‘‘अदालतसे गुजारिश है कि मेरी मुवक्किला को जल्दी न्याय मिले ताकि वह अपनी एक नई जिंदगी शुरू कर सके,’’ माला के वकील ने अपनी दलीलें पेश करने के बाद जज साहब से कहा. जज साहब ने मामले की गंभीरता को समझते हुए अगली तारीख दे दी. तलाक के मामलों में बहुत जल्दी फैसला लेना मुश्किल ही होता है, क्योंकि अदालत भी चाहती है कि तलाक न हो. यही वजह थी कि हमेशा की तरह आज भी अदालत में कोई फैसला नहीं हुआ. दोनों ही पक्षों के वकील अपनीअपनी दलीलें पेश करते रहे, पर जज साहब ने तो तारीख बढ़ाने का ही काम किया.

वल्लभ और माला दोनों उदास और खिन्न मन से अदालत से बाहर निकल आए, लेकिन बाहर निकलते वक्त उन्हें नेहा और भानू की घूरती नजरों का सामना करना पड़ा. उन दोनों की नफरत, क्रोध और धोखा देने के आक्रोश का सामना वे दोनों पिछले 5 सालों से कर रहे हैं और अब तो जैसे आदत ही हो गई है. वल्लभ उस नफरत और आक्रोश के साए में जीतेजीते टूट सा गया है. अफसोस और अपराधभाव उस के चेहरे के भावों से परिलक्षित होने लगे हैं. सच तो यह भी है कि अदालत के चक्कर काटतेकाटते वह थक गया है. हालत तो माला की भी कुछ ऐसी ही है, क्योंकि पिछले 5 सालों से वह भी अपनेपरायों सब की नफरत झेल रही है. यहां तक कि उस के बच्चे भी उस से दूर हो गए हैं. आखिर क्या मिला उन्हें इस तरह का कदम उठा कर?

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