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दिल्ली की आउटररिंग रोड पर भागते आटो में बैठा पदम उतावला हो रहा था, घर कब आएगा? कब सब से मिलूंगा.

आटो से बाहर झांका, सुबह का झुटपुटा निखरने लगा था. एअरपोर्ट से उस का घर 18 किलोमीटर होगा. यहां से उस के घर की दूरी एक घंटे में पूरी हो जाएगी और फिर वह अपने घर पर होगा. पूरे 22 बरस बाद लौटा है पदम. उसे मलकागंज का भैरोंगली चौराहा, घर के पास बना पार्क और उस के पास बरगद का मोटा पेड़ सब याद है. इन सब के सामने वह अचानक खड़ा होगा, कितना रोमांचक होगा. नहीं जानता, वक्त के साथ सबकुछ बदल गया हो. हो सकता है मम्मीपापा, भैया कहीं और शिफ्ट हो गए हों. उस ने 2 दशक से उन की खोजखबर नहीं ली. आंखें बंद कर के वह घर आने का इंतजार करने लगा.

22 बरस पहले की यादों की पोटली खुली और एक ढीठ बच्चा ‘छोटा पदम’ सामने खड़ा हुआ. हाथ में बैटबौल और खेल का मैदान, यही थी उस छोटे पदम की पहचान. कुशाग्रबुद्धि का था पदम. सारा महल्ला उसे ‘मलकागंज का गावस्कर’ के नाम से जानता था. एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाला यह बच्चा टीचर्स का भी लाड़ला था. किंतु वह अपनी मां को ले कर हैरान था. जहां जाता, मां साथ जाती. 9 बरस के पदम को मम्मी स्कूल के गेट तक छोड़ कर आती और वापसी में उसे वहीं खड़ी मिलती. यहां तक कि पार्क में जितनी देर वह बैटिंगफील्ंिडग करता, वहीं बैंच पर बैठ कर खेल खत्म होने का इंतजार करती.

मां के इस व्यवहार से वह कई बार खीझ जाता, ‘मम्मी, मैं कोई बच्चा हूं जो खो जाऊंगा? आप हर समय मेरे पीछे घूमती रहती हो. मेरे सारे दोस्त पूरे महल्ले में अकेले घूमते हैं, उन की मांएं तो उन के साथ नहीं आतीं. फिर मेरे साथ यह तुम्हारा पीछेपीछे आना क्यों?’

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