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‘‘अरे वाह, यह हमारा मनपसंद इलाका है. बंगाल के चलचित्र महानायक उत्तम कुमार का कर्मस्थान.’’

‘‘तुम्हें पसंद आएगा, मैं जानती थी.’’

‘‘तुम यहां किसी को जानती हो?’’

ड्रामा स्कूल में प्रवेश करते हुए नंदिनी शहाना से मुखातिब हुई, ‘‘यह ड्रामा स्कूल शुभंकर दा का है... मैं यहां सदस्य हूं.’’

‘‘तुम? तुम तो बड़ी सीधी सी बेजबान कोमलांगिनी, शरमीली, गृहवधू हो.’’

‘‘चलो, अंदर चलो,’’ नंदिनी ने मृदु स्वरमें कहा.

शुभंकर की टीम को नंदिनी का आगमन स्वयं कला की देवी के आविर्भाव सा प्रतीत हुआ.

इधरउधर बैठे टीम के सदस्य अपनेअपने रोल की प्रैक्टिस कर रहे थे. नंदिनी का रोल ही आधार चरित्र था. उस के बिना नाटक कर पाना असंभव था. नंदिनी को देख सभी बड़े खुश हुए, मगर नंदिनी कल की चिंता में बेचैन थी.

शुभंकर दा ने नंदिनी की बेचैनी को भांप लिया. आज शुभंकर दा की पत्नी अनुभा भाभी भी यहां थीं. जब से इन का बेटा अमेरिका गया था नौकरी के लिए, अनुभा भाभी कोई न कोई नया कुछ पकवान बना कर यहीं ले आती.  शुभंकर दा ने जब नंदिनी से बेचैनी का कारण पूछा तो उस की आंखों से आंसू बहने लगे.

अनुभा भाभी ने उसे अपने पास बैठाया. शहाना और टीम के सभी सदस्य भी पास आ गए, जब नंदिनी के संघर्ष का सच खुला तो शहाना अवाक रह गई कि इतनी जिल्लतें, इतनी धमकियां, दुर्व्यवहार झेलते हुए भी वह घर और अपने शौक के जनून दोनों के साथ न्याय कैसे कर पा रही हैं?

शहाना ने कहा, ‘‘नंदिनी तुम अब सब कुछ मुझ पर छोड़ दो. तुम्हारे शो का टाइम 8 बजे से है और मेरा शाम 4 से 6 बजे तक... सब ठीक हो जाएगा,’’ और फिर घर लौट आईं.रात को शहाना ने नयन को ऐसी जादुई खुशबू सुंघाई कि नयन ने कहा, ‘‘बस देखती जाओ.’’

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