मृगांक का गुस्सा उस के रूमानी नखरों के बीच काफूर हो गया. मन ही मन उस ने कहा, ‘वाह.’ एक मिनट तक दोनों एकदूसरे की ओर देखते रहे. मृगांक ने चुप्पी तोड़ी, कहा, ‘‘क्या बात है, मुझ से कहो. यहां की सारी बच्चियों के लिए मैं ही पिता, मैं ही मां. तुम्हारी भी अगर...’’
‘‘मेरे हिस्से का रिश्ता मुझे तय करने दीजिए. जरूरी नहीं कि तुरंत 2 व्यक्तियों को किसी रिश्ते के नाम में बांध ही दिया जाए.’’ रिजवाना की इन बातों में बड़ी कशिश थी. वह क्या अनछुआ सा था अब तक जिसे छूने की प्यास सताने लगी मृगांक को. कभी ऐसा महसूस तो नहीं हुआ था उसे, आज क्यों...?
मृगांक ने मुसकराते हुए उस की तरफ देखा, फिर कहा, ‘‘क्यों दुखी हो, मुझ से कहो.’’ तड़पती सी वह धीरे से बोली, ‘‘मैं अपने घर चिल्लाघाट नहीं जाऊंगी. बच्ची को ले कर वहां जाऊंगी तो घर वाले तो क्या, पूरे गांव वाले कच्चा चबा जाएंगे.’’
मृगांक को बड़ा तरस आया उस पर. पूछा, ‘‘क्या हुआ था तुम्हारे साथ? मैं ने पुलिस की दबिश डलवा कर तुम 15 लड़कियों को जहां से छुड़ाया, वह तो नरक से कुछ कम नहीं था. इन में से कई लड़कियां असम, बिहार और पश्चिम बंगाल से लाई गई हैं. तुम और 3 दूसरी लड़कियां उत्तर प्रदेश की हो. ये लोग दुबई आदि जगहों पर शेखों के पास तुम जैसी लड़कियों को बेच देते हैं.’’
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‘‘3 महीनों से हमें इलाहाबाद में रखा हुआ था. हमारे साथ यहां बहुत बुरा सुलूक होता था. करंट देने से ले कर कोड़े बरसाने तक. 3-4 दिनों तक खाना नहीं देना, सब के सामने कपड़े फाड़ डालना, मारना, पीटना आदि.’’ रिजवाना की बातें सुन कर मृगांक की आंखों में दर्द भर आया. उस ने तड़प कर पूछा, ‘‘क्यों?’’