Short Story In Hindi : बात कोरोना के आने के एक साल पहले की है. हम अपने एटीएम कार्ड का पिन सेट करने के लिए भटक रहे थे. बैंकों में दौड़दौड़ कर, सरकारी बैंक के नखरे उठाउठा कर थक गए थे. डिजिटल इंडिया कहने और व्यावहारिक रूप से होने में जरा फर्क होता है. दिन को समय मिल नहीं पाता था, सो रात को हम 2 सहेलियां और हमारे 2 पुरुष सहयोगी एटीएम में पहुंचे.
उस समय रात के करीब 8 बजे होंगे. पर एटीएम का सिक्योरिटी गार्ड अपनी कुरसी पर लुढ़का हुआ खर्राटे मार रहा था.
मेरी सहेली और एक पुरुष सहयोगी बाहर खड़े थे, जबकि मैं और दूसरा पुरुष सहयोगी एटीएम के भीतर आ गए थे.
यह कोरोना काल तो नहीं, परंतु पराली काल जरूर था और दिल्ली में पराली के कहर से तो हर कोई वाकिफ है. सो, वायु में घुले पौल्यूशन के कहर और पराली के जहर से बचने के लिए हम ने अपनी नाक पर स्कार्फ बांधा हुआ था. डब्ल्यू के फैशनेबल स्कार्फ को सिर्फ नाक पर बांधना उस के ब्रांड और खूबसूरती का अपमान करना है. सो, मैं ने अपने स्कार्फ को हिजाब स्टाइल में सिर पर भी बांध रखा था, जिस से केवल मेरा फोरहेड और आंखें ही हिजाब की जद से बाहर थे, जहरीली हवा और जहरीली नजर से बचाव के लिए प्रदूषण पीड़ित शहरों में स्कार्फ का यह स्टाइल काफी पोपुलर है.
खैर, चूंकि हम औफिस से ही इस तरफ आ गए थे, सो मेरे सहयोगी के हाथ में एक बैग था, जिसे उन्होंने साइड में रखा और इसी के साथ सिक्योरिटी गार्ड की नींद खुल गई. आंखें खुलते ही उस की नजर हम पर पड़ी. डर, संशय और विस्मय के मिलेजुले भावों के साथ वह कुरसी से कूद कर खड़ा हो गया. तनिक कांपती हुई आवाज में यत्नपूर्वक गरजते हुए वह हम से स्कार्फ हटाने के लिए कहने लगा. मुंह और नाक से स्कार्फ हटाने पर भी उस की तसल्ली नहीं हुई और इतनी मेहनत से नेट पर से सीख कर बांधा हुआ हिजाब मुझे उस डरपोक सिक्योरिटी गार्ड की वजह से हटाना पड़ा.
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