"सुनते हो, आज एटीएम से ₹10 हजार निकाल कर ले आना. राशन नहीं है घर में," किचन से चिल्ला कर बिंदु ने अपने पति सतीश से कहा.

सतीश बाथरूम से निकलते हुए झुंझलाए स्वर में बोला," फिर से रुपए? अभी 10 दिन पहले ही तो ₹12 हजार निकाल कर लाए थे."

"तुम क्या सोचते हो मैं ने सारे पैसे उड़ा दिए ? खर्चे कम हैं क्या तुम्हारे घर के? बेटे के ट्यूशन में ₹ 2 हजार चले गए. दूधवाले के ₹ 2 हजार, डाक्टर की फीस में ₹ 12 सौ. तुम ने भी तो ₹4 हजार लिए थे मुझ से, सेठ का उधार चुकाने को. इस तरह के दूसरे छोटेमोटे खर्च में ही ₹ 10 हजार तक खर्च हो गए. बाकी बचे रुपए फलसब्जी आदि में लग गए."

"देखो बिंदु मैं हिसाब नहीं मांग रहा. मगर तुम्हें हाथ दबा कर खर्च करना होगा. मैं कोई हर महीने लाख दो लाख सैलरी पाने वाला बंदा तो हूं नहीं. मकान किराए पर चढ़ाने का व्यवसाय है मेरा जो आजकल मंदा चल रहा है. "

"तुम बताओ कौन सा खर्च रोकूं? घर के खर्चे, राशन, दूध, बिजली, पानी, सब्जी, बच्चे की पढ़ाई... इन सब में तो खर्च होने जरूरी हैं न. फिर हर महीने कुछ न कुछ ऐक्स्ट्रा खर्च भी आते ही रहते हैं. उस पर तुम ₹3-4 हजार तक की शराब भी गटक जाते हो."

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"तो क्या शराब मैं अकेला पीता हूं? तुम भी पीती ही हो न," सतीश ने चिढ़ कर कहा.

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