लेखक- आशा वर्मा

पंडित रामसनेही जवानी की दहलीज लांघ कर अधेड़ावस्था के आंगन में खड़े थे. अपने गोरे रंग और ताड़ जैसे शरीर पर वह धर्मेंद्र कट केश रखना पसंद करते थे. ज्यादातर वह अपने पसंदीदा हीरो की पसंद के ही कपड़े पहनते थे लेकिन कर्मकांड कराते समय उन का हुलिया बदल जाता था और ताड़ जैसे उन के शरीर पर धोतीकुरते के साथ एक कंधे पर रामनामी रंगीन गमछा दिखाई देता तो दूसरे कंधे पर मदारी की तरह का थैला लटका होता जिस में पत्रा, जंत्री और चालीसा रखते थे. माथे पर लाल रंग का बड़ा सा तिलक लगाए रामसनेही जब घर से निकलते तो गलीमहल्ले के सारे लड़के दूर से ही ‘पाय लागे पंडितजी’ कहते थे. सफेद लिबास के रामसनेही और पैंटशर्ट के रामसनेही में बहुत फर्क था.

रामसनेही को पुरोहिताई का काम अपने पुरखों से विरासत में मिला था क्योंकि बचपन से ही उन के पिता उन को अपने साथ रखते थे. विरासत की परंपरा में रह कर उन्होंने विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और मरने के बाद के तमाम कर्मकांड कराने की दीक्षा बखूबी हासिल कर ली थी. हर कार्यक्रम पर बोले जाने वाले श्लोक उन को कंठस्थ हो गए थे.

छोटे भाई से यजमानी के बंटवारे के समय पंचायत में तिकड़म भिड़ा कर ऊंचे तथा रईस घरों की यजमानी उन्होंने हथिया ली थी. छोटे भाई को जो यजमानी मिली थी वह कम आय वालों की थी, जहां पैसे कमाने की गुंजाइश बहुत कम थी. परिवार के नाम पर रामसनेही की एक अदद बीवी और बच्ची थी.

आज की पुरोहिताई के सभी गुण रामसनेही में कूटकूट कर भरे थे. और होते भी क्यों न, आखिर 15 सालों से शंख फूंकफूंक कर पारंगत जो हो चुके थे. लड़केलड़कियों की जन्मकुंडली न मिल रही हो तो वह कोई जुगत निकाल देते थे. विवाह का मुहूर्त या तिथि इधरउधर करना उन के बाएं हाथ का खेल था. कुंडली देख कर भविष्यवाणी भी करते थे. शनी से ले कर राहूकेतू की दशा का निराकरण भी करवाते थे. झाड़फूंक, जादुई अंगूठियों से वशीकरण जैसे कार्यों में उन्हें महारत हासिल थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...