09.06.07
सं...जी ने मुझे अपनी लिखी कविताएं दीं. कविताएं...? मुझे हंसी आ रही थी. कविता नहीं बातें थीं वे, जो उन्होंने मेरे लिए लिखी थीं. यानी वे भी मेरे बारे में सोचते हैं? आज डेढ़ साल बाद मुझे एहसास हुआ है. वे भी मुझे बेहद चाहते हैं. ‘मेरी पत्नी सुंदर है, पर रूह, तुम में एक अजीब सी कशिश है, जो किसी में नहीं है. तुम बहुत ही अलग हो.’
हाय. आज उन्होंने यह एहसास दिला दिया कि मैं अपनी पत्नी से कहीं ज्यादा उन्हें भाती हूं. कभीकभी सोचने लगती हूं कि मैं ने इतनी जल्दी शादी क्यों की? थोड़ा इंतजार नहीं कर सकती थी. कभीकभी उन्हें छोड़ने का मन नहीं होता.
06.07.07
संजयजी यह काम भी करते हैं? मैं हैरान हो गई. मुझे वह कागजों का पुलिंदा अहमद खान को देने के लिए होटल भेजा. बाद में मुझे बता रहे हैं कि वे कोई सीक्रेट कागज थे, जो वे स्वयं उसे नहीं दे सकते थे. ऐसा क्या होगा उन में? छोड़ो, संजयजी ने कहा और मैं ने किया, बस, मेरे लिए इतना ही काफी है. सो स्वीट सं...
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09.07.07
क्या बात है, आज सं... ने मुझे लेख लिखने के लिए अपने आफिस के कुछ ऐसे ओरिजिनल पत्र दिखाए. जिन्हें शायद उन्हें किसी को दिखाने भी नहीं चाहिए थे. इतना विश्वास करते हैं वे मुझ पर? हां, वैसे तो उन्होंने मुझे अपना लैपटौप, मोबाइल यहां तक कि अपने केबिन की हर चीज इस्तेमाल करने का हक भी दे रखा है, अपनी पत्नी के सामने भी रोब से ही रहते हैं. अब तो मुझे उन की पत्नी के आने, देखने या खड़े रहने की जरा भी परवाह नहीं होती, बल्कि मुझे लगता है कि मैं ही उन की पत्नी... हाय कितना अच्छा लगता है यह सोचना.