रूही का ही फोन होगा, यह सोच कर मिताली ने फोन उठा लिया. फोन उठाते ही उस ने हैलो बोलने के लिए जैसे ही मुंह खोला, वहां से बहुत ही घबराई और कांपती हुई आवाज कानों में पड़ी, ‘‘संजयजी, प्लीज, प्लीज, मुझे बचा लो, मैं आप के आगे हाथ जोड़ती हूं, संजयजी. प्लीज, फोन नहीं काटना, संजय. आप की कसम, मैं मितालीजी के पांव पकड़ कर माफी मांग लूंगी. पर प्लीज, मुझे बचा लो... मैं सारी बातें अपने सिर ले लूंगी. मैं तुम्हारे सामने कबूल कर लूंगी कि यह बच्चा भी आप का नहीं है. संजयजी, आप मुझे हर बार सरप्राइज गिफ्ट देते हो. आज अंतिम बार अपनी दया का गिफ्ट दे दो. मैं कभी आप की जिंदगी में नहीं आऊंगी. प्लीज, संजय...’’ मिताली का चेहरा पत्थर सा हो गया.
उस ने अपनेआप को संभाला और बोली, ‘‘हैलो... हैलो... हैलो... कौन बोल रहा है? मुझे आवाज नहीं आ रही. हैलो... हैलो...’’ कहतेकहते मिताली ने अपने पति संजय को देखा, जो बेड पर बैठा शान से बेड टी का आनंद ले रहा था. फोन वहीं से कट हो गया. मिताली ने भी अपनी चाय उठा ली.
वह सोच में पड़ गई, ‘इस का मतलब सुबहसुबह जो 4-5 बार लगातार फोन बज रहे थे वे रूही के ही फोन थे? मुझे तो ऐसा लगा कि रात 3 बजे के करीब भी संजय का मोबाइल बजा था. पर शायद फिर संजय ने उसे म्यूट पर रख दिया था. क्या संजय मुझे यह जताना चाह रहा है कि उस का अब रूही से कोई वास्ता नहीं. पर अचानक ही रूही किस मुसीबत में फंस गई है, जो वह संजय से अपने को बचाने की गुहार लगा रही है. यहां तक कि उस के पेट का बच्चा भी संजय का नहीं है यह कबूल कर लेने को तैयार है? अब फिर यह फोन? उस की आवाज इतनी डरी हुई क्यों थी? अचानक ही आधे दिन में ऐसा क्या हो गया?’