"गुड्डन आज तुम फिर देर से आई हो, आठ बज गए हैं. तुम्हारे लिए सवेरेसवेरे सजनासंवरना ज्यादा
जरूरी है. अपने काम की फिक्र बिलकुल नहीं है. तुम ने तो हद कर दी है. इतनी सुबहसुबह कोई
लिपस्टिक लगाता है क्या? मैं तो तुम्हारी हरकतों से आजिज आ चुकी हूं.’’
गुड्डन लगभग 18-19 साल की लड़की है. वह उन की सोसाइटी के पीछे वाली खोली में रहती है.
जब वह 11-12 साल की थी तब वह मुड़ीतुड़ी फ्रौक पहन कर और उलझेबिखरे बालों के साथ मुंह
अंधेरे काम करने आ खड़ी होती थी. पर जैसे ही उस ने जवानी की दहलीज पर पैर रखा, उसे दूसरी
लड़कियों की तरह खुद को सजनेसंवरने का शौक हो गया था.
अब वह साफसुथरे कपड़े पहनती, सलीके से तरहतरह के स्टाइलिश हेयरस्टाइल रखती, नाखूनों में नेलपौलिश तो होंठ लिपस्टिक से रंगे होते.
बालों में रंगबिरंगी सस्ती वाली बैकक्लिप लगा कर आती.
अब वह पहले वाली सीधीसादी टाइप की नहीं वरन तेजतर्रार छम्मकछल्लो बन गई थी.
खोली के कई लड़कों के साथ उस के चक्कर चलने की बातें, उस खोली में रहने वाली दूसरी कामवालियां चटपटी खबरों की तरह एकदूसरे से कहतीसुनती रहती थीं.
निशा की बड़बड़ करने की आदत से वह अच्छी तरह परिचित थी. सुबहसुबह डांट सुन कर उस ने
मुंह फुला लिया था. लेकिन उन के घर से मिलने वाले बढ़िया कौस्मेटिक की लालच में वह चुपचाप उन की
बकबक को नजरअंदाज कर चुपचाप सुन लिया करती थी. दूसरे अंकलजी भी तो जब तब ₹100- 200 की
नोट चुपके से उसे पकड़ा कर कहते कि गुड्डन काम मत छोड़ना, नहीं तो तेरी आंटी परेशान हो जाएंगी.
वह अपनी नाराजगी दिखाने के लिए जोरजोर से बरतन पटक रही थी. निशा समझ गई थीं कि आज गुड्डन उन की बात का बुरा मान गई है. वह उस के पास आईं और प्यार से उस के कंधे पर हाथ रख कर बोलीं,"क्यों रोजरोज देर से आती हो? अंकलजी को औफिस जाने में देर होने लगती है न..."