‘‘यहहुई न बात… क्या खबर सुनाई है… मेरी जान, सुन कर मजा आ गया,’’ पारुल ने चहकते हुए कहा.
‘‘धीरे बोल, दीवारों के भी कान होते हैं. कहीं यह खबर औफिस में न फैल जाए,’’ ईमान ने पारुल का हाथ दबाते हुए कहा.
‘‘कितना हैंडसम है सचिन, उस की जिम में तराशी हुई बौडी, पर ये सब हुआ कब?’’ पारुल को और भी उत्सुकता थी. आखिर खबर ही ऐसी थी और वह भी औफिस में उस की एकलौती सहेली के बारे में.
जब ईमान ने पहली बार सचिन को कंपनी की टीम मीटिंग में देखा था तभी उस की नजर अटक गई थी. लंबी कदकाठी, तीखी जौ लाइन, शर्ट की बाजुओं में से झांकता सुडौल शरीर बता रहा था कि यह गठीला बदन जिम ट्रेनिंग का नतीजा है, उस पर आजकल की लेटैस्ट फैशन वाली ट्रिम की हुई दाढ़ी. ईमान को फैशनेबल लोग बेहद पसंद आते थे. वह स्वयं भी समय की चाल से कदम मिला कर चलने वाली लड़की थी.
सचिन की निगाहें भी उस पर जड़ गई थीं. ईमान का छरहरा बदन, आकर्षक रंगरूप, मोतियों की लड़ी जैसे दांत, आत्मविश्वास से लबरेज मनमोहक मुसकराहट और नितंबचुंबी बाल सबकुछ सामने वाले के होश उड़ाने के लिए पर्याप्त थे. उस की बड़ीबड़ी कजरारी आंखों पर सज रहा सुनहरे फ्रेम का चश्मा उन्हें और भी पैना बना रहा था.
सचिन और ईमान को साथ काम करते करीब 6 माह बीत चुके थे. जितना औफिस में हो सकता था उतना रोमांस दोनों के बीच पनप चुका था. शुरुआत आंखों के इशारों से हुई थी और फिर दोनों ने एकसाथ लंच करना आरंभ कर दिया. कभीकभार दिल्ली की भीड़भरी शामों में घूमने निकल जाते. फिर ईवनिंग डेट पर कभी मूवी तो कभी डिनर, क्योंकि औफिस में ऐंटीरिलेशनशिप क्लौज था. इसलिए दोनों बाहर ही मिला करते. लेकिन ऐसा बहुत कम हो पाता. ईमान व सचिन के घर वाले धर्मभीरु सोच के शिकार थे. हमारे समाज में 21वीं सदी में भी धर्म का शिकंजा काफी कसा हुआ है. अपने बच्चों को उचित शिक्षा प्रदान करने, आत्मनिर्भर बना देने के बावजूद लोग उन्हें अपने जीवन का सब से महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार नहीं देते हैं. हिंदूमुसलमान होने के कारण इस रिश्ते को घर वालों की अनुमति मिलने की आशा बहुत कम थी. दोनों के बीच जो धर्म की पुख्ता दीवार खड़ी थी, उसे लांघना काफी कठिन लगता.
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रोमांस की राह में थोड़ा आगे बढ़ने के बाद दोनों ने अपने रिश्ते को अगले पड़ाव पर ले जाने का निश्चय किया. किंतु शादी की बात घर में कौन चलाए, यह सोच दोनों अकसर उलझन में रहने लगे. जैसे ईमान के घर वालों का इस रिश्ते के लिए तैयार होना लगभग नामुमकिन था, वैसे ही सचिन के परिवार वाले भी इस शादी के लिए कभी तैयार नहीं होंगे. इस स्थिति से मुक्ति पाने का एक ही तरीका दोनों को सूझा रजिस्टर्ड मैरिज का. दोनों ने कोर्ट में अर्जी दे दी और 1 महीने पश्चात चुपचाप कोर्ट में शादी कर ली. अब परिवार वाले केवल कोस सकते थे, उन का कुछ बिगाड़ नहीं सकते थे.
वही हुआ जिस का अनुमान था. दोनों परिवारों को जब इस विवाह के बारे में ज्ञात हुआ तो दोनों ही ओर से नवदंपती की झोली में केवल बद्दुआएं, मांओं के अश्रु और नाउम्मीदी हाथ लगी. पर वह प्यार ही क्या जो पथरीली राह से डर जाए. सचिन और ईमान अपने प्यार के साथ आगे बढ़ चले. इसी शहर में दोनों ने 1 वनरूम सैट ले लिया. दोनों के लिए पर्याप्त था. महानगरों में रहने का एक लाभ यह भी है कि इतने बड़े शहर, इतने लोगों की भीड़ में आप आसानी से खो सकते हैं.
एक ही शहर में रहते हुए भी दोनों अपनेअपने परिवार से दूर थे. ईमान और सचिन अपना थोड़ाबहुत सामान ले कर शिफ्ट हो गए. पूरा वीकैंड दोनों ने अपना नया आशियाना सैट करने में लगाया. सैकंड हैंड सोफा सैट के साथ लकड़ी की गोल मेज पर रखे गुलदान में ईमान ने ड्राई फ्लौवर अरेंजमैंट सजाया. रात तक घर सजाते हुए दोनों थक कर चूर हो चुके थे.
‘‘खाना कौन बनाएगा?’’ पूछते हुए ईमान हंसी.
‘‘आज बाहर से मंगवा लेते हैं. रूटीन सैट होने पर दोनों जिम्मेदारियां लेंगे,’’ सचिन का उत्तर ईमान का दिल जीत गया. वह सचिन से अपने परिवार के विरुद्ध जा कर शादी करने के अपने निर्णय से संतुष्ट भी हुई और हुलसित भी.
आज दोनों की सुहागरात थी, किंतु कोई फूलों की सेज नहीं, न ही मखमली बिस्तर और सुगंधित कक्ष, मगर प्रेमसिक्त खुमारी उन्हें मदहोश किए थी. जब प्यार के सुवास ने रिश्ते को स्पर्श कर दिया तो फिर बाहरी खुशबू का क्या काम. एकदूसरे की बांहों में झूलते, खिलखिलाते हुए मधुसिक्त एहसास से परिपूर्ण वे विवाहित जीवन में कदम रख चुके थे.
सोमवार से दोनों साथ में औफिस जानेआने लगे. धीरेधीरे घर के कामकाज भी शुरू हो गए. सचिन बिल इत्यादि भरने का काम और बाहर से सामान लाने का काम संभाल चुका था और ईमान खाना पकाने और घर की देखभाल की जिम्मेदारी उठा रही थी. पर हां तड़का लगाने का काम सचिन का ही था. उस की स्मोकी दाल की क्या बात थी. सहर्षता से दोनों अपने रिश्ते में आगे बढ़ चुके थे. अब उन के बीच कोई दीवार न थी. हनीमून पीरियड चल रहा था. दोनों औफिस से घर लौटते, तत्पश्चात ईमान खाना पकाती, सचिन कपड़ों का रखरखाव करता, फिर डिनर कर दोनों एकदूसरे की बांहों में समा कर सो जाते. ईमान हर समय खिलीखिली रहती.
शादी को लगभग 3 माह बीत चुके थे. जिम्मेदारियों को निभाते हुए अब तक दोनों एक तय दिनचर्या का हिस्सा बन चुके थे.
‘‘आओ न ईमान, कितनी देर लगा रही हो…’’ रात को सचिन ने बिस्तर से आवाज लगाई.
ईमान किचन में बरतन साफ करते हुए कुछ अनमनी सी बोली, ‘‘आज बहुत थकान हो रही है, शायद पीरियड्स आने वाले हैं, इसलिए शरीर गिरागिरा सा हो रहा है.’’
‘‘यार यह हर महीने की मुसीबत है,’’ सचिन का यह कहना ईमान को रास न आया, ‘‘तुम से क्या मांगती हूं? काम तो फिर भी कर ही रही हूं न?’’ उस ने भी प्रतिउत्तर में सड़ा सा जवाब दे डाला. दफ्तरी परिश्रम उसे भी उतना ही चूर करता था जितना सचिन को.
‘‘यह धौंस किसी और को दिखाना समझी?’’ सचिन उस के यों जवाब देने से चिढ़ कर बोला.
‘‘ऐसे कैसे बात कर रहे हो, सचिन? अपनी हद में रहो, मैं तुम्हारी बीवी हूं,’’ ईमान को भी गुस्सा आ गया. मगर सचिन आज दूसरे ही मूड में था. वह झटके से बिस्तर से उठा और फिर ईमान को उस की जींस की बैल्ट से पकड़ कर खींचते हुए बिस्तर पर ला पटका.
जब ईमान चिल्लाई कि ये क्या कर रहे हो तो सचिन ने एक थप्पड़ रसीद कर दिया.
आज सचिन ने उस की एक न सुनी और ईमान की इच्छा के विरुद्ध उस की अस्मत को छलनी कर डाला. इस पूरे समय सचिन लगातार आक्रोशपूर्ण अपशब्द उगलता रहा, ‘‘जब खुद का मूड होता है तब सब ठीक लगता है और जब मेरा मूड होता है तब? तेरे होते हुए किसी दूसरी को पकड़ कर लाऊं क्या?’’
न जाने क्याक्या सुना था ईमान ने उस रात. पिघला सीसा कानों से उतर कर दिल और दिमाग को सुन्न कर गया था. अपनी भूख शांत कर सचिन मुंह फेर कर सो गया.
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कुछ देर यों ही पड़े रहने के बाद ईमान ने अपने छटपटाते शरीर को संभाला और बाथरूम में चली गई. शावर के नीचे वह टूट कर गिर पड़ी. न जाने कितनी देर तक वहां पड़ी रोती रही, तड़पती रही. सचिन की जिस जिमटोन बौडी की वह कभी फैन थी, आज उसी शरीर ने उसे रौंद डाला था.
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