रहिला बुरी तरह तिलमिला गई और फिर पैर पटकते हुए गैस्टहाउस में आ गई. फिर सोचने लगी कि और बेइज्जती बरदाश्त नहीं कर सकती. औपरेशन तो हो ही गया है, जितेंद्र से कहेगी पहली उड़ान से उस की वापसी का इंतजाम कर दे. तभी उस का मोबाइल बजा.
‘‘आप कहां हैं मैडम?’’ जितेंद्र ने पूछा, ‘‘जल्दी से अस्पताल के रूम में पहुंचिए राजेंद्रजी की हालत देखने के बाद सारिका मैडम बहुत घबरा गईर् हैं.’’
‘‘अनिता से कहो उन्हें समझाने को, सलिल भी तो होगा वहां. और सुनो जितेंद्र, वहां से फुरसत मिले तो गैस्टहाउस आना,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया.
कुछ देर बाद ही अनिता के साथ बदहवास सारिका और उस का सामान उठाए जितेंद्र और सलिल आ गए.
‘‘हम मैडम को यहीं ले आए हैं...’’
‘‘अस्पताल के नियमानुसार आईसीयू के मरीज के परिजन को रूम में ही रहना होता है,’’ रहिला ने अनिता की बात काटी.
‘‘उस के लिए मैं हूं न,’’ सलिल बोला, ‘‘जीजाजी का फूला नीला चेहरा देख कर जीजी बहुत घबरा गई हैं.’’
‘‘राजेंद्र साहब के चेहरे का फूलना स्वाभाविक है, क्योंकि रीढ़ की हड्डी का औपरेशन था. अत: उन्हें पेट के बल लिटाया गया होगा और 7-8 घंटे उस अवस्था में बेहोश लेटने पर मुंह पर खून जमेगा और सोजिश आएगी ही, जो जल्दी उतरेगी भी नहीं. घबराने की बात नहीं है.’’
‘‘यही मैं भी कह रहा हूं रहिलाजी, लेकिन जीजी मेरी बात समझती ही नहीं हैं,’’ सलिल बेबसी से बोला, ‘‘आप जीजी को अपने साथ रखिए ताकि ये ठीक से खा और सो सकें.’’
‘‘लेकिन मैं तो कल सुबह वापस जा रही हूं,’’ रहिला ने बेरुखी से कहा.