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अलका घर लौट आई मगर यह बात उस के दिलोदिमाग में घूमती रही. घर में खुशियां मनाई जा रही थीं पर वह गहरे सदमे में थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपना यह दर्द घरवालों से साझा करे या नहीं. किसी और ने तो गौर नहीं किया मगर समीर अपनी पत्नी के चेहरे पर खुशी की चमक न देख कर हैरान था.

रात में जब घर में सब सो गए तो समीर ने प्यार से बीवी का माथा सहलाते हुए पूछा," क्या बात है अलका तुम्हारे चेहरे पर वह खुशी नहीं जो इस वक्त होनी चाहिए. वैसे भी काफी दिनों से तुम मुझे परेशान सी दिख रही हो. मुझे ऐसा क्यों लग रहा है जैसे तुम ने मुझ से कोई बात छिपा रखी है और उसी को ले कर परेशान रहती हो. "

अलका की आंखें भर आईं. उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह बात अपने पति से शेयर करे या नहीं. आखिर वह भी तो एक पुरुष ही है और पुरुष सब कुछ स्वीकार कर सकते हैं मगर अपनी स्त्री का चरित्र हनन नहीं. पुरुष एक ऐसी स्त्री को स्वीकार नहीं कर सकता जो अपनी इज्जत गंवा चुकी हो.

वह पति की तरफ देखती हुई रो पड़ी तो पति ने उसे उठा कर सीने से लगा लिया और आंसू पोंछते हुए अपना सवाल दोहराया," अलका तुम किस बात पर इतनी परेशान हो मुझे बताओ प्लीज . जो भी बात तुम्हारे दिल को तकलीफ पहुंचा रही है मुझ से कहो. हम जीवन साथी हैं और हमें एकदूसरे से कोई राज नहीं रखना."

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