परदा उठता है. मंच पर अंधेरा है. दाएं पार्श्व पर धीमी रोशनी गिरती है. वहां 2 कुरसियां रखी हैं. एक अधेड़ सा व्यक्ति जोगिया कपड़ों में और एक युवक वहां बैठा है.

परदे के पीछे से आवाजें आती हैं :

‘‘बाबा बीमार है, अब तो चलाचली है, बैंड वालों को बता दिया है. विमान निकलेगा. आसपास के संतों को भी सूचना दी जा चुकी है. उदयपुर से भाई साहब रवाना हो चुके हैं. महामंडलेश्वर श्यामपुरीजी भी आने वाले हैं, पर बाबाओं में झगड़ा है, रामानंदी मंजूनाथ कह रहे हैं, अंतिम संस्कार हमारे ही अखाड़े के तरीके से होगा.’’

आवाजें धीरेधीरे शोर में बढ़ती जाती हैं फिर अचानक परदे के पीछे की आवाजें धीमी पड़ती जाती हैं.

शास्त्रीजी- भैया, अपना आश्रम तो बन गया है, अब पिंकीजी आगे का प्रबंध आप को करना है.

पिंकी- जी वह, बिजली का बिल.

शास्त्रीजी-(इशारा करते हुए) आश्रम का लगा दो.

पिंकी- पर वह तो बाबा के नाम है.

शास्त्रीजी- तो क्या हुआ, अभी तो पूरा आश्रम एक ही है.

पिंकी- यह आश्रम तो अलग बना है.

शास्त्रीजी- (हंसता है) पर बाबा का कोई भरोसा नहीं. मेरा पूरा जीवन यहां निकल गया. (दांत भींचता है) आज क्या कह रहा है, कल क्या कहेगा, मरता भी नहीं है, और मर गया तो ट्रस्ट वाले अलग ऊधम मचाएंगे. जहां गुड़ होता है, हजार चींटे चले आते हैं.

पिंकी- पर आप तो ट्रस्टी हैं और महामंत्री भी.

शास्त्रीजी- अरे, यह तो बाबाओं का मामला है. मैं ने तो बाबा से वसीयत पर दस्तखत भी ले रखे हैं. बात अपने तक रखना...पर वह शिवा है न, बाबा की चेली. सुना है, उस के पास भी वसीयत है. पता नहीं, इस बाबा ने क्याक्या कर रखा है. वह चेली चालाक है, ऊधम मचा देगी.

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