सुबह जैसे ही वह सो कर उठी, उसे लगा कि आज वह जरूर रोएगी. रोने के बहुत से कारण हो सकते हैं या निकाले जा सकते हैं. ब्रश मुंह में डाल कर वह घर से बाहर निकली तो देखा पति कुछ सूखी पत्तियां तोड़ कर क्यारियों में डाल रहे थे.
‘‘मुझे लगता है आज मेरा ब्लडप्रैशर बढ़ने लगा है.’’
पत्तियां तोड़ कर क्यारी में डालते हुए पति ने एक उड़ती सी निगाह अपनी पत्नी पर डाली. उसे लगा कि उस निगाह में कोई खास प्यार, दिलचस्पी या घबराहट नहीं है.
‘‘ठीक है दफ्तर जा कर कार भेज दूंगा, अपने डाक्टर के पास चली जाना.’’
‘‘नहीं, कार भेजने की जरूरत नहीं है. अभी ब्लडप्रैशर कोई खास नहीं बढ़ा है. अभी तक मेरे कानों से कोई सूंसूं की आवाज नहीं आ रही है, जैसे अकसर ब्लडप्रैशर बढ़ने से पहले आती है.’’
‘‘पर डाक्टर ने तुम से कहा है कि तबीयत जरा भी खराब हो तो तुम उसे दिखा दिया करो या फोन कर के उसे
घर पर बुलवा लो, चाहे आधी रात ही क्यों न हो. पिछली बार सिर्फ अपनी लापरवाहियों के कारण ही तुम मरतेमरते बची हो. लापरवाह लोगों के प्रति मुझे कोई हमदर्दी नहीं है.’’
‘‘अच्छा होता मैं मर जाती. आप बाकी जिंदगी मेरे बिना आराम से तो काट लेते.’’ यह कहने के साथ उसे रोना आना चाहिए था पर नहीं आया.
‘‘डाक्टर के पास अकेली जाऊं?’’
‘‘तुम कहो तो मैं दफ्तर से आ जाऊंगा. पर तुम अपने डाक्टर के पास तो अकेली भी जा सकती हो. कितनी बार जा भी चुकी हो. आज क्या खास बात है?’’
ये भी पढ़ें- मुक्ति का बंधन: अभ्रा क्या बंधनों से मुक्त हो पाई?