उस दिन सुबह से ही मौसम खुशगवार था. निशांत के घर में फूलों की महक थी, हवा गुनगुना रही थी. उस के मम्मी और डैडी कल ही कानपुर से आ गए थे. निशांत ने उन्हें सबकुछ बता दिया था. उन्हें खुशी थी कि बेटा 5 साल बाद ही सही, ठीक रास्ते पर आ गया था वरना न जाने उसे कौन सा रोग लग गया था कि शादी के नाम से भड़क जाता था.
मम्मीपापा के सामने स्निग्धा को खड़ा कर के निशांत ने कहा, ‘‘अब आप देख लीजिए. जैसा आप चाहते थे वैसा ही मैं ने किया. आप एक सुंदर, पढ़ीलिखी और अच्छी बहू अपने बेटे के लिए चाहते थे. क्या इस से अच्छी व सुंदर बहू कोई और हो सकती है?’’
स्निग्धा निशांत की मम्मी के चरण स्पर्श करने के लिए नीचे की तरफ झुकने लगी, परंतु उन्होंने स्निग्धा को अपने कदमों पर झुकने का मौका ही नहीं दिया. उस के पहले ही उसे अपने सीने से लगा लिया.
स्निग्धा पहली नजर में ही सब को पसंद आ गई थी.
निशांत ने मम्मीडैडी को स्निग्धा के बारे में बताना उचित नहीं समझा. वह जानता था कि स्निग्धा के दुखद और कष्टमय विगत को बताने से मम्मीडैडी को मानसिक संताप पहुंच सकता था. इसलिए उस ने थोड़े से झूठ का सहारा लिया और उन्हें केवल इतना बताया कि स्निग्धा को एक रिश्तेदार ने पालापोसा और पढ़ायालिखाया था. इलाहाबाद में वह उस के साथ पढ़ती थी, तभी उन दोनों की जानपहचान हुई थी. अब वह अपने पैरों पर खड़ी थी और दिल्ली में रह कर एक प्राइवेट फर्म में नौकरी कर रही थी. निशांत के परिवार वाले समझदार थे. स्निग्धा की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उस के परिवार के बारे में कोई बात नहीं की.
निशांत और स्निग्धा की शादी हो गई. बहुत सादगी और परंपरागत तरीके से उन दोनों की शादी का आयोजन किया गया था. निशांत तथा उस के घर वाले शादीब्याह में बहुत ज्यादा तामझाम और दिखावे के खिलाफ थे. थोड़े से खास रिश्तेदारों और मित्रों के बीच में उन की शादी संपन्न हो गई.
शादी के पहले एक दिन एकांत में निशांत ने स्निग्धा से पूछा, ‘अगर तुम्हारा मन हो तो हम दोनों चल कर तुम्हारे मम्मीपापा को मना लाते हैं. उन का आशीर्वाद मिलेगा तो हम सब को अच्छा लगेगा.’
‘चाहती तो मैं भी हूं परंतु अभी मेरे पास इतना नैतिक साहस नहीं है. एक बार तुम्हारे साथ शादी कर के घरगृहस्थी सजा लूं तब फिर चल कर मम्मीपापा से मिलेंगे. तब वे मेरे अतीत की भूलों को माफ भी कर सकेंगे.’
‘जैसी तुम्हारी इच्छा,’ और बात वहीं समाप्त हो गई थी.
पति, सास, ससुर और एक पारिवारिक जीवन, बिलकुल नया अनुभव था स्निग्धा के लिए. कितना सुखद और स्निग्ध, वसंत के फूलों की खुशबू से भरा हुआ, वर्षा की पहली फुहारों की तरह मदहोश करता हुआ और पायल की मधुर झंकार की तरह कानों में संगीत घोलता हुआ, यह था जीवन का असली संगीत, जिस की धुनों के बीच हर व्यक्ति झूमझूम जाता है. और आज स्निग्धा जीवन के बीहड़ रास्तों के घुमावदार मोड़ों को पार करती हुई अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हुई थी.
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शादी के बाद स्निग्धा ने निशांत के घरपरिवार को ही नहीं, बल्कि उस के व्यक्तित्व को भी संवार दिया था. इस में निशांत की मम्मी का बहुत बड़ा हाथ था. उन्होंने स्निग्धा को एक बेटी की तरह घरपरिवार की जिम्मेदारी से अवगत कराया. उस ने भी अपनी सास से कुछ सीखने में संकोच नहीं किया. नतीजा यह हुआ कि कुछ ही दिनों में उस ने एक समझदार पत्नी, आदर्श बहू और सुलझी हुई गृहिणी के रूप में सब के दिलों में स्थान बना लिया.
अब उसे स्वयं विश्वास नहीं होता था कि वह 5 साल पहले की एक बिगड़ैल और गैरजिम्मेदार, सामाजिक परंपराओं को तोड़ने वाली लड़की थी.
निशांत इतना शांत और सरल स्वभाव का व्यक्ति था कि वह कभी भी स्निग्धा के अतीत की चर्चा नहीं करता था, परंतु वह स्वयं कभीकभी एकांत के क्षणों में सोचने पर मजबूर हो जाती थी कि शादी के पहले वह किस प्रकार का गंदा जीवन व्यतीत कर रही थी. उस ने तब अपने जीवन के लिए जो राह चुनी थी वह एक न एक दिन उसे पतन के गर्त में डुबो देती. बिना शादी के किसी पुरुष के साथ रहना और शादी कर के अपने पति व एक परिवार के बीच रहने में कितना अंतर था. अब उसे महसूस हो रहा था कि शादी के पहले वह एक डरासहमा, उपेक्षित और घृणास्पद जीवन व्यतीत कर रही थी.
अपने रूप और सौंदर्य पर स्निग्धा को बहुत अभिमान था. वह सुशिक्षित और संपन्न परिवार की लड़की थी, इसलिए लालनपालन बहुत प्यार व दुलार के साथ हुआ था. उस ने अपने जीवन में किसी अभाव को कभी महसूस नहीं किया था, उस के ऊपर किसी प्रकार के पारिवारिक और सामाजिक प्रतिबंध नहीं थे, वह जिद्दी और विद्रोही स्वभाव की हो गई थी.
सामाजिक और पारिवारिक वर्जनाओं को तोड़ने में उसे मजा आता. समाज के स्थापित मूल्यों की खिल्ली उड़ाना और उन के विपरीत काम करना उस के स्वभाव में शामिल था और प्यार, प्यार से बच कर आज तक इस दुनिया में शायद ही कोई रह पाया हो. प्रेम एक भाव है, एक अनुभूति है, जो मन की सोच और हृदय के स्पंदन से जुड़ा हुआ होता है. प्रेम एक प्राकृतिक अवस्था है, इसलिए इस से बचना बिलकुल असंभव है. परंतु वह किसी से प्यार भी करती थी या नहीं, यह किसी को पता नहीं चला था, क्योंकि वह बहुत चंचल थी और हर बात को चुटकियों में उड़ाना उस का शगल था.
कालेज के दिनों में वह हर तरह की गतिविधियों में भाग लेती थी. खेलकूद, नाटक, साहित्य और कला से ले कर विश्वविद्यालय संगठन के चुनाव तक में उस की सक्रिय भागीदारी होती थी. वह कई सारे लड़कों के साथ घूमती थी और पता नहीं चलता था कि वह पढ़ाई कब करती थी. बहुत कम लड़कियों के साथ उस का उठनाबैठना और घूमनाफिरना होता था, जबकि वह गर्ल्स होस्टल में रहती थी.
एक दिन पता चला कि वह यूनियन अध्यक्ष राघवेंद्र के साथ एक ही कमरे में रहने लगी थी. दोनों ने विश्वविद्यालय के होस्टलों के अपनेअपने कमरे छोड़ दिए थे और ममफोर्डगंज में एक कमरा ले कर रहने लगे थे. उस कालेज के लिए ही नहीं, पूरे शहर के लिए बिना ब्याह किए एक लड़की का एक लड़के के साथ रहने की शायद यह पहली घटना थी. वह छोटा शहर था, परंतु इस बात को ले कर कहीं कोई हंगामा नहीं मचा. राघवेंद्र यूनियन का लीडर था और स्निग्धा के विद्रोही व उग्र स्वभाव के कारण किसी ने खुले रूप में इस की चर्चा नहीं की. स्निग्धा के घर वालों को पता चला या नहीं, यह किसी को नहीं मालूम, क्योंकि उस के परिवार के लोग फतेहपुर जिले के किसी गांव में रहते थे. उस के पिता उस गांव के एक संपन्न किसान थे.
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अगर कहीं कोई हलचल हुई थी तो केवल निशांत के हृदय में जो मन ही मन स्निग्धा को प्यार करने लगा था. वे दोनों सहपाठी थे और एक ही क्लास में पढ़तेपढ़ते पता नहीं कब स्निग्धा का मोहक रूप और चंचल स्वभाव निशांत के मन में घर कर गया था और उस के हृदय ने स्निग्धा के लिए धड़कना शुरू कर दिया था. स्निग्धा के दिल में निशांत के लिए ऐसी कोई बात थी, यह नितांत असंभव था. अगर ऐसा होता तो स्निग्धा राघवेंद्र के साथ बिना शादी किए क्यों रहने लगती?
यह उन दोनों का यूनिवर्सिटी में अंतिम वर्ष था. निशांत प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. एमए करने के तुरंत बाद उसे नौकरी मिल गई और वह स्निग्धा की छवि को अपने दिल में बसाए दिल्ली चला आया.
निशांत के सिवा किसी को पता नहीं था कि वह स्निग्धा को प्यार भी करता था. 5 साल तक उसे यह भी पता नहीं चला कि स्निग्धा कहां और किस अवस्था में है. उस ने पता करने की कोशिश भी नहीं की, क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि स्निग्धा अब न तो किसी रूप में उस की हो सकती थी न उसे कभी मिल सकती थी. दोनों के रास्ते कब के जुदा हो चुके थे.
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