लैंडलाइनपर जय के फोन से शाम 4 बजे नितिन और कावेरी की नींद खुली. फोन और लैंडलाइन पर, वे हैरान हुए. आजकल तो लैंडलाइन पर कभीकभार ही भूलेभटके किसी का फोन आता था. आज शनिवार था, दोनों की औफिस की छुट्टी थी तो लंच कर के गहरी नींद में सोए थे. घंटी बजती जा रही थी, दोनों ने एकदूसरे को शरारती नजरों से देखा और उठने का इशारा किया.
कावेरी ने न में सिर हिलाया तो नितिन ही उठा, ‘‘हैलो,’’ कहते ही उस की आवाज में जोश भर आया. कावेरी को उस की बातें सुनाई दे रही थीं.
कब? बहुत बढि़या आ जा.
‘‘हां, बिलकुल, बहुत मजा आएगा, यार. कितने साल हो गए. पता व्हाट्सऐप कर दूं? उफ, फिर लिख ले.’’
नितिन फोन पर पता लिखवा कर फोन रख कर कावेरी के पास आ कर लेट गया और कहने लगा, ‘‘गेस करो डियर, कौन आ रहा है?’’
‘‘तुम्हीं बता दो.’’
‘‘अरे थोड़ा तो गेस करो.’’
‘‘कोई पुरानी जानपहचान लग रही है जिस के पास हमारा लैंडलाइन नंबर भी है.’’
‘‘जय मुंबई आया है अभी, एक मीटिंग है उस की, डिनर पर आएगा, फिर वापस आज ही चला जाएगा, रात की ही फ्लाइट से.’’
कावेरी भी उत्साह से भर कर खुश हो गई. बोली, ‘‘अरे वाह, करीब 5 साल तो हो ही गए होंगे मिले हुए. आज तो खूब मजा आएगा जब बैठेंगे 3 यार, तुम वो और मैं. चलो बताओ, क्याबनाएं डिनर में? वैसे तो मेड आजकल छुट्टी पर है, घर में सब्जी वगैरह भी नहीं है, मैं सारा सामान शनिवार को ही तो लाती हूं. अब पहले कुछ सामान ले आएं?’’