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मनोजजी को अपने कुल तथा अपने बच्चों पर बड़ा अभिमान था. वह सोच भी नहीं सकते थे कि उन की बेटी इस प्रकार उन्हें झटका दे सकती है. उन के अनुसार, मलय के परिवार की उन के परिवार से कोई बराबरी नहीं है. उस के पिता अनिल कृषि विभाग में द्वितीय श्रेणी के अधिकारी थे, उन का रहनसहन भी अच्छा था. पढ़ालिखा परिवार था. दोनों परिवारों में मेलमिलाप भी था. मलय भी अच्छे संस्कारों वाला युवक था, किंतु उन के मध्य जातिपांति की जो दीवारें थीं, उन्हें तोड़ना इतना आसान नहीं था. तब अपनी बेटी का विवाह किस प्रकार अपने से निम्न कुल में कर देते.

जबतब मनोजजी अपने ऊंचे कुल का बखान करते हुए अनिलजी को परोक्ष रूप से उन की जाति का एहसास भी करा ही देते थे. अनिलजी इन सब बातों को समझते थे, किंतु शालीनतावश मौन ही रहते थे. जब मनोजजी ने बेटी तृषा को अपनी जिद पर अड़े देखा तो उन्होंने अनिलजी से बात की और फिर आपसी सहमति से एक सादे समारोह में कुछ गिनेचुने लोगों की उपस्थिति में बेटी का विवाह मलय से कर दिया. जब तृषा विदा होने लगी तब उन्होंने ‘अब इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा के लिए बंद हो गए हैं’ कह तृषा के लिए वर्जना की एक रेखा खींच दी.ॉ

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बेटी तथा दामाद से हमेशा के लिए अपना रिश्ता समाप्त कर लिया. इस के विपरीत मलय के परिवार ने बांहें फैला कर उस का स्वागत किया. तब से 12 वर्ष का समय बीत चुका था. किंतु मायके की देहरी को वह न लांघ सकी. जब भी सावन का महीना आता उसे मायके की याद सताने लगती. शायद इस बार पापा उसे बुला लें की आशा बलवती होने लगती, कानों में यह गीत गूंजने लगता: ‘‘अबकी बरस भेजो भैया को बाबुल सावन में लीजो बुलाय रे,

लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियां दीजो संदेसा भिजाय रे.’’ इस प्रकार 12 वर्ष बीत गए, किंतु मायके से बुलावा नहीं आया. शायद उस के पिता को उसे अपनी बेटी मानने से इनकार था, क्योंकि अब वह दूसरी जाति की जो हो चुकी थी.

बेटा मोहक जो अब 9 वर्ष का हो चुका था. अकसर पूछता, ‘‘मम्मी, मेरे दोस्तों के तो नानानानी, मामामामी सभी हैं. छुट्टियों में वे सभी उन के घर जाते हैं. फिर मैं क्यों नहीं जाता? क्या मेरे नानानानी, मामामामी नहीं हैं?’’ तृषा की आंखें डबडबा जाती थीं लेकिन वह भाई से उस लक्षमणरेखा का जिक्र भी नहीं कर सकती थी जो उस के दंभी पिता ने खीचीं थी और जिसे वह चाह कर भी पार नहीं कर सकती थी.

ड्राइवर गाड़ी ले कर आ गया था. जब वह मोहक को स्कूल से ले कर लौटी, तो उस ने मलय को अपने कमरे में किसी पेपर को ढूंढ़ते देखा. तृषा को देख कर उस का चेहरा थोड़ा स्याह सा पड़ गया. अपने हाथ के पेपर्स को थोड़ा छिपाते हुए वह कमरे से बाहर जाने लगा. ‘‘क्या हुआ मलय इतने अपसैट क्यों हो, और ये पेपर्स कैसे हैं?’’

‘‘कुछ नहीं तृषा… कुछ जरूरी पेपर्स हैं… तुम परेशान न हो,’’ कह मलय चला गया. तृषा के मन में अनेक संशय उठते, कहीं ये तलाक के पेपर्स तो नहीं…

पिछले 12 वर्षों में उस ने मलय को इतना उद्विग्न कभी नहीं देखा था. ‘क्या मलय को अब उस से उतना प्यार नहीं रहा जितनी कि उसे अपेक्षा थी? क्या वह किसी और से अपना दिल लगा बैठा है और मुझ से दूर जाना चाहता है? क्यों मलय इतना बेजार हो गया है? कहां चूक हो गई उस से? क्या कमी रह गई थी उस के प्यार में’ जबतब अनेक प्रश्नों की शलाका उसे कोंचने लगती. मलय के प्यार में उस ने अपनेआप को इतना आत्मसात कर लिया था कि उसे अपने आसपास की भी खबर नहीं रहती थी. मायके की स्मृतियों पर समय की जैसे एक झीनी सी चादर पड़ गई थी.

‘नहींनहीं मुझे पता करना ही पड़ेगा कि क्यों मलय मुझ से तलाक लेना चाहता है?’ वह सोचने लगी, ‘ठीक है आज डिनर पर मैं उस से पूछूंगी कि कौन सा अदृश्य साया उन दोनों के मध्य आ गया है. यदि वह किसी और को चाहने लगा है तो ठीक है, साफसाफ बता दे. कम से कम उन दोनों के बीच जो दूरी पनप रही है उसे कम करने का प्रयास तो किया ही जा सकता है.’ शाम के 5 बज गए थे. मलय के आने का समय हो रहा था. उस ने हाथमुंह धो कर हलका सा मेकअप किया, साड़ी बदली, मोहक को उठा कर उसे दूध पीने को दिया और फिर होमवर्क करने के लिए बैठा दिया. स्वयं रसोई में चली गई, मलय के लिए नाश्ता बनाने. आते ही उसे बहुत भूख लगती थी.

ये सब कार्य तृषा की दिनचर्या बन गई थी, लेकिन इधर कई दिनों से वह शाम का नाश्ता भी ठीक से नहीं कर रहा था. जो भी बना हो बिना किसी प्रतिक्रिया के चुपचाप खा लेता था. ऐसा लगता था मानो किसी गंभीर समस्या से जूझ रहा है. कोई बात है जो अंदर ही अंदर उसे खाए जा रही थी, कैसे तोड़ूं मलय की इस चुप्पी को… नाश्ते की टेबल पर फिर मलय ने अपना वही प्रश्न दोहराया, ‘‘क्या सोचा तुम ने?’’

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‘‘किस विषय में?’’ उस ने भी अनजान बनते हुए प्रश्न उछाल दिया. ‘‘तलाक के विषय में और क्या,’’ मलय का स्वर गंभीर था. हालांकि उस के बोलने का लहजा बता रहा था कि यह ओढ़ी हुई गंभीरता है.

‘‘खुल कर बताओ मलय, यह तलाकतलाक की क्या रट लगा रखी है… क्या अब तुम मुझ से ऊब गए हो? क्या मेरे लिए तुम्हारा प्यार खत्म हो गया है या कोई और मिल गई है?’’ तनिक छेड़ने वाले अंदाज में उस ने पूछा. ‘‘नहीं तृषा, ऐसी कोई बात नहीं, बस यों ही अपनेआप को तुम्हारा अपराधी महसूस कर रहा हूं. मेरे लिए तुम्हें अपनों को भी हमेशा के लिए छोड़ना पड़ा, जबकि मेरा परिवार तो मेरे ही साथ है. मैं जब चाहे उन से मिल सकता हूं, मोहक का भी ननिहाल शब्द से कोई परिचय नहीं है. वह तो उन रिश्तों को जानता भी नहीं. मुझे तुम्हें उन अपनों से दूर करने का क्या अधिकार था,’’ कह मलय चुप हो गया.

‘‘अकस्मात 12 वर्षों बाद तुम्हें इन बातों की याद क्यों आई? मुझे भी उन रिश्तों को खोने का दर्द है, किंतु मेरे दिल में तुम्हारे प्यार के सिवा और कुछ भी नहीं है… ठीक है, जीवन में मातापिता का बड़ा ही अहम स्थान होता है, किंतु जब वही लोग अपनी बेटी को किसी और के हाथों सौंप कर अपने दायित्वों से मुक्त हो जाते हैं तब प्यार हो या न हो बेटी को उन रिश्तों को ढोना ही पड़ता है, क्योंकि उन के सम्मान का सवाल जो होता है, भले ही बेटी को उस सम्मान की कीमत अपनी जान दे कर ही क्यों न चुकानी पड़े. कभीकभी दहेज के कारण कितनी लड़कियां जिंदा जला दी जाती हैं और तब उन के पास पछताने के अलावा कुछ भी शेष नहीं रह जाता है. हम दोनों एकदूसरे के प्रति समर्पित हैं, प्यार करते हैं तो गलत कहां हुआ और मेरे मातापिता की बेटी भी जिंदा है भले ही उन से दूर हो,’’ तृषा के तर्कों ने मलय को निरुत्तर कर दिया.

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