दवाएं टेबल पर रखते हुए मृदंगम ने कूरियर वाला पैकेट उठा कर अलमारी में रख दिया. ‘अच्छा ही हुआ, इस समय वैसे भी बाहर से आया सामान कुछ समय बाद ही खोलना चाहिए. कोरोना वायरस साथ आ गया होगा तो कुछ दिनों बाद खत्म हो जाएगा,’ अपने मन को समझाती हुई मृदंगम किचन में चली गई.
2 दिन तक कामेश की स्थिति यथावत बनी रही. तीसरे दिन खांसी में आराम हुआ और सिरदर्द भी कम हो गया. मृदंगम ये दिन विचित्र सी ऊहापोह में बिता रही थी. कामेश के स्वास्थ्य की चिंता के साथ ही पैकेट न खोल पाने का खेद भी उसे साल रहा था. जब भी मैसेज के नोटिफिकेशन का स्वर कानों में पड़ता, उसे लगता कि मीनाक्षी का मैसेज होगा. वह जानना चाह रही होगी कि मैं गाउन में फोटो खींच कर कब पोस्ट करूंगी फेसबुक पर.
कामेश के स्वस्थ होते ही एक शाम मृदंगम ने पैकेट निकाल कर सामने रख दिया.
‘‘क्या है यह?’’ एक प्रश्नवाचक दृष्टि मृदंगम पर डालते हुए कामेश ने पूछा.
‘‘खोलो तो,’’ मृदंगम मुसकरा रही थी.
उत्सुक दृष्टि लिए कामेश ने कैंची से पैकेट के बाहरी आवरण को काट
दिया. मृदंगम दिल थामे गाउन हाथ में आने की प्रतीक्षा कर रही थी. कामेश ने गिफ्ट से टेप हटा कर जैसे ही कागज अलग किया मृदंगम की आंखें चौंधियां गईं. 2 बेहद सुंदर साडि़यां प्लास्टिक की पारदर्शक थैली से झांक रही थीं.
‘‘हाय, ये तो सोडि़यां हैं,’’ मृदंगम स्तब्ध ह गई.
‘‘हम्म… महंगी लग रही हैं. कब मंगवाई तुम ने? पेमैंट कैसे की?’’ कामेश ने एकसाथ कई सवाल दाग दिए.
मृदंगम ने पूरा किस्सा बयां कर दिया.
‘‘तुम पहले बता देतीं तो पैकेट लौटा देते. अब बात करता हूं किसी से,’’ मोबाइल हाथ में लेते हुए कामेश बोला.
‘‘रुको अभी… जब खोल ही लिया तो अच्छी तरह देखने दो न,’’ मृदंगम हड़बड़ी में साडि़यों के प्लास्टिक फाड़ते हुए बोली.
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बैड पर फटे प्लास्टिक को बिछा कर मृदंगम ने साडि़यां रख दीं. एकदूसरे से विपरीत रंगत लिए दोनों साडि़यां बेहद आकर्षक थीं. उन में से एक बैगनी रंग के गुलाबी बौर्डर वाली पैठणी साड़ी थी, जिस पर छोटेछोटे सुनहरे मोर के मोटिफ्स अंकित थे. आंचल हरे रंग के तोते और एक नाचते हुए मोर से सुसज्जित था. दूसरी लाइट पीच कलर लिए प्योर जौर्जेट की डिजाइनर साड़ी थी, जिस पर आलीशान कटदाना काम किया हुआ था. साड़ी पर लगी जरकन की चकाचौंध देख मृदंगम पलकें झपकना ही भूल गई. साडि़यां जैसे अपना दाम स्वयं ही बता रही थीं. प्राइज टैग देखा तो मृदंगम का अनुमान सही था. पैठणी साड़ी 62 हजार की तो डिजाइनर की कीमत 58 हजार थी.
‘‘देख लीं? कूरियर औफिस का नंबर पता कर फोन कर दूं?’’ कामेश व्याकुल दिख रहा था.
‘‘जल्दबाजी मत करो, आराम से सोच लेंगे. कहीं ऐसा न हो कि किसी ने मुझे ही भेजी हों और आप वापस दे दो. कूरियर वाले तो कहीं
बेच कर पैसा बांट लेंगे आपस में…और वे लोग अगर वापस करना भी चाहें तो करेंगे किस को? भेजने वाले का नामपता तो नदारद है,’’ अपने
तर्क से कामेश को चुप करा मृदंगम चेहरे पर विजयी मुसकान लिए साडि़यों को बड़े प्रेम से निहार रही थी.
‘‘काश, मैं साड़ी होता तो तुम मुझे इतने ही प्यार से देखतीं और खुश हो कर लपेट लेतीं मुझे अपने तन पर,’’ एक ठंडी आह भर कामेश
मृदंगम का ध्यान साडि़यों से हटाने का प्रयास कर रहा था.
मृदंगम तो साडि़यों के मोह में जकड़ी हुई थी. कामेश की बात सुनते ही बोली, ‘‘अरे हां, एक बार लपेट कर देखना चाहिए इन साडि़यों को, मैं ने तो 15 हजार से महंगी साड़ी कभी पहनी ही नहीं.’’
बैड से डिजाइनर साड़ी उठा ड्रैसिंगटेबल के सामने खड़े हो कर मृदंगम ने उसे लपेट
लिया. दर्पण देखा तो अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि दिख रहा प्रतिबिंब उस का ही है. साड़ी पर कढ़ाई का काम बहुत यत्न और कलात्मक तरीके से किया गया था. साड़ी का पीच कलर गाजर और नारंगी रंगों के मेल से बना था. उसी रंग के जरकन से पूरी साड़ी पर फूलों की बेल का जाल बना था. बौर्डर पर कटदाना काम से औरेंज व कौपर कलर के स्टोंस की तितलियां बनाई गई थीं.
कटदाना वर्क में नगों को एक विशेष आकार दे कर काटा जाता है ताकि हलकी सी रोशनी पड़ने पर ही वे हीरों जैसे चमक उठें. ऐसा हो भी रहा था. मृदंगम का चेहरा स्टोंस की दमक से लहक उठा था. उस पर कमल के फूल से खिले होंठ और हिरणी जैसी बड़ीबड़ी मासूम आंखें. मृदंगम ने बालों में लगा रफ्फल हटा कर सिर तेजी से झटका तो माथे से हो कर रेशमी लटें चेहरे पर आ गिरीं. कुछ दिन पहले ही रंग लगवाने के कारण पलकें तांबई दिख रही थीं. घर पर मृदंगम पतले स्टै्रप की कुरती पहने थी. साड़ी का पल्लू कंधे पर लिया तो अपनी चिकनी, गोरीगोरी बांहों पर साड़ी की नारंगी छाया पड़ती देख स्वयं पर ही मुग्ध हो गई. मृदंगम को लग रहा था जैसे आईने में उस का अक्स नहीं है, कोई सिनेतारिका है, जो अवार्ड लेने मंच पर आई है. साड़ी पर जड़े हुए बेशकीमती जरकन ऐसे झिलमिला रहे थे जैसे असंख्य तारे आकाश से उतर आए हों. कामेश पीछे खड़ा उसे टकटकी लगाए देख रहा था.
‘‘कैसी लग रही हूं?’’ मृदंगम ने पीछे मुड़ कर तिरछी मुसकान चेहरे पर बिखराते हुए कामेश से पूछा.
जवाब में कामेश ने शरारत से ‘बदन पे सितारे लपेटे हुए, ओ जान ए तमन्ना किधर जा रही हो…’ गीत गुनगुनाते हुए मृदंगम को आलिंगनबद्ध कर लिया.
कुछ दिनों तक पैकेट को ले कर दोनों के बीच कोई चर्चा नहीं हुई, लेकिन मृदंगम के नैनों में दिनरात साडि़यां ही छाई रहती थीं. कामेश के औफिस चले जाने के बाद कुछ देर तक साडि़यों को निहारना उस की दिनचर्या में सम्मिलित हो गया था.
उस दिन रविवार था. कामेश ने सुबह की चाय पीते हुए फिर से बात छेड़ दी, ‘‘क्या सोचा फिर मृदु? कैसे पीछा छूटेगा उस गुमनाम पैकेट से?’’
‘‘गुमनाम कैसे हुआ? मेरा नाम लिखा है न उस पर,’’ तुनकते हुए मृदंगम ने उत्तर दिया.
‘‘अरे भई जब ऐड्रैस नहीं, भेजने वाले का अतापता नहीं तो गुमनाम कहना ही पड़ेगा न उसे.’’
‘‘मैं सोच कर बता दूंगी कि किस ने भेजा होगा. इस महीने मेरा बर्थडे है और अगले महीने हमारी मैरिज ऐनिवर्सरी, तो भेज दी होगी किसी ने हर मौके के लिए 1-1 साड़ी,’’ मृदंगम आंखें नचाते हुए बोली.
‘‘इतनी महंगी साडि़यां देने वाला कौन आशिक है तुम्हारा? एक दिन तुम्हें ही न ले जाए चुरा कर. नाम तक नहीं पता होगा मुझे तो उस बंदे का,’’ कामेश शरारती अंदाज में बोला.
‘‘किसी ने भी भेजा हो पैकेट, रख लेती हूं न थोड़े दिन और. फोटो तो खिंचवा लूं कम से कम किसी एक साड़ी में,’’ ठुनकते हुए मृदंगम कह उठी.
‘‘अच्छा बाबा मान लिया. तो आज हो जाए फोटोसैशन,’’ कामेश हाथ जोड़ कर खड़ा था.
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‘‘डिजाइनर साड़ी तो मैं ने लपेट कर देख ली थी, आज पैठणी साड़ी पहन लेती हूं अपने गोल्डन ब्लाउज के साथ. फोटो भी शायद बौर्डर वाली साड़ी में ही ज्यादा सुंदर आएगा. थोड़ा मेकअपशेकअप भी कर लूंगी,’’ मृदंगम अपनी जीत पर प्रसन्न थी.
‘‘चलेगा… मैं भी ड्रैसअप हो जाऊंगा. इशू एक पेयर फोटो खींच देगा तो अगले महीने मैं उसे व्हाट्सऐप की डीपी बना लूंगा. शादी की सालगिरह पर कोरोना टाइम में बाहर जाना तो ठीक नहीं होगा, लेकिन सुंदर पत्नी का इतना फायदा तो होना ही चाहिए.’’
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