रविवार को ईशा ने फूलों की प्रिंट वाली ड्रेस के साथ हाई हील्स पहनी और अपने बालों को हाई पोनीटेल में बांध लिया. इस वेषभूषा में वो अपनी साड़ी वाली छवि से बिलकुल उलट लग रही थी. इस नए अवतार में निशांत ने उसे देखा तो वह पूरे जोर-शोर से ईशा के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा. उसे लगने लगा मानो ईशा उसे अपने व्यक्तित्व का हर रंग दिखाना चाहती है. पाश्चात्य परिधान में उसे देखकर निशांत उस पर और भी मोहित हो गया, "अरे रे रे, मैं तो तुम्हें भारतीय नारी समझा था पर तुम तो दो धारी तलवार निकलीं. बेचारा मयूर! उसके पास तो ऐसी तलवार के लायक कमान भी नहीं है", धीरे से ईशा के कानों में फुसफुसा कर कहता हुआ निशांत साइड से निकल गया.
मन ही मन ईशा हर्षाने लगी. शादीशुदा होने के उपरांत भी उसमें आशिक बनाने की कला जीवित थी, यह जानकार वह संतुष्ट हुई. उसपर ऐसा भी नहीं था कि निशांत, मयूर की आँख बचाकर यह सब कह रहा था. उस दिन निशांत, मयूर के सामने भी कई बार ईशा से फ्लर्ट करने की कोशिश करता रहा और मयूर हँसता रहा.
घर लौटते समय ईशा ने मयूर से निशांत की शिकायत की, “देखा तुमने, निशांत कैसे फ़्लर्ट करने की कोशिश करता है.” वह नहीं चाहती थी कि मयूर के मन में उसके प्रति कोई गलतफहमी हो जाए.
ईशा की बात को मयूर ने यह कहकर टाल दिया, "निशांत तो है ही मनमौजी किस्म का लड़का. और फिर तुम उसकी भाभी लगती हो. देवर भाभी में तो हँसी-मजाक चलता रहता है. पर तुम उसे गलत मत समझना, वह दिल का बहुत साफ और नेक लड़का है."