअप करने?” उत्सुकता से 7 साल की पीहू ने पूछा.
“नहीं, हम औफिस के गैस्टहाउस जाएंगे.” यह सुनते ही पीहू का चेहरा लटक गया.
प्राची ने पीहू को एक बैग पकड़ाया और ट्रौली लेने चली गई. दोनों मांबेटी घूमती पेटी पर अपने सामान का इंतजार करने लगीं. प्राची का बहुत बार आना होता रहा है बेंगलुरु में, कभी औफिस के काम से, तो कभी दीदी के पास. लेकिन आज वह एक अजीब एहसास से भरी हुई थी. अपना लैपटौप ट्राली में रख प्राची ने पेटी से सामान उठा कर रखा. एयरपोर्ट से बाहर औफिस की कार प्राची का इंतजार कर रही थी. थोड़ी देर में दोनों गैस्टहाउस पहुंच गए. प्राची ने अपने लिए कौफी और पीहू के लिए जूस, सैंडविच और्डर किया कमरे में ही. कौफी पीतेपीते प्राची ने एक नजर पीहू पर डाली. वह चुपचाप सैंडविच खा रही थी और जूस पी रही थी. तभी फोन की घंटी बजी, देखा, दीदी का फोन था.
“कहां है तू, तेरे जीजाजी तुझे लेने एयरपोर्ट गए थे. तेरा मोबाइल औफ आ रहा था,” प्राची की दीदी चिंतित स्वर में कह रही थी.
“दीदी, कहीं जाने का मन नहीं था,” धीमे स्वर में प्राची बोली.
“मैं और तेरे जीजाजी आ रहे हैं तुझे लेने.”
“प्लीज, आज नहीं. मैं कल आऊंगी,” यह कह प्राची ने फोन बंद कर दिया.
नहाने के बाद प्राची थोड़ी ताजगी महसूस कर रही थी. पीहू टीवी देखने लगी और प्राची लैपटौप खोल कर ईमेल चैक करने लगी. बहुत सारी बातें थी, जिन के विषय में नए सिरे से सोचना था. जिंदगी एक नए सिरे से शुरू करनी थी. पता नहीं क्यों बहुत सारी चुनौतियों के बाद भी प्राची कहीं न कहीं एक हलकापन महसूस कर रही थी. कभी सोचा न था कि जिंदगी इस तरह भी करवट बदलेगी. ‘ब्रेन विद ब्यूटी’ का टैग हमेशा उस के साथ चिपका रहा. आज यह टैग उसे खोखला सा प्रतीत हो रहा था. छोटी सी उम्र में कितनाकुछ उस ने हासिल किया. एक अच्छे कालेज से इंजीनियरिंग की डिग्री. एमबीए कालेज की टौपर. एक मल्टीनैशनल कंपनी में उच्च पद पर आसीन. पर क्या ये सब एक सुखी जीवन की गारंटी दे सकते हैं?
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लैपटौप पर चलती उंगलियों को रोक कर देखा, पीहू टीवी देखतेदेखते सोफे पर ही सो गई थी. उस का मन ममत्व के साथ एक दया से भी भर आया. लैपटौप बंद कर, हलकीफुलकी पीहू को उठा कर बिस्तर पर ले आई. उस का सिर अपनी गोदी में रख कर उस के बालों को सहलाने लगी.
क्या दोष था इस बच्चे का? कितने भी अपने दिल और दिमाग के दरवाजे बंद करो, वे बातें पीछा छोड़ती ही नहीं हैं. दबेपांव चली आती हैं जख्मों को कुरेदने के लिए.
‘प्राची, पीहू, दरवाजा खोलो,’ मनीष रात के 9 बजे दरवाजा जोरजोर से पीट रहा था.
‘मम्मी, खोला न, देखो, पापा आए हैं,’ पापा से मिलने को बेताब, 3 साल की पीहू मम्मी की बांहों में कसमताते हुए कह रही थी.
प्राची कठोर बनी, पीहू को बांहों में भींच कर, बैडरूम से मनीष को दरवाजा पीटते सुनती रही.
‘देख लूंगा,’ बगल के फ्लैट से जब किसी ने टोका, तो मनीष धमकाते हुए चला गया.
‘कल मनीष फिर आया था रात को, काफी ज्यादा पिए हुए लग रहा था,’ लंच के समय प्राची ने अपनी सहकर्ता सहेली स्नेहा से कहा.
‘फिर से, उस की हिम्मत कैसे हुई?’ दांत भींचती हुई स्नेहा बोली, ‘पुलिस को क्यों नहीं बुलाया?’
‘मुझे बारबार तमाशा नहीं करना.’
‘तमाशा तो उस ने बना दिया तुम्हारी जिंदगी का,’ गुस्से से स्नेहा बोली.
‘समझ में नहीं आ रहा क्या करूं,’ परेशान सी प्राची सिर पकड़ते हुए बोली.
बहुत देर तक प्राची सिर पकड़ कर बैठी रही. पहले तो स्नेहा उसे चुपचाप देखती रही, फिर अपनी जगह से उठी और एक मूक आश्वासन देती उस की पीठ सहलाने लगी. 3 भाईबहनों में प्राची सब से छोटी थी. शुरू से ही मेधावी रही प्राची पर सभी को फ़ख्र था. उस की उपलब्धियां पूरे परिवार को गौरवांवित कर रही थीं. बड़ी बहन का विवाह भी अच्छी जगह हो गया था. पढ़ाई में साधारण भाई ने बहुत हाथपांव मारे. कहीं ढंग की नौकरी ना मिलने पर, पिता ने उसे एक व्यवसाय में लगा दिया. उसे भी वह ठीक से चला नहीं पा रहा था.
जब बालरोग विशेषज्ञ डाक्टर मनीष का रिश्ता प्राची के लिए आया तो मातापिता की खुशी का ठिकाना न रहा. आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी मनीष से प्राची प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाई. विवाह के बाद दोनों हैदराबाद आ गए. अपनीअपनी नौकरी में व्यस्त होने के बावजूद दोनों बहुत खुश थे. 2 साल बाद पीहू के आने से जीवन और गुलजार हो गया था. बस, प्राची को यह ही दुख रहता कि पापा एक बार भी उस के घर आए बिना दुनिया से चले गए.
प्राची की व्यस्तता नौकरी में तरक्की होने के साथसाथ बढ़ती जा रही थी. कई बार दूसरे शहर ही नहीं, विदेश भी जाना पड़ता था. पीहू भी नैनी अनिता के भरोसे ही पल रही थी. कई बार पीहू को देख कर उस का मन करता नौकरी छोड़ दे. लेकिन घर और गाड़ी के लोन उस को नौकरी छोड़ने नहीं दे रहे थे. और फिर मनीष का अपना नर्सिंग होम खोलने का सपना. मां भाई के परिवार के साथ उलझी हुई रहती थी. सासससुरजी भी अपनीअपनी नौकरियों में व्यस्त होने के कारण नहीं आ पाते थे.
उस दिन रात के एक बजने वाले थे, मनीष घर नहीं पहुंचा. फोन भी नहीं उठा रहा था जबकि रिंग जा रही थी. चिंतित, परेशान प्राची इधर से उधर चक्कर लगा रही थी. रात के 2 बजे मनीष की गाड़ी की आवाज सुन प्राची ने दरवाजा खोलते ही कहा, ‘कहां थे?’
‘एक इमरजैंसी केस आ गया था,’ कह कर मनीष बाथरूम चला गया.
फिर तो इमरजैंसी केस का सिलसिला खत्म ही नहीं हुआ. प्राची को बहुत बार शक भी हुआ. लेकिन उस की स्वयं की व्यस्तता, और मनीष पर अथाह विश्वास ने, उस के विचारों को झटक दिया. आखिर, एक दिन प्राची ने निर्णय लिया कि वह देखने जाएगी कि कौन से इमरजैंसी केस आते हैं हर दूसरे दिन. उस रात प्राची ने अनिता को घर पर रोक लिया और चली गई मनीष को देखने नर्सिंग होम रात के 11 बजे. मनीष का चैंबर बंद था.
रिसैप्शन पर बैठी लड़की से मनीष के विषय में पूछा, तो वह हकलाते हुए बोली, ‘मैम, डाक्टर साहब 7 बजे चले गए थे.’
‘7 बजे, तुम्हारी डूयटी कब से लगी रात की?’ प्राची का मन शंका से भर गया.
‘मैडम, 3 हफ्ते हो गए. डाक्टर साहब शायद…’ बोलतेबोलते वह रुक गई.
‘बोलो,’ धड़कनों को काबू करते हुए प्राची बोली.
‘मैम, प्लीज, मेरा नाम मत लीजिएगा. उन का न, रीना नर्स से चक्कर चल रहा है,’ धीरे से रिसैप्शनिस्ट ने कहा.
‘क्या?’ प्राची कुछ पलों के लिए स्तब्ध रह गई. सारी जगह उसे घूमती सी प्रतीत हुई, फिर संभलती हुई बोली, ‘क्या तुम मुझे उस का पता दे सकती हो?’
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‘मैम,’ घबराती हुई वह बोली.
‘तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हारा नाम नहीं लूंगी,’ प्राची के आश्वासन पर उस ने एक पेपर पर रीना का पता लिख कर दे दिया.
रात के 12 बजे अकेले कैब में दिमाग में चल रहे तूफान के साथ, वह कब रीना के घर के पास पहुंच गई, पता ही न चला. मनीष की कार सुबूत के तौर पर वहां खड़ी थी. विक्षिप्त सी वह तब तक घंटी बजाती रही, जब तक कि दरवाजा न खुल गया.
एक बड़ी उम्र की महिला ने दरवाजा खोला, ‘आप,’ आंखें मलती हुई वह महिला बोली.
‘मैं, उस आदमी की पत्नी हूं जो इस समय तुम्हारे घर में मौजूद है,’ तमतमाती हुई प्राची बोली.
‘यहां तो कोई नहीं है,’ वह औरत ढीठता से बोली.
‘यह बैग किस का है?’ सोफे पर मनीष के बैग की ओर इशारा करती प्राची ने तल्खी से पूछा.
‘मुझे नहीं पता,’ वह औरत अभी भी अपनी ढीठता पर कायम थी.
‘झूठ बोलती हो?’ प्राची चिल्लाती हुई बोली.
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