रामभरोसे ईश्वर की तलाश में है. सरकार आतंकवादी की तलाश में है. दोनों परेशान हैं कि दोनों को दोनों ही नहीं मिल रहे.

दोनों ही छिपे रहते हैं. उन के तो बस कारनामों का ही पता चलता है जिस से उन की उपस्थिति का भ्रम बनता है. काम चाहे जिस ने किया हो पर नाम इन के मढ़ दिया जाता है.

रामभरोसे के 8 बच्चे हैं और वह इन सब के लिए कह देता है कि सब ईश्वर की देन हैं जबकि महल्ले भर को उस के एकएक बच्चे के बारे में पता है. शाखा के एक भाई साहब रात को चोरीचोरी उस के  घर के बाहर एक स्टिकर चिपका गए थे, ‘हिंदू घटा देश बंटा.’ तब से राम भरोसेजी ने अपने घर में हिंदुओं को घटने नहीं दिया. बच्चों के हिस्से की रोटी घट गई. दूध घट गया. पत्नी के तन का कपड़ा जहांजहां से फटता गया वहांवहां से घटता गया पर रामभरोसे ने हिंदू नहीं घटने दिया. हर साल जब ताली ठोंक कर बधाई देने वाले अपनी खरखरी आवाज में नाचगा कर बधाई दे रहे होते तो महल्ले के लोगों को पता चलता कि रामभरोसे ने एक हिंदू और बढ़ा दिया है. रामभरोसे मुश्किल से 5 रुपए निकाल पाते जबकि वे 500 मांग रहे होते. अंतत: वे 5 रुपए रामभरोसे के मुंह पर मार कर और थूक कर चले जाते. रामभरोसे देशभक्ति से अपनी शर्म उसी तरह ढक लेते जिस तरह बहुत सारे लोग अपने पाप ढक लेते हैं, अपनी सांप्र- दायिकता ढक लेते हैं.

आतंकवादी भी 10 घटनाएं करता है और 100 घटनाएं अपने नाम पर जुड़वा लेता है. शाम को दफ्तर का चपरासी जाते समय बाहर लगा बल्ब खींच ले जाता है और अगले दिन कह देता है कि आतंकवाद बढ़ गया है, देखो आतंकवादी रात में बल्ब खींच कर ले गए. अब छिपा आतंकवादी सफाई देने थोड़े ही आ सकता है.

हत्या, चोरी, डकैती, अपहरण सारे अपराध आतंकवादियों के नाम लिख कर पुलिस दिनदहाड़े टांगें पसार कर सो जाती है. जब जागती है तो जा कर 2-4 डकैती डाल लीं, राहजनी कर ली, दारू पी मुर्गा खाया, वीआईपी ड्यूटी की और सो गए. प्रेस वालों से कह दिया कि सारे अपराध आतंकवादी कर गए.

ज्यादातर आतंकवादी विदेशी या विदेश प्रेरित माने जाते हैं इसलिए मामला विदेश मंत्रालय से संबंधित माना जाता है. बेचारे विदेश मंत्री ओबामा और हिलेरी के नखरे देखें या तुम्हारी चोरीडकैती की चिंता करें. उन का भी काम यह कह कर चल जाता है कि विदेश प्रभावित आतंकवाद बहुत बढ़ गया है.

सरकार परमाणु बम फोड़ सकती है, सीमा पर फौज खड़ी कर सकती है, मिसाइल का परीक्षण कर सकती है पर आतंकवादी नहीं तलाश सकती. जैसे रामभरोसे को ईश्वर नहीं मिलता वैसे ही सरकार को आतंकवादी नहीं मिलता.

मिल भी जाए तो आतंकवादी को पकड़ने की परंपरा हमारे पास नहीं है, उसे मार दिया जाता है. अगर उसे पकड़ लिया गया तो वह बता सकता है कि मैं ने पुलिस के रास्ते में बम जरूर बिछाए थे पर दफ्तर का बल्ब नहीं चुराया, डकैती नहीं डाली, राहजनी नहीं की, इसलिए उसे मार दिया जाना जरूरी है.

ज्ञात तो ज्ञात अज्ञात आतंकवादी तक मार गिराए जाते हैं. देश ने शायद ऐसी गोलियां तैयार कर ली हैं जो आंख मूंद कर चलाए जाने पर भी किसी आतंकवादी को ही लगती हैं और उसे मार गिराती हैं. सैनिक की गोली से मारा जाने वाला हर व्यक्ति आतंकवादी होता है. उस की धर्मप्राण गोली किसी निर्दोष को लगती ही नहीं.

रामभरोसे ईश्वर की आराधना करते हैं, पूजा करते हैं, आरती करते हैं, व्रत- उपवास करते हैं, माथा रंगीन रखते हैं, चोटी रखते हैं, हाथ में कलावा बांधते हैं, जहां कहीं सिंदूर लगा पत्थर दिख जाए तो माथा झुकाते हैं, पर ईश्वर नहीं मिलता.

सरकार के सैनिक भी इधर से उधर गाडि़यां दौड़ाते हैं, मुखबिर पालते हैं, संदेशों की रिकार्डिंग करते हैं, डिकोडिंग करते हैं, रातरात भर जागते हैं, कंबिंग आपरेशन करते हैं, रिश्तेदारों को टार्चर करते हैं पर आतंकवादी नहीं मिलते.

दोनों की ही ग्रहदशा एक जैसी है. दोनों के ही आराध्य अंतर्धान हैं. रामभरोसे ने मंदिर में उस की संभावित मूर्ति बैठा रखी है. सुरक्षा सैनिकों ने उन के संभावित चित्र बनवा रखे हैं. दोनों ही सोचते हैं कि एक बार मिल जाए तब देखते हैं कि फिर कैसे छूटते हैं हमारी पकड़ से. शायद उसी खतरे को सूंघ कर ही न ईश्वर खुले में आता है और न ही आतंकवादी.

ईश्वर सर्वत्र है. आतंकवादी भी सर्वत्र हैं. सरकारी नेताओं की भाषा में कहें तो वर्ल्डवाइड फिनोमिना. वे पंजाब में रहे हैं, वे कश्मीर की जन्नत में रह रहे हैं, वे असम में हैं वे त्रिपुरा में हैं, नागालैंड में हैं, वे तमिलनाडु में हैं, वे बस्तर में हैं, बिहार, उड़ीसा, झारखंड में हैं. वे केरल में उभर आते हैं व पश्चिम बंगाल में वारदातें कर के भाग जाते हैं. वे कभी अयोध्या में दिखते हैं तो बनारस और मथुरा में भी दिख सकते हैं, वे मालेगांव में होते हैं तो बेलगांव में भी होते हैं. वे कहां नहीं हैं. वे लंका में हैं, वे अफगानिस्तान में हैं, नेपाल में हैं और यहां तक कि अमेरिका की चांद पर भी बाजे बजाते रहते हैं.

वे चित्र प्रदर्शनियों में चित्र फाड़ते हैं, फिल्में नहीं बनने देते, बन जाती हैं तो चलने नहीं देते, वे क्रिकेट के मैदान में पिचें खोद देते हैं, वे लाखों संगीत प्रेमियों को प्रभावित करने वाले गजल गायकों के कार्यक्रम नहीं होने देते, वे दिलीप कुमार के घर के बाहर प्रदर्शन करते हैं. वे मंदिर तोड़ते हैं, गिरजा तोड़ते हैं, मसजिद तोड़ते हैं. वेलेंटाइन डे पर प्रेमियों का दिल तोड़ते हैं.

अगर सरकार की आंख भेंगी न हो और वह विकलांग न हो तो बहुत सा आतंक साफसाफ देखा जा सकता है. और उसी तरह अगर रामभरोसे का मन साफ हो तो उसे भी ईश्वर दिख सकता है जैसे गांधीजी को दरिद्र में दिख गया था और उन्होंने उसे दरिद्र नारायण का नाम दिया था. पर अभी न तो सरकार को आतंकवादी दिख रहा है और न ही रामभरोसे को ईश्वर.

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