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‘दूसरा सच यह भी है कि तू एक हिजड़े का बाप कहलाने से बचना चाहता है. ‘पिछले 10 बरसों में कितनी ही बार पता लगा कि फलां जगह लोगों ने पदम को देखा था पर तू चुप बैठ गया. तेरी इस शीत प्रतिक्रिया ने भाभी को बहुत ज्यादा दुखी किया है.

‘अरे, तू क्या जाने मां का दिल कैसा फटता है. लानत है ऐसे पत्थर दिल बाप पर.’ मुन्ना ने जो कहा वह सब सच था.

शिशिर उस दिन मुंह छिपा कर चला गया था. डरता था कि कहीं मुन्ना की बात से उस का निश्चय डगमगा न जाए.

लेकिन उस के निश्चय से राम को अमेरिका भेजने का सपना पूरा हो ही गया. यद्यपि उस के जीवन की सारी जमा पूंजी दावं पर लग गई थी, फिर भी वह खुश था. राम को अमेरिका गए पूरे 5 साल हो गए हैं. इस बीच राम का असली चेहरा सब के सामने आ गया था.

शिशिर ने सोचा था राम उस की गरीबी दूर करेगा, पैसे कमा कर अमेरिका से भेजेगा, बुढ़ापे की लाठी बनेगा. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. उलटे, उसे फोन पर बेटे से धमकियां मिलतीं, ‘पापा, इस मकान को बेच दो. मैं तुम्हें नई कालोनी में बढि़या प्लैट खरीद दूंगा. मेरा हिस्सा मुझे दे दो वरना...’ ‘नहीं, मैं यहीं ठीक हूं.’

मुन्ना ने समझाया, ‘यह बेवकूफी हरगिज न करना. तेरे सिर पर से छत भी जाएगी और तू सड़क पर

आ जाएगा.’ राम के इस व्यवहार से सब का मन दुखी होता, पर आखिर विकल्प क्या था?

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