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फिर अपनी सोच पर अंजलि खुद घबरा गई. उस ने लता को फोन लगाया तो उस ने भी फोन नहीं उठाया. लता के पिताजी के घर पर फोन किया तो पता चला लता अभी तक अपने घर नहीं पहुंची. अगर लता 11 बजे की बस से भी निकलती तो एकडेढ़ बजे तक अपने घर पहुंच जाती. अब तो ढाई बज गए हैं. अंजलि घर में अंदरबाहर होती रही. कभी विनीत का फोन मिलाती तो कभी लता का और कभी आनंद का.

4 बजे जा कर विनीत का फोन आया. अंजलि ने घबरा कर पूछा कि कहां हैं और औफिस क्यों नहीं गए…फोन क्यों नहीं उठा रहे थे. मगर विनीत का जवाब सुन कर अंजलि के गुस्से का पारावर न रहा. दरअसल, विनीत लता को बस में बैठा कर औफिस जाने के लिए ही निकला था, मगर रास्ते में एक मौल में नई रिलीज हुई फिल्म का पोस्टर देख कर लता का मन हुआ उस फिल्म को देखने का. शो 12 बजे का था. अत: दोनों मौल में ही घूमते रहे और 12 बजे फिल्म देखने बैठ गए. फिल्म का साउंड तो तेज होता ही है. अत: फोन की रिंग सुनाई नहीं दी. अब लता को बस में बैठाने के बाद उस ने मिस्ड कौल देखीं.

अंजलि ने विनीत की पूरी बात सुने बिना ही फोन काट दिया.

आज तो आनंद के फोन आने से अंजलि को पता चल गया कि विनीत औफिस नही पहुंचा है वरना विनीत तो कभी बताता नहीं. वह 6 बजे घर आता और ऐसे दर्शाता जैसे सीधे औफिस से चला आ रहा है. पहले भी पता नहीं कितनी बार झूठ बोल चुका होगा विनीत… क्या पता सच में फिल्म देखने गए थे या फिर 10 बजे से 4 बजे तक…

जब इनसान का एक झूठ पकड़ा जाता है, तो फिर उस के ऊपर से विश्वास उठ जाता है. फिर उस की हर बात में झूठ की ही गंध आने लगती है.

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विनीत भी समझ गया था कि इस बार तो अंजलि को बहुत बुरा लगा है और अब वह कई दिनों तक गुस्सा रहेगी. विनीत अपनी गलती समझ गया था, इसलिए अंजलि से बहुत अच्छा बरताव कर रहा था. घर के कामों में हाथ बंटाना, अपना काम समय पर करना. समय पर घर में सामान, सब्जी ला देता. लेकिन अंजलि ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. न अच्छी न बुरी. वह विनीत की ओर से एकदम तटस्थ और उदासीन हो गई थी. घर के सारे काम सुघड़ ढंग से निबटाती. विनीत से जितना जरूरी होता उतना ही बोलती. एक तरह से घर में उन दोनों के बीच शीत युद्ध जैसी स्थिति बन गई थी.

विनीत को बहुत बैचेनी हो रही थी. अंजलि खुल कर झगड़ा कर लेती तो विनीत भी बहस कर के अपनी सफाई दे देता या उलटा हर बार की तरह अंजलि की सोच को छोटा कह कर उसे ही गलत साबित कर के अपनी गलती ढांप लेता. लेकिन अभी तो अंजलि न बोल कर, न झगड़ा कर के एक तरह से विनीत को अपराधी साबित कर चुकी है. विनीत अंदर ही अंदर अपनी गलती का एहसास कर के अपराधबोध से ग्रस्त हो रहा है. गलती पर गलतियां कर के भी अंजलि पर हावी रहने वाले विनीत को यों अंदर ही अंदर कसमसाते रहना बहुत खल रहा था. 2-4 बार उस ने अंजलि से बात करने की, अपनी सफाई देने की कोशिश की भी पर अंजलि ने उसे नजरअंदाज कर दिया. कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की.

10-12 दिन बाद अचानक सामान उठानेरखने की आवाजें सुन कर विनीत ने दरवाजा खोल कर देखा तो सामने वाले फ्लैट का दरवाजा खुला था और मजदूर सामान अंदर रख रहे थे.

शाम को औफिस से आया तो देखा सामने वाले फ्लैट का दरवाजा बंद था. विनीत ने सोचा इन का सारा सामान रखा गया होगा. चाय पीते हुए उस ने अंजलि से पूछताछ की तो पता चला सामने कोई फैमिली नहीं वरन एक युवक रहने आया है. उसे इसी शहर में नौकरी लगी है और सामने वाला फ्लैट किराए पर ले कर वह यहीं रहेगा. विनीत को अफसोस हुआ. अगर परिवार होता तो ज्यादा अच्छा होता, अंजलि को कंपनी मिल जाती. युवक का रहना न रहना तो बराबर ही है.

दूसरे दिन सुबह अंजलि के बात करने की आवाज सुन कर विनीत बाहर आया तो पता चला वह युवक आया था बाई के बारे में कहने. अंजलि ने उस के यहां अपनी बाई भेजने का आश्वासन दे दिया. थोड़ी देर बाद वह पीने का पानी भरने के लिए बरतन लेने आया. विनीत के औफिस जाने तक वह युवक जिस का नाम रोहित था 4-5 बार किसी न किसी काम से अंजलि के पास आया. विनीत ने सरसरी निगाहों से उसे देखा. लंबा, गोराचिट्टा सुदर्शन युवक था.

शाम को विनीत औफिस से घर आया तो अंजलि ने चाय बनाई और रोहित को भी चाय पर बुला लिया. रोहित आया. तीनों ने साथ चाय पी और बातें कीं. विनीत को यह भला लड़का लगा. उस का परिवार पास के ही शहर में रहता था. घर में मम्मीपापा के अलावा दादी, एक छोटी बहन और भाई भी है. थोड़ी देर बातें कर के रोहित चला गया. 4-5 दिन में उस का घर व्यवस्थित हो गया. सामान जमाने में अंजलि ने उस की मदद की.

एक दिन विनीत घर आया तो अंजलि घर पर नहीं थी. रोहित के घर पर भी ताला लगा था. 5 मिनट बाद रोहित और अंजलि आ गए. अंजलि रोहित को किचन का कुछ जरूरी सामान खरीदवाने उस के साथ मार्केट गई थी.

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फिर तो रोज ही घर का कुछ न कुछ सामान लेने रोहित अंजलि को मार्केट ले जाने लगा. कभी ब्रैड, बटर, दूध तो कभी चादरतकिए, परदों का कपड़ा, तो कभी बालटीमग आईना, इत्यादि लेने. अंजलि रोज विनीत के आने से पहले या समय पर वापस आ जाती. रात का खाना तो रोहित साथ ही खाता. 1-2 बार विनीत थोड़ा झुंझला भी गया कि यह क्या रोजरोज उस के साथ बाजार चली जाती हो. ऐसा ही था तो उस की मां आ कर उस का घर क्यों नहीं सैट कर जातीं, तब अंजलि ने कह दिया कि उस की दादी की तबीयत ठीक नहीं है और बहन की परीक्षाएं सिर पर हैं इसलिए वह भी नहीं आ सकती है.

इसी बीच लता फिर उन के यहां आ धमकी. लता के आने से विनीत फिर उस के आगेपीछे घूमने लगा. उसे लगा कि अंजलि यह देख कर परेशान हो जाएगी हर बार की तरह. लेकिन इस बार तो अंजलि ने उन दोनों को पूरी तरह नकार दिया. लता आई तब रोहित की भी छुट्टियां थी. अत: वह सारा दिन अंजलि के यहीं रहता.

रोटियां बनाने लता जैसे ही किचन में आई अंजलि तपाक से बाहर चली आई और रोहित को बुला लाई. विनीत का अजब हाल हो रहा था. उस का ध्यान अंजलि और रोहित पर था और मन मार कर लता के साथ किचन में खड़ा होना पड़ रहा था.

आगे पढें- अंजलि दूसरे सोफे पर अकेली बैठी थी. तभी रोहित…

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